Mahashivratri in Varanasi: वाराणसी में बाबा विश्वनाथ के अलावा इन मंदिरों में कर सकते हैं पूजा, पूरी होंगी मनोकामनाएं
Varanasi News: वाराणसी को भगवान शिव की नगरी कहा जाता है। यह कहा जाता है कि यह शहर भगवान शिव के त्रिशुल पर खड़ा है। यहां के लोगों में भगवान शिव के प्रति अटूट श्रद्धा है। जिले में कई प्राचीन एवं ऐतिहासिक शिव मंदिर हैं, जहां महाशिवरात्रि पर हजारों शिव भक्त पहुंचेंगे। इन मंदिरों में शिवलिंग के दर्शन मात्र से आपकी सारी मनोकामना पूरी हो जाती है। यही वजह है कि साल-दर-साल मंदिरों में शिव भक्तों की संख्या बढ़ती जा रही है।
काशी विश्वनाथ धाम में देश भर से पूजा करने आते हैं श्रद्धालु
- देश भर से ज्योतिर्लिंग बाबा विश्वनाथ की पूजा करने आते हैं श्रद्धालु
- तिल भांडेश्वर महादेव से भी जुड़ी है लोगों की गहरी आस्था
- हर महाशिवरात्रि पर जौ के बराबर खुद-ब-खुद बढ़ता जागेश्वर महादेव मंदिर का शिवलिंग
इसके अलावा तिल भांडेश्वर महादेव की पूजा करने के लिए श्रद्धालुओं की लंबी-लंबी कतारें लगती हैं। यहां का शिवलिंग काशी के सबसे बड़े तीन शिवलिंगों में से एक है। हर साल शिवलिंग में तिल भर की वृद्धि होती है। ऐसा कहा जाता है कि प्राचीन समय में इलाके में तिल की खेती होती थी। एक दिन अचानक तिल के खेतों के बीच से शिवलिंग बाहर निकल आया। तब से शिवलिंग की पूजा की जा रही है। यहां शिवलिंग पर तिल चढ़ाने की परंपरा है।
ईश्वरगंगी मोहल्ले में हैं श्री जागेश्वर महादेवईश्वरगंगी मोहल्ले में श्री जागेश्वर महादेव मंदिर है। मंदिर में हजारों वर्ष पुराना शिवलिंग है। इस शिवलिंग की लंबाई हर महाशिवरात्रि पर जौ के बराबर खुद-ब-खुद बढ़ जाती है। कहा जाता है कि कोई इस शिवलिंग का दर्शन तीन साल या तीन महीने ही लगातार कर ले तो उसकी सभी तकलीफ समाप्त हो जाती है। मार्केंडेय महादेव मंदिर भी काफी प्रचलित है। यह वाराणसी से 30 किलोमीटर दूर है। मंदिर गंगा और गोमती के संगम तट पर अवस्थित है। शिव भक्तों के लिए यह खास मंदिर है। यहां सावन में कई राज्यों के श्रद्धालु पूजा करने के लिए आते हैं। कई तरह की परेशानियों से जूझ रहे लोग अपने दुखों के निवारण के लिए आते हैं।
तारकेश्वर महादेव के करें दर्शनवाराणसी में तारकेश्वर महादेव के दर्शन करने मात्र से सभी परेशानी का हल निकल जाता है। यहां हर महीने काफी संख्या में लोग पूजा-अर्चना करने के लिए आते हैं। विंध्याचल के पूरब दिशा में मंदिर है। मंदिर के पास एक कुंड है। मान्यता है कि तराक नाम के राक्षस ने मंदिर के पास कुंड खोदा था। भगवान शिव ने ही उस राक्षस का वध किया था। इस वजह से उन्हें तारकेश्वर महादेव कहा जाता है। कुंड के पास में ही शिवलिंग है। बताया जाता है कि भगवान विष्णु ने तारकेश्वर के पश्चिम दिशा की ओर एक कुंड और भगवान शिव का मंदिर बनवाया था।
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