Varanasi News : रूस-यूक्रेन युद्ध से दु:खी मनोविज्ञानी ने काशी आकर अपनाया हिंदू धर्म, बेहद दिलचस्प है पूरी कहानी
Varanasi News : हिंदू धर्म अपना चुके अनंतानंद बताते हैं कि वे रूस में साइकोलॉजिस्ट यानी मनोविज्ञानी हैं। वहीं, पर उनको काशी के पंडित वागीश शास्त्री के बारे में पता चला था और उन्हें मंत्रों के बारे में जानने की इच्छा हुई।
रूस के मनोवैज्ञानिक ने अपनाया हिंदू धर्म। (प्रतीकात्मक फोटो)
रूस में साइकोलॉजिस्ट हैं अनंतानंद
एक मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक, हिंदू धर्म अपना चुके अनंतानंद बताते हैं कि वे रूस में साइकोलॉजिस्ट यानी मनोविज्ञानी हैं। वहीं, पर उनको काशी के पंडित वागीश शास्त्री के बारे में पता चला था और उन्हें मंत्रों के बारे में जानने की इच्छा हुई तब उन्होंने हिंदू धर्म अपनाने का ठान लिया। काफी समय बाद जब अनंतानंद भारत पहुंचे तो उन्हें पता चला कि 2022 में पंडित वागीश शास्त्री का निधन हो चुका है। रूस के मनोवैज्ञानिक का कहना है कि मंत्रों की दीक्षा लेने के बीच उन्हें जो अनुभूति हुई है उसका व्याख्यान कर पाना मुश्किल है। अनंतानंद बन चुके एंटोन बताते हैं कि ये तो सनातन धर्म की शक्ति है, जिसके कारण मेरी मंत्रों की दीक्षा सफल हो सकी।
रूस-यूक्रेन युद्ध के कारण बदला धर्म
एंटोन से अनंतानंद बने शख्स ने बताया है कि वे रूस और यूक्रेन के बीच चले रहे युद्ध से बेहद दु:खी हैं। दोनों देशों के बीच शांति बनी रहे इसके लिए वे मां तारा से प्रार्थना भी कर रहे हैं। वे खुद बताते हैं कि आचार्य वागीश शास्त्री के संपर्क में वे वर्ष 2015 में आए थे, लेकिन उस समय अपरिहार्य कारणों के चलते उनकी तंत्र दीक्षा अपूर्ण रह गई थी। तब उन्होंने आशापति पंडित के सानिध्य में तंत्र दीक्षा ली और कुंडलिनी साधना की सभी 10 कक्षाओं को पूरा किया।
80 देशों के नागरिक ले चुके दीक्षा
वाराणसी के रहने वाले पंडित आशापति ने बताया है कि उनके गुरु वागीश शास्त्री और उनके द्वारा दीक्षा देने का यह काम 1980 में शुरू किया गया था। इसके बाद से अब तक कुल 80 देशों के 15 हजार से भी ज्यादा नागरिक दीक्षा ले चुके हैं। बताते हैं कि रूस और यूक्रेन ही एकमात्र ऐसे देश हैं जहां पर मंत्र साधना करने वालों की संख्या बहुतायत में है। पंडित आशापति शास्त्री ने बताया कि दुनिया में यूक्रेन और रूस से दीक्षा लेने वालों की संख्या काफी ज्यादा है। गुरु वागीश शास्त्री और मेरे द्वारा अब तक 80 देशों के 15 हजार विदेशी शिष्यों को दीक्षा दी गई है। दीक्षा लेने की परंपरा 1980 में शुरू की गई थी। तब से लगातार यह काम चल रहा है। जो व्यक्ति पात्र है, उसी को दीक्षा दी जाती है।
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