Mahashivratri 2023 in Varanasi: वाराणसी और आसपास हैं यह प्रसिद्ध शिव मंदिर, दर्शन कर लें, दूर होंगे कष्ट
Varanasi News: वाराणसी में महाशिवरात्रि को लेकर उत्साह चरण पर है। श्रद्धालुओं में भगवान भोलेनाथ के दर्शन को लेकर ऊहापोह की स्थिति है। वाराणसी में कई प्राचीन एवं मान्यता वाले मंदिर हैं, जहां श्रद्धालु जाना चाहते हैं। ऐसे में हम कुछ मंदिरों की जानकारी साझा कर रहे हैं, जहां आप शिवलिंग का जलाभिषेक कर सकते हैं।
चितईपुर स्थित कर्दमेश्वर महादेव मंदिर में पूरी होती है मनोकामना
- रविंद्रपुरी इलाके में है बनखंड महादेव का प्राचीन मंदिर
- मंदिर है 60 फीट ऊंचा और व्यास 30 फीट
- दूसरे मंदिरों से बिल्कुल अलग है इसकी शैली
Varanasi Train Route Divert: इस महाशिवरात्रि पर शनिवार को श्रद्धालु वाराणसी मुख्य शहर एवं इसके आसपास के मंदिरों में दर्शन-पूजन कर सकते हैं। शहर के रविंदपुरी में बनखंडी महादेव का मंदिर है। यह अति प्राचीन मंदिर है। यह मंदिर शिवलिंग की आकृति का है। मंदिर की ऊंचाई 60 फीट और व्यास 30 फीट है। इस मंदिर की शैली अन्य मंदिरों से बिल्कुल अलग है। 1818 में बनखंडी महाराज ने मंदिर बनवाया था। ऊंचाई से देखने पर शिवलिंग की सीढ़ियां अरघे आकार की दिखती हैं।
ऐसी मान्यता है कि पूरे श्रद्धा भाव से पूजा करने पर बनखंडी महादेव हर मनोकामना पूरी करते हैं। मंदिर में भगवान शंकर के अलावा, भगवान गणेश, हनुमान जी और आदिशक्ति की मूर्ति है।
चितईपुर में हैं कर्दमेश्वर महादेवकाशी के सबसे प्राचीन मंदिरों में चितईपुर स्थित कर्दमेश्वर महादेव मंदिर भी है। यह सामान्य दिनों में भी हर दिन 400-500 श्रद्धालु दर्शन-पूजन करने के लिए आते हैं। मंदिर का निचला हिस्सा 6-8वीं, दूसरा हिस्सा 8-10वीं और सबसे ऊपर का भाग 10-12वीं शताब्दी में बनाया गया है। गर्भगृह में स्वयंभू शिवलिंग है। यह उलटी रखी गई कटोरी की तरह है। दो फीट चौड़ा और आधा फीट ऊंचा शिवलिंग है। एक खास बात है कि यहां शिवलिंग के सामने नहीं, बल्कि मंदिर के बाहर नंदी महाराज हैं। वैष्णव धर्म का प्रभाव मंदिर की मूर्तियों में देखने को मिलता है। मंदिर में विष्णु के वामन अवतार की भी मूर्ति है।
शहर से 15 किमी दूर में विराजे हैं शूलटंकेश्वर महादेववाराणसी मुख्य शहर से 15 किलोमीटर दूर माधवपुर गांव है। इस गांव में शूलटंकेश्वर महादेव विराजे हैं। मंदिर में हनुमान जी, माता पार्वती, भगवान गणेश, कार्तिकेय के साथ नंदी हैं। बताया जाता है कि माधव ऋषि ने गंगा अवतरण से पहले भगवान शिव की पूजा करने के लिए शिवलिंग की स्थापना की थी। शूलटंकेश्वर महादेव ने गंगा का कष्ट दूर किया था, इसलिए कहा जाता है कि यहां सभी श्रद्धालुओं का कष्ट दूर हो जाता है। इसके अलावा मृत्युंजय महादेव मंदिर है। यह दरनगर से कालभैरव मंदिर के रास्ते में है। सुबह चार बजे ही मंदिर खुल जाता है। फिर रात 12 बजे बंद होता है। यहां सुबह 5:30 बजे, शाम 6:30 बजे और रात 11:30 बजे आरती होती है।
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