Varanasi में जलती चिताओं के बीच क्यों नृत्य करती हैं नगर वधुएं, जानिए कैसे हुई इस परंपरा की शुरुआत
Nagar Vadhu Dance in Varanasi: वाराणसी में नवरात्रि की सप्तमी तिथि को नगर वधुएं मणिकर्णिका घाट पर जलती चिताओं के बीच नृत्य करती है। यह परंपरा सालों से चली आ रही है। आइए जानते हैं कि यह परंपरा कैसे शुरू हुई और इसके पीछे की वजह क्या है।
जलती चिताओं के बीच नृत्य करती हैं नगर वधुएं (फोटो साभार - ट्विटर)
Nagar Vadhu Dance in Varanasi: भारत में कई ऐसे शहर हैं जहां आपको अनोखी परंपराएं देखने और सुनने को मिलेंगी। ऐसी ही एक अनोखी परंपरा महादेव की नगरी काशी में भी देखने को मिलती है। यहां महाश्मशान घाट पर नगरवधुएं जलती चिताओं के बीच नृत्य करती हैं। नगर वधुएं नवरात्रि की सप्तमी तिथि को मणिकर्णिका घाट पर आती है और जलती चिताओं के बीच नाचती हैं। जिसे देखने के लिए हजारों की भीड़ घाट पर उमड़ती है। बनारस में कई सालों से इस परंपरा का पालन होता आ रहा है। बताया जाता है कि इस परंपरा का इतिहास 4000 से अधिक पुराना है। लेकिन इस परंपरा के पीछे की वजह क्या है। ये कब लोगों को ही पता होगा। आज हम इसी परंपरा से जुड़ा इतिहास और इसकी वजह के बारे में आपको बताएंगे।
कब शुरू हुई ये परंपरा
महादेव की नगरी काशी में इस अनोखी परंपरा की शुरुआत राजा मानसिंह के समय में हुई थी। बताया जाता है कि राजा मान सिंह ने 1585 में महाश्मशान घाट पर बाबा मसान नाथ का मंदिर बनवाया था। राजा ने मंदिर के प्राण प्रतिष्ठा कार्यक्रम के आयोजन में देशभर के नामचीन संगीतकारों को आमंत्रण भेजा। लेकिन महाश्मशान होने के कारण इस कार्यक्रम में कोई नहीं आया। जिसके बाद राजा ने नगर वधुओं को आमंत्रण भेजा, जिसे स्वीकार करके नगर वधुएं कार्यक्रम में आई। उन्होंने पूरी रात नृत्य करके अपनी कला का प्रदर्शन किया। तभी से यह परंपरा आज तक चली आ रही है।
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इस परंपरा को लेकर मान्यता
इस परंपरा का पालन करते हुए हर नवरात्रि की सप्तमी तिथि को देश के कई हिस्सों से नगर वधुएं अपनी इच्छा से महाश्मशान के उत्सव में आती है। यहां पर आकर वे महाश्मशान बाबा के सामने नृत्य करने के बाद जलती चिताओं के बीच नाचती हैं। इस परंपरा के अनुसार नगर वधुओं के नृत्य से पहले मसान नाथ बाबा का श्रृंगार किया जाता है। जिसके बाद तंत्र विधि से उनकी पूजा करते हैं। फिर नृत्य का आयोजन होता है। इन परंपरा को लेकर मान्यता है कि जो नगर वधुएं इस उत्सव में महाश्मशान घाट पर नृत्य करती हैं, उन्हें इस नरकीय जीवन से अगले जन्म में मुक्ति प्राप्त होती है। नवरात्रि की सप्तमी तिथि को काशी में गीत, संगीत और घुंघरुओं की ध्वनि का अद्भुत संगम देखने को मिलता है। जिसे बड़ी संख्या में लोग देखने के लिए आते हैं।
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