जिस Mirzapur के नाम से बनी वेब सीरीज, जानें उसे कब और किसने बसाया; नाम कैसे पड़ा?

मिर्जापुर कार्पेट और पीतल के बर्तनों के लिए प्रसिद्ध है। मिर्जापुर का इतिहास बहुत पुराना नहीं है, लेकिन यह पारंपरिक कजरी और बिरह संगीत के लिए भी जाना जाता है। मिर्जापुर शहर इसी नाम के जिले का मुख्यालय है, जहां विंध्य पर्वतमाला उत्तर भारत के गंगा-यमुना के मैदानों से मिलती है। चलिए जानते हैं कैसे इस शहर का नाम पड़ा, किसने इसे बसाया और कब-

Mirzapur My City.

मिर्जापुर शहर का इतिहास, नाम कैसे पड़ा और किसने इस शहर को बसाया

असल में कैसा है कालीन भईया का मिर्जापुर? वेब सीरीज 'मिर्जापुर' के तीन पार्ट देखकर ये प्रश्न आपके भी जेहन में जरूर आया होगा, अगर आपने आज तक मिर्जापुर नहीं देखा है तो... उत्तर प्रदेश के पूर्वांचल में आने वाला मिर्जापुर का इतिहास बहुत पुराना नहीं है। लेकिन इसका जितना भी इतिहास है वह हम आपके लिए आज सहेजकर लाए हैं, मेरा शहर और उसकी कहानी में।

वेबसीरीज में आपने देखा होगा कि पंकज त्रिपाठी ने कालीन भईया का किरदार किया है। जो दिखाने को तो कार्पेट बनाने की फैक्टरी है, जबकि असल में हथियारों का व्यापार करते हैं। कालीन भईया जैसा मिर्जापुर में कोई कैरेक्टर कभी रहा है या नहीं, यह तो नहीं पता। लेकिन यह शहर कार्पेट के लिए पहचान जरूर रखता है। यहां पर कार्पेट और पीतल के बर्तनों का काम जरूर होता है। इसके अलावा यह शहर पारंपरिक कजरी और बिरह संगीत के लिए भी पहचान रखता है। मिर्जापुर शहर इसी नाम के जिले का जिला मुख्यालय भी है। इसी जिले में विंध्य पर्वतमाला उत्तर भारत के गंगा-यमुना के मैदानों से आकर मिलते हैं।

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अंग्रेजों का बसाया मिर्जापुर

मिर्जापुर शहर को बसाने के पीछे ब्रिटिश अधिकारियों का हाथ रहा है। इस शहर को बसाने का श्रेय ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी के लॉर्ड मार्कस वेलसली (Lord Marquess Wellesley) को जाता है। कुछ सुबूत मिलते हैं कि अंग्रेजों मिर्जापुर में गंगा नदी पर बरियर (Burrier) या बैरिया घाट बनाया। लॉर्ड वेलसली ने बैरिया घाट का पुनर्निमाण कराया और गंगा नदी से मिर्जापुर में जाने का रास्ता तैयार किया। आज भी मिर्जापुर में कुछ नाम लॉर्ड वेलसली के नाम पर हैं, जैसे मिर्जापुर का पहला बाजार वैलसलीगंज, मुकेरी बाजार और तुलसी चौक आदि।

मिर्जापुर नाम कैसे पड़ा

शहर का नाम मिर्जापुर इसे बसाने वाले ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी के अंग्रेजों ने ही रखा। मिर्जापुर के नाम का अर्थ समझने के लिए इसका संधि विच्छेद करना जरूरी है, क्योंकि इसी तरह से इस शहर का नामकरण भी हुआ है। इसमें 'मिर्जा' पारसी शब्द है, जिसका मतलब राजा की संतान होता है। फारसी में अमीरजाद,अरबी के 'अमीर' से निकला है, जिसे अंग्रेजी में Emir (एमिर) कहा जाता है, जिसका मतलब कमांडर होता है। अरबी के अमीर शब्द को फारसी में जाद प्रत्यय (Suffix) जोड़कर लिया गया, जिसका मतलब जन्म या वंश से होता है। तुर्किक भाषाओं में अमीरजाद के लिए मोरजा शब्द प्रयोग में लाया जाता है। साल 1595 में यह शब्द फ्रेंच एमिअर से अंग्रेजी में आया। अंग्रेजों ने जब यह शहर बसाया तो इसी एमिअर से इसका नाम मिर्जापुर निकला। वैसे बता दें कि मिर्जापुर का शाब्दिक अर्थ राजा का स्थान होता है।

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भारत की घड़ी है मिर्जापुर

जी हां, मिर्जापुर को भारत की घड़ी भी कहा जा सकता है। क्योंकि भारत का स्टैंडर्ड टाइम यानी IST यहीं मिर्जापुर से लिया गया है। पूरे देश में एक स्टैंडर्ड समय रखने के लिए मिर्जापुर से लिए गए समय को पूरे देश में लागू किया जाता है। जबकि अरुणाचल प्रदेश और गुजरात के समय में दो घंटे का अंतर है। मतलब अरुणाचल में सूर्योदय या सूर्यास्त होने के दो घंटे बाद गुजरात में सूर्योदय या सूर्यास्त होता है। पूरे देश में काम के घंटों को एक रखने के लिए मिर्जापुर के समय को ही देश के लिए स्टैंडर्ड माना गया है।

मिर्जापुर का इतिहास

गंगा नदी के किनारे बसा मिर्जापुर, जो कि उस समय शहर नहीं था, साल 1775 में बनारस राज्य का हिस्सा था। अवध के वजीर ने बनारस स्टेट को ईस्ट इंडिया कंपनी के हाथों में सौंप दिया था, लेकिन बनारस के शासकों ने 1794 तक इसका प्रशासन अपने पास रखा। 27 अक्टूबर 1794 को काशी के तत्कालीन नरेश महिप नारायण सिंह ने शहर का शासन तत्कालीन गवर्नर जनरल को सौंप दिया।

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अंग्रेजी शासन काल के दौरान 1861 में तत्कालीन इलाहाबाद (अब प्रयागराज) से अलग होकर मिर्जापुर जिला अस्तित्व में आया। उस समय यह यूनाइटेड प्रोविंस का सबसे बड़ा जिला था। साल 1989 तक मिर्जापुर, उत्तर प्रदेश का सबसे बड़ा जिला था। अप्रैल 1989 में इसके दक्षिणी हिस्से को सोनभद्र जिले के रूप में अलग किया गया। 14 जून 1997 तक मिर्जापुर, वाराणसी डिवीजन का हिस्सा था। इसी दिन उत्तर प्रदेश सरकार ने संत रविदास नगर, सोनभद्र और मिर्जापुर जिलों को मिलाकर एक नया डिवीजन बनाया और उसका हेडक्वार्टर मिर्जापुर शहर में बना।

सदियों पुराना रिवर पोर्ट रहा है मिर्जापुर

मिर्जापुर शहर का इतिहास ज्यादा पुराना नहीं है। करीब 300 साल पहले मिर्जापुर, उत्तर भारत के एक बड़े व्यापारिक केंद्र के रूप में उबरना शुरू हुआ। उस समय सड़क और रेल मार्ग नहीं थे। पूरे कैमूर पठारी क्षेत्र के कृषि और वन्य उत्पादों को मिर्जापुर लाया जाता था। यहां से नदी के रास्ते इन उत्पादों को कलकत्ता तक पहुंचाया जाता था। आगे चलकर मिर्जापुर में ऊनी कालीन की बुनाई और पीतल के बर्तनों का निर्माण होने लगा और इस शहर ने कालीन और पीतल के बर्तनों की मैन्युफैक्चरिंग में अपना नाम बना लिया। रेल और सड़क मार्ग बन जाने के बावजूद भी मिर्जापुर अपने रिवर पोर्ट के कारण एक प्रमुख व्यापार केंद्र के रूप में बना रहा।

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मिर्जापुर में शक्तिपीठ भी है

मिर्जापुर में ही पवित्र गंगा विंध्य पर्वत माला से मिलती है। हिंदू मान्यताओं में इसे पवित्र स्थान माना जाता है और वेदों में भी इसका जिक्र है। मिर्जापुर के पास ही विध्यांचल नामक धार्मिक स्थान हैं। विध्यांचल एक शक्तिपीठ है और यहां पर देवी विंद्यवासिनी का मंदिर है। यहां पर हर साल शारदीय नवरात्र और चैत्र नवरात्र पर माता के भक्तों का तांता लगा रहता है। मिर्जापुर में अष्टभुजा मंदिर, सीता कुंड, काली खोह, बुढ़े नाथ मंदिर, नारद घाट, गेरुआ तालाब, मोतिया तालाब, लाल भैरव और काला भैरव, एकदंत गणेश, सप्त सरोवर, साक्षी गोपाल मंदिर, गोरक्षा कुंड, मत्स्येंद्र कुंड, तारकेस्वर नाथ मंदिर, कंकाली देवी मंदिर, शिवाशिव समूह अवधूत आश्रम और भैरव कुंड जैसे धार्मिक स्थल हैं।

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Digpal Singh author

खबरों की दुनिया में लगभग 19 साल हो गए। साल 2005-2006 में माखनलाल चतुर्वेदी युनिवर्सिटी से PG डिप्लोमा करने के बाद मीडिया जगत में दस्तक दी। कई अखबार...और देखें

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