Jodhpur: आखिर क्यों अपना पारंपरिक नीला रंग खो रही है ब्लू सिटी ऑफ इंडिया

जोधपुर की पहचान ब्लू सिटी के तौर पर है। यहां के घरों का पारंपरिक ब्लू शहर अब खोता जा रहा है। इसके पीछे कारण इंदिरा गांधी नहर है। चलिए जानते हैं आखिर कैसे इंदिरा गांधी नहर की वजह से जोधपुर अपनी पुरानी पहचान खो रहा है।

जोधपुर

क्या आप कभी जोधपुर गए हैं? अगर गए होंगे तो आपने देखा होगा कि इसे क्यों ब्लू सिटी कहा जाता है। नहीं भी गए तो आप जानते ही होंगे कि जिस तरह से जयपुर को पिंक सिटी कहा जाता है, उसी तरह से जोधपुर ब्लू सिटी कहलाता है। जोधपुर के ब्लू सिटी कहलाने के पीछे एक बहुत ही खास कारण है। लेकिन जोधपुर अपनी यह पहचान खो रहा है। हैरानी की बात यह है कि जिस इंदिरा गांधी नहर ने रेगिस्तान में सूखे गले को पानी दिया, रेगिस्तान को हरियाली दी, वही जोधपुर की पहचान छीन रही है। चलिए जानते हैं आखिर क्यों और कैसे इंदिरा गांधी नहर के कारण जोधपुर अपनी ब्लू सिटी की पहचान खो रहा है।

थार का गेटवे

जोधपुर को थार रेगिस्तान का गेटवे भी कहा जाता है। इस शहर में घरों के नीले रंग की वजह से इसे ब्लू सिटी कहते हैं। लेकिन जोधपुर की रंग-रंगीली विरासत के साथ यह शहर अपनी ब्लू सिटी की पहचान को को रहा है। हो सकता है जल्द ही ब्लू सिटी नाम भी न बचे। यही नहीं शहर का पूरा चरित्र ही बदल रहा है और यह रेगिस्तानी शहर एक बड़े बदलाव के मुहाने पर खड़ा दिख रहा है। यह जानकर किसी को भी आश्चर्य हो सकता है कि ऐसा पानी की वजह से हो रहा है। यह जानकर और भी ज्यादा आश्चर्य होगा कि यह बदलाव पानी की कमी नहीं बल्कि अधिकता के कराण हो रहा है।

थार में कहां से आ रहा पानी

थार रेगिस्तान, जहां दूर-दूर तक रेत के ही टीले दिखते हैं... वहां सरकार की एक योजना से घर-घर तक जल पहुंच रहा है। जी हां इंदिरा गांधी नहर जो पंजाब में हरिके (सतलुज-ब्यास नदियों के संगम) से राजस्थान के इस सूखे इलाके में पानी की आपूर्ति कर रही है। इंदिरा गांधी नहर के जरिए सिर्फ पानी ही नहीं पहुंच रहा, बल्कि रेगिस्तान में हरियाली भी आ रही है। इसी रेगिस्तान में बसे जोधपुर के लिए यह नहर पानी और हरियाली के साथ एक और चीज लेकर आ रही है, जो जोधपुर की पहचान मिटा रही है।

जोधपुर की पुरानी पहचान

जोधपुर को सदियों से सूखे, रेत और पानी की भारी किल्लत के लिए जाना जाता है। लेकिन अब यहां भरपूर पानी पहुंच रहा है। जोधपुर जिसके नेचर में ही पानी की एक-एक बूंद बचाना था, लेकिन अब यहां पानी की कोई कमी ही नहीं है। राजस्थान में सबसे ज्यादा पानी 97.4 फीसद जोधपुर में ही मिल रहा है। पानी की इस उपलब्धता ने शहर के लिए एक अलग तरह की समस्या खड़ी कर दी है।

संस्कृति और पहचान खो रही

इतनी मात्रा में पानी पहुंचने का सबसे बुरा असर जोधपुर के पुराने जलस्रोतों पर पड़ा है। पानी बचाने का जो गुर यहां के लोगों में पीढ़ी दर पीढ़ी था, वह अब खोता जा रहा है। जोधपुर को उसके तालाब, बावड़ी और झालर के लिए जाना जाता था। यह प्राकृतिक जल स्रोत एक तरह से जोधपुर की आत्मा थे, लेकिन अब इनकी आवश्यकता ही नहीं है। जोधपुर में 1896-97 में अकाल पड़ा था। उस समय भी यहां के लोग बावड़ियों के सहारे ही जिंदा रहे थे। पहले सभी लोग बावड़ियों का पानी पीते थे, हर बावड़ी के बास नीम का पेड़ भी होता था। नीम के पत्ते और निमोड़ी पानी में मिलकर बावड़ी के पानी की गुणवत्ता बढ़ाते थे। इंदिरा गांधी नहर का पानी आने से पुराने जलस्रोतों को छोड़ दिया गया है। कुछ को भरकर सार्वजनिक इस्तेमाल में लाया जा रहा है। आज जोधपुर के 46 में से सिर्फ दो रानीसार और पदमार तालाब ही जिंदा हैं।

ब्लू सिटी का तमगा कैसे छिन रहा

पानी को हर जगह नीले रंग में दिखाया जाता है, लेकिन यही पानी जोधपुर से उसका नीला रंग छीन रहा है। जोधपुर के घरों को उनका यह नीला रंग कॉपर सल्फेट (Copper Sulphate) और चूना पत्थर (Limestone) के मिश्रण से मिलता है। यह मिश्रण कीट-पतंगों को भी घर से दूर रखता है और घरों को शांत और सुखदायक प्रभाव देता है। 1459 में राठौड़ राजपूत राव जोधा ने इस शहर को बसाया था। घरों के अंदर तापमान कम रखने के लिए यहां घर में आंगन, नक्काशीदार पत्थरों से सजा द्वार, झरोखे और बलकनी पर जालियां होती थीं। इसके अलावा घुमावदार रास्ते, खुले चौक, बैठने के लिए चौपाल और उनके आसपास जल संरचनाएं बनाई जाती थी, ताकि वहां तापमान कम रहे।
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