भारत और पाकिस्तान के ये दो शहर क्यों कहलाते हैं सिस्टर सिटीज
भारत और पाकिस्तान एक ही देश से निकले दो अलग-अलग देश हैं। 15 अगस्त 1947 को देश को आजादी के साथ विभाजन भी मिला था। इन दोनों देशों में दो ऐसे शहर हैं, जिन्हें जुड़वां शहर या सिस्टर सिटीज भी कहते हैं। चलिए जानते हैं यह जुड़वां शहर कौन से हैं और इन्हें जुड़वां क्यों कहते हैं -
भारत और पाकिस्तान के दो जुड़वां शहर
साल 1947 में पाकिस्तान बनने से पहले यह पूरा क्षेत्र भारत का हिस्सा था। आजादी के साथ देश को दो हिस्सों में बांट दिया गया। यह वह समय था, जब आजादी मिलने की खुशी तो थी, साथ ही अपनों का अपनों से बिछड़ जाने का दुख भी था। कभी न भुला सकने वाली हिंसा का दर्द भी था। इस बंटवारे ने भाई को भाई से जुदा कर दिया, फिर जमीन के टुकड़ों की बिसात ही क्या थी। उत्तर में जम्मू-कश्मीर से लेकर दक्षिण में गुजरात तक एक ऐसी लकीर खींच दी गई, जिसके आर-पार लाखों जिंदगियां सदा सदा के लिए बदल गईं। आज हम दो ऐसे शहरों की बात करेंगे, जिसमें से एक भारत और दूसरी पाकिस्तान में है और आज भी सिस्टर सिटीज या जुड़वां शहर कहा जाता है।
चूल्हे और आंगन का रिश्ताजिन दो शहरों की बात कर रहे हैं उनका नाम अमृतसर और लाहौर है। जी हां, आजादी के बाद भारत के हिस्से में अमृतसर आया तो लाहौर पाकिस्तान की सीमा में चला गया। लेकिन आजादी से पहले इन दोनों सिस्टर सिटीज का रिश्ता चूल्हे और आंगन जैसा था। दोनों शहरों में लोगों की आवाजाही बिल्कुल वैसी ही थी, जैसी आज दिल्ली और नोएडा में है, मुंबई और पुणे में है, चंडीगढ़ और मोहाली में है। उस समय अमृतसर और लाहौर दोनों ही पंजाब प्रांत का हिस्सा थे। अंग्रेजों ने पंजाब प्रांत को भी दो हिस्सों में बांट दिया। आज पंजाब भारत और पाकिस्तान दोनों देशों में है।
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क्यों कहते हैं जुड़वां शहरअमृतसर और लाहौर भले ही भारत और पाकिस्तान दो अलग-अलग देशों की भौगोलिक सीमाओं के अंदर हैं। लेकिन इन जुड़वां शहरों में बहुत ज्यादा समानता है। फिर चाहे वह खान-पान हो, संस्कृति (Culture) हो या रीति-रिवाज (Traditions)। अगर अंतरराष्ट्रीय बॉर्डर को भूल जाएं तो दोनों शहरों के बीच की दूरी 50 किमी से भी कम है और इसे 1 घंटे से भी कम समय में तय किया जा सकता है।
अमृतसर और लाहौर दोनों शहर अंतरराष्ट्रीय सीमा से अलग-अलग देशों में बंटे हैं। घुसपैठियों को रोकने के लिए कंटीली तारों की बाढ़ भी बॉर्डर पर लगाई गई है। हालांकि, जगह-जगह पर रास्ते भी बनाए गए हैं, जो दोनों पड़ोसी देशों के साथ ही सिस्टर सिटीज को जोड़ते भी हैं। एक तरफ जहां अमृतसर में हिंदू मंदिर दुर्गियाना तीर्थ और गोबिंदगढ़ किला हैं, वहीं सीमापार लाहौर में बादशाही मस्जिद, शाही किला और पुराना शहर है। लाहौर में मोरी गेट और अमृतसर में लाहौरी गेट भी हैं।
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विभाजन का दर्द भी सबसे ज्यादा सहाविभाजन के समय लाहौर के शाह आलम मार्केट और अमृतसर के हॉल बाजार को दोनों शहरों में लगी आग का सबसे ज्यादा खामियाजा भुगतना पड़ा। विभाजन के बाद इन्हीं दो शहरों को सबसे ज्यादा रिफ्यूजी समस्या का भी सामना करना पड़ा था। लाहौर पर लाहौर : ए सेंटिमेंटल जर्नी नाम की किताब लिखने वाले लेखक प्राण नेविल्ले ने का कहना है कि साल 1965 तक दोनों देशों के बीच कोई आधिकारिक सीमा रेखा नहीं थी। उनका कहना है कि 1965 तक लोग आसानी से इन दो शहरों के बीच आना-जाना किया करते थे। बलवंत सिंह, खुशवंत सिंह और अमृता प्रीतम जैसी हस्तियों ने लाहौर से आकर भारत को अपना घर बनाया था। इसी तरह से अहमद राही, फिरोजदीन शराफ और सैफुद्दीन सैफ जैसे शायर अमृतसर से लाहौर शिफ्ट हुए।
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