आइना... मेरे होने की निशानी मांगे: कागजों में मरा असल में जिंदा हूं, सबूत हूं, फिर भी बीवी को विधवा पेंशन दे रहा प्रशासन

एमपी के छतरपुर में एक जिंदा आदमी को जीते जी कागजों में मार दिया गया। इतना ही नहीं, उसकी पत्नी को पिछले एक सालों से विधवा पेंशन योजना के पैसे भी दिए जा रहे हैं। शख्स पने जिंदा होने के सबूत देने के लिए सरकारी दफ्तरों के जक्कर काट रहा है-

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पति के जिंदा रहते कागजों में महिला को बना दिया गया विधवा

मुख्य बातें
  • पति जिंदा फिर भी कागजों में विधवा पत्नी
  • लाडली बहन योजना का भरा था फार्म
  • सालभर से जिंदा होने का सबूत दे रहा पति

Madhya Pradesh: मध्य प्रदेश के छतरपुर से एक हैरान कर देने वाला मामला सामने आया है, जिस में एक महिला को कागजों में विधवा बना दिया गया है। इतना ही नहीं, जिंदा इंसान की पत्नी को एक साल से विधवा पेंशन भी दी जा रही है। बृजेश विश्वकर्मा पिछले एक साल से अपने जिंदा होने का सबूत दे रहे हैं। लेकिन, अभी तक उनकी पत्नी कागजों में विधवा बनी हुई है। नगर परिषद के लापरवाह कर्मचारियों की वजह से एक जिंदा आदमी अपने जिंदा होने का प्रमाण देने के लिए दर-दर भटक रहा है।

लाडली बहन योजान का भरा था फार्म

दरअसल, छतरपुर कलेक्ट्रेट में आयोजित जन सुनवाई में अपनी पीड़ा लेकर आए बड़ा मलहरा के बृजेश विश्वकर्मा ने अपनी आपबीती सुनाई, जिसे सुनकर सिस्टम पर कई सवालिया निशान उठ खड़े होते हैं। बृजेश विश्वकर्मा की माने तो उनकी पत्नी ने पिछले साल लाडली बहना योजना का लाभ लेने के लिए आवेदन भरा था, जिसमें समग्र आईडी भी लगाई गई थी। लेकिन, नगर परिषद के लापरवाह कर्मचारियों की वजह से उनकी पत्नी को लाडली बहना योजना का लाभ न मिलकर विधवा पेंशन के 400 रुपये हर महीने दिए जा रहे हैं।

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एक साल से पत्नी कागजों में विधवा है

बृजेश ने बताया कि वह पिछले 1 साल से स्थानीय प्रशासन से लेकर छतरपुर कलेक्टर और यहां से लेकर भोपाल तक अपने जिंदा होने का सबूत देते फिर रहे हैं। लेकिन, आज तक प्रशासनिक लचर व्यवस्था के चलते एक जिंदा इंसान को कागजों में जिंदा नहीं किया जा सका। उनकी पत्नी कागजों में विधवा है।

सालभर से अपने जिंदा होने का सबूत दे रहा शख्स

आज एक बार फिर जनसुनवाई में ब्रजेश छतरपुर कलेक्टर के पास पहुंचा और खुद के जिंदा होने का सबूत देते हुए दस्तावेजों में सुधार कराए जाने की गुहार लगाई है। उनके अनुसार कलेक्टर छतरपुर ने आवेदन लेकर जांच की बात कही है। अब देखना दिलचस्प होगा कि एक जिंदा इंसान को कागजों में जिंदा होने के लिए अभी और कितनी जद्दोजहद करनी पड़ेगी

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Maahi Yashodhar author

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