एनकाउंटर पर क्या कहता है भारत का कानून, जानिए क्या है मुठभेड़ पर सुप्रीम कोर्ट की गाइडलाइन

यूपी में योगी सरकार के आने के बाद से पुलिस लगातार एनकाउंटर कर रही है। पुलिस के एनकाउंटर में ज्यादातर बदमाश घायल हुए हैं, हालांकि अतीक अहमद के बेटे समेत कुछ अपराधियों की मौत भी हो गई है। यूपी पुलिस एनकाउंटर को लेकर सवालों के घेरे में भी रही है।

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भारत में क्या कहता है एनकाउंटर कानून (Pixabay)

तस्वीर साभार : टाइम्स नाउ डिजिटल
मुख्य बातें
  • यूपी एसटीएफ ने गुरुवार को अतीक अहमद के बेटे का किया था एनकाउंटर
  • इस एनकाउंटर को लेकर विपक्ष उठा रहा योगी सरकार पर सवाल
  • पुलिस का दावा- जवाबी कार्रवाई में मारा गया अतीक का बेटा

यूपी एसटीएफ का एक एनकाउंटर इन दिनों चर्चा का विषय बना हुआ है। यूपी एसटीएफ की टीम माफिया डॉन और नेता अतीक अहमद के बेटे असद को एक एनकाउंटर में मार गिराया है। इस एनकाउंटर को लेकर सरकार और पुलिस एक तरफ अपनी पीठ थपथपा रही है तो दूसरी तरफ विपक्ष के नेता अखिलेश यादव और बसपा प्रमुख मायावती इस एनकाउंटर पर सवाल उठा रहे हैं। असद उमेशपाल हत्याकांड में वांटेड था और उसके सिर पर पांच लाख का इनाम भी था।

उठ रहे ये सवाल

इस एनकाउंटर के बाद सवाल उठ रहे हैं कि भारत में एनकाउंटर को लेकर कानून क्या कहता है। इसकी इजाजत है या फिर नहीं, अगर है तो किन परिस्थितियों में पुलिस अपराधियों का एनकाउंटर कर सकती है?

क्या कहता है कानून

भारत में एनकाउंटर को लेकर कोई स्पष्ट कानून नहीं है। यही कारण है कि समय-समय पर पुलिस मुठभेड़ों की विश्वसनीयता और वैधता पर सवाल उठाए जाते रहे हैं। भारत के कानून में कहीं भी एनकाउंटर को वैध ठहराने की बात नहीं है। लेकिन भारत का कानून पुलिस को यह अधिकार देता है कि जब अपराधी उनपर हमला करें तो वो जवाबी कार्रवाई कर सकते हैं और इस जवाबी कार्रवाई में बदमाश की मौत हो जाती है तो इसमें पुलिस की गलती नहीं होगी।

सीआरपीसी की धारा 46

भारतीय कानून यानि कि सीआरपीसी की धारा 46 के तहत पुलिस को यह अधिकार मिलता है कि अगर कोई अपराधी पुलिस से बचकर भागने की कोशिश करता है, गिरफ्त से भागने की कोशिश करता है, हमला करता है, तो ऐसी परिस्थिति में पुलिस जवाबी कार्रवाई कर सकती है।

सुप्रीम कोर्ट की गाइडलाइन

सुप्रीम कोर्ट ने एनकाउंटर को लेकर काफी सख्त गाईडलाइन जारी कर रखी है। एनकाउंटर के दौरान हुई हत्याओं को एक्सट्रा ज्यूडिशियल किलिंग भी कहा जाता है।

  1. आपराधिक गतिविधियों के बारे में किसी भी खुफिया जानकारी को केस डायरी या किसी इलेक्ट्रॉनिक माध्यम में दर्ज किया जाना चाहिए।
  2. मुठभेड़-मौत के मामले में प्राथमिकी दर्ज की जानी चाहिए।
  3. एनकाउंटर की स्वतंत्र जांच सीआईडी या किसी दूसरे थाने की पुलिस टीम से कराई जाए।
  4. पुलिस फायरिंग के दौरान हुई मौत के सभी मामलों में धारा 176 के तहत अनिवार्य रूप से मजिस्ट्रियल जांच की जानी चाहिए।
  5. घटना के बारे में जानकारी NHRC या राज्य मानवाधिकार आयोग को भेजी जानी चाहिए, जैसा भी मामला हो।
  6. घायल अपराधी/पीड़ित को चिकित्सा सहायता प्रदान की जानी चाहिए और मजिस्ट्रेट या चिकित्सा अधिकारी द्वारा उसका बयान दर्ज किया जाना चाहिए।
  7. संबंधित अदालत को एफआईआर, डायरी, पंचनामा, फोटो आदि भेजने में देरी न हो, यह सुनिश्चित की जाए।
  8. धारा 173 के तहत जांच रिपोर्ट सक्षम न्यायालय को भेजी जाए।
  9. मृत्यु की स्थिति में, कथित अपराधी/पीड़ित के निकट संबंधी को जल्द से जल्द सूचित किया जाना चाहिए।
  10. सभी मामलों के छह-मासिक बयान जहां पुलिस फायरिंग में मौतें हुई हैं, उन्हें राज्य के डीजीपी द्वारा एनएचआरसी को भेजा जाना चाहिए।
  11. अगर मौत आईपीसी के तहत अपराध की श्रेणी में आती है, तो अनुशासनात्मक कार्रवाई तुरंत शुरू की जानी चाहिए और पुलिस कर्मियों को निलंबित कर दिया जाना चाहिए।
  12. पुलिस अधिकारी (अधिकारियों) को फोरेंसिक और बैलिस्टिक विश्लेषण के लिए अपने हथियार सौंपने चाहिए।
  13. घटना की सूचना पुलिस अधिकारी के परिवार को भी दी जानी चाहिए और वकील/काउंसलिंग की सेवाएं प्रदान की जानी चाहिए।
  14. घटना के तुरंत बाद संबंधित अधिकारियों को कोई आउट ऑफ टर्न प्रमोशन या तत्काल वीरता पुरस्कार नहीं दिया जाएगा।
  15. यदि किसी पीड़ित का परिवार पाता है कि उपरोक्त प्रक्रिया का पालन नहीं किया गया है, तो वह सत्र न्यायाधीश को शिकायत कर सकता है।

NHRC की गाइडलाइन

एनकाउंटर को लेकर एनएचआरसी से भी कड़ी गाइडलाइंस जारी है। पुलिस की गलती सामने आने पर बचने की गुंजाइश नहीं है। NHRC के 1997 के दिशानिर्देशों के अनुसार, सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को निम्नलिखित दिशानिर्देशों का पालन करना चाहिए...

  1. थाना प्रभारी को पता चलते ही मुठभेड़ में मौत की सूचना उचित तरीके से दर्ज करनी चाहिए।
  2. तथ्यों और परिस्थितियों की जांच के लिए तत्काल कदम उठाए जाने चाहिए।
  3. चूंकि पुलिस स्वयं मुठभेड़ में शामिल है, इसलिए मामलों की जांच राज्य सीआईडी जैसी स्वतंत्र एजेंसी द्वारा की जानी चाहिए।
  4. चार माह में जांच पूरी की जाए। यदि जांच का परिणाम अभियोग में होता है, तो शीघ्र परीक्षण के लिए कदम उठाए जाने चाहिए।
  5. सजा पर समाप्त होने वाले मामलों में मृतक के आश्रितों को मुआवजा देने के मुद्दों पर विचार किया जा सकता है।
  6. जब पुलिस के खिलाफ गैर इरादतन हत्या के संज्ञेय मामले में शिकायत दर्ज की जाती है, तो आईपीसी की उपयुक्त धाराओं के तहत प्राथमिकी दर्ज की जानी चाहिए।
  7. पुलिस कार्रवाई के कारण हुई मौतों के सभी मामलों में, अधिमानतः तीन महीने के भीतर एक मजिस्ट्रियल जांच की जानी चाहिए।
  8. पुलिस कार्रवाई के कारण हुई मौतों के सभी मामलों की सूचना मृत्यु होने के 48 घंटे के भीतर जिले के वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक/पुलिस अधीक्षक द्वारा एनएचआरसी को दी जानी चाहिए।
  9. पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट, जांच रिपोर्ट, मजिस्ट्रियल जांच के निष्कर्ष और वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों द्वारा की गई पूछताछ के बारे में जानकारी प्रदान करते हुए तीन महीने के भीतर दूसरी रिपोर्ट एनएचआरसी को सौंपी जानी चाहिए।

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शिशुपाल कुमार author

पिछले 10 सालों से पत्रकारिता के क्षेत्र में काम करते हुए खोजी पत्रकारिता और डिजिटल मीडिया के क्षेत्र में एक अपनी समझ विकसित की है। जिसमें कई सीनियर सं...और देखें

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