कानून तो बदला लेकिन नहीं बदली मानसिकता, निर्भया कांड से लेकर कंझावला तक दरिंदगी के निशान
मनोचिकित्सक भी यही मानते हैं कि मानसिकता में बदलाव लाए बगैर महिलाओं के खिलाफ हिंसा पर पूरी तरह से रोक नहीं लगाई जा सकती। बहरहाल, सवाल केवल मानसिकता का नहीं बल्कि सख्त कानून का भी है। क्योंकि सख्त कानून व्यक्ति को अपराध करने से रोकते हैं।
2012 के निर्भया कांड के बाद रेप से जुड़े कानून में बदलाव हुआ।
रेप से जुड़े कानून में बदलाव करने पड़े
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लोगों के प्रदर्शन एवं दबाव के आगे सरकार को रेप से जुड़े कानून में बदलाव करने पड़े। महिलाओं के खिलाफ अपराध रोकने के लिए नए कानून लाए गए और रेप की परिभाषा बदली गई। नाबालिग लड़कियों के साथ दुष्कर्म के मामलों से निपटने के लिए पॉक्सो एक्ट बना। तो पीड़िताओं की मदद के लिए निर्भया फंड की व्यवस्था की गई। कार्यस्थलों पर यौन उत्पीड़न रोकने के लिए सरकार ने साल 2013 में यौन उत्पीड़न अधिनियम पारित किया। जिन संस्थाओं में दस से अधिक लोग काम करते हैं, वहां यह अधिनियम लागू होता है।
नहीं बदली पुरुषों की मानसिकता
निर्भया कांड के बाद देश में नियम-कायदे और कानून सभी बदले लेकिन जिस महिला सुरक्षा के लिए ये सभी बदलाव हुए उसका समाज पर दूरगामी असर देखने को नहीं मिला। उम्मीद जताई गई कि कानून के सख्त प्रावधान हो जाने से महिलाओं के खिलाफ हिंसा एवं रेप-मर्डर के वारदातों में कमी आएगी लेकिन 2012 के बाद देश भर में दरिंदगी एवं वहशीपन, रेप एवं मर्डर के जो आंकड़े आए उससे यही बात साबित हुई कि केवल कानून बन जाने से अपराध पर लगाम नहीं लगेगा। महिलाओं के खिलाफ अपराध रोकने के लिए पुरुषों एवं समाज की मानसिकता में बदलाव लाने की जरूरत है।
पॉक्सो एक्ट वजूद में आया, फास्ट ट्रैक कोर्ट बने
मनोचिकित्सक भी यही मानते हैं कि मानसिकता में बदलाव लाए बगैर महिलाओं के खिलाफ हिंसा पर पूरी तरह से रोक नहीं लगाई जा सकती। बहरहाल, सवाल केवल मानसिकता का नहीं बल्कि सख्त कानून का भी है। क्योंकि सख्त कानून व्यक्ति को अपराध करने से रोकते हैं। निर्भया कांड के बाद रेप से जुड़े कानून में बदलाव हुए। पॉक्सो एक्ट वजूद में आया। दुर्लभतम एवं जघन्य मामलों में दोषियों को जल्द से जल्द सजा दिलाने के लिए फास्ट ट्रैक कोर्ट की व्यवस्था हुई। रेप एवं मर्डर के मामलों में इन फास्ट ट्रैक कोर्ट ने कम समय में सजा भी सुनाई है। निर्भया कांड से पहले सेक्सुएल पेनिट्रेशन को ही रेप माना जाता था लेकिन इस कांड के बाद देश में रेप की परिभाषा बदल गई। गलत तरीके से छेड़छाड़ और अन्य तरीके के यौन शोषण को भी रेप की धाराओं में शामिल किया गया।
निर्भया फंड की व्यवस्था एवं हेल्पलाइन
इतना ही नहीं सरकार ने रेप से जुड़े मामलों के लिए निर्भया फंड भी बनाया। हालांकि, बाद के वर्षों में पाया गया कि कई राज्यों में इस फंड का समुचित इस्तेमाल नहीं हुआ। इसे विशेष रूप से विभिन्न राज्यों द्वारा सार्वजनिक स्थानों पर महिलाओं की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए उनकी शिकायतों के लिए वन-स्टॉप सेंटर, योजनाओं के लिए उपयोग करने के लिए डिजाइन किया गया था। इसके अलावा एक हेल्पलाइन भी शुरू की गई। निर्भया कांड के बाद महिलाओं में सुरक्षा के बारे में संदेश देने के लिए तत्कालीन गृह राज्य मंत्री आरपीएन सिंह ने डीटीसी बस में यात्रा की।
डराते हैं एनसीआरबी के आकंड़े
कड़े कानून के बावजूद और कमजोर पॉलिसिंग और जांच ने देश में हो रहे बलात्कारों को कम नहीं किया है। निर्भया कांड के बाद उन्नाव, हाथरस, हैदराबाद सहित देश भर में महिलाओं से रेप एवं हत्या के ऐसे कई मामले सामने आए जिसने कानून-व्यवस्था एवं पुलिस की कार्यशैली पर सवाल खड़े किए। इन घटनाओं से यही संदेश गया कि केवल कानून बना देने से महिलाओं के खिलाफ अपराध में कमी नहीं आएगी। एनसीआरबी के आकंड़े भी इसी बात को दर्शाते हैं। इस घटना के 11 साल बीत जाने और कड़े कानून बनने के बाद महिला सुरक्षा की स्थिति में ज्यादा बदलाव नहीं हुआ है। नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) के आकंड़ों के मुताबिक साल 2021 में देश भर में महिलाओं के खिलाफ अपराध के 4,28,278 मामले दर्ज हुए। 2020 की तुलना में यह आंकड़ा 56,775 केस ज्यादा है। जबकि 2012 में जिस साल निर्भया कांड हुआ उस वर्ष महिलाओं के खिलाफ अपराध की संख्या 2,44,270 थी।
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