कानून तो बदला लेकिन नहीं बदली मानसिकता, निर्भया कांड से लेकर कंझावला तक दरिंदगी के निशान

मनोचिकित्सक भी यही मानते हैं कि मानसिकता में बदलाव लाए बगैर महिलाओं के खिलाफ हिंसा पर पूरी तरह से रोक नहीं लगाई जा सकती। बहरहाल, सवाल केवल मानसिकता का नहीं बल्कि सख्त कानून का भी है। क्योंकि सख्त कानून व्यक्ति को अपराध करने से रोकते हैं।

2012 के निर्भया कांड के बाद रेप से जुड़े कानून में बदलाव हुआ।

Kanjhawala case : राजधानी दिल्ली में 16 दिसंबर 2012 की रात चलती बस में 23 साल की लड़की के साथ जो दरिंदगी हुई उससे देश की रूह कांप गई। बस में लड़की के साथ छह लोगों ने गैंगरेप किया और इस दौरान उसे जो यातना दी उसने देश को झकझोर कर रख दिया। इस जघन्य घटना के खिलाफ लोगों का आक्रोश फूट पड़ा। आरोपियों को सख्त सजा देने की मांग को लेकर लोग सड़कों पर आ गए। इंडिया गेट से लेकर राष्ट्रपति भवन तक लोगों ने मार्च निकाला। इस दौरान उनकी पुलिस से झड़प हुई। सबकी यही मांग थी कि रेप के दोषियों को जल्द से जल्द फांसी पर चढ़ाया जाए। यही नहीं इस तरह के जघन्य अपराधों के लिए कड़े कानून लाए जाने की मांग उठी।

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रेप से जुड़े कानून में बदलाव करने पड़े

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लोगों के प्रदर्शन एवं दबाव के आगे सरकार को रेप से जुड़े कानून में बदलाव करने पड़े। महिलाओं के खिलाफ अपराध रोकने के लिए नए कानून लाए गए और रेप की परिभाषा बदली गई। नाबालिग लड़कियों के साथ दुष्कर्म के मामलों से निपटने के लिए पॉक्सो एक्ट बना। तो पीड़िताओं की मदद के लिए निर्भया फंड की व्यवस्था की गई। कार्यस्थलों पर यौन उत्पीड़न रोकने के लिए सरकार ने साल 2013 में यौन उत्पीड़न अधिनियम पारित किया। जिन संस्थाओं में दस से अधिक लोग काम करते हैं, वहां यह अधिनियम लागू होता है।

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