जैसे हिटलर की बॉडी की हुई थी पहचान,अब उसी टेस्ट से श्रद्धा की भी होगी शिनाख्त !
Shraddha Murder Case: Skull Super Imposition Test एक ऐसी तकनीकी है जिसके जरिए किसी व्यक्ति के खोपड़ी के कुछ हिस्से मौजूद होने पर उसका डिजिटल चेहरा बनाकर शिनाख्त की जाती है। फॉरेंसिक एक्सपर्ट इस तकनीक का इस्तेमाल तब करते हैं जब इंसान की पहचान अनुमान के मुताबिक नहीं हो पाती है।
- जर्मन तानाशाह एडॉल्फ हिटलर की मौत की गुत्थी सुलझाने में स्कल सुपर इंपोजीशन टेस्ट का हो चुका है इस्तेमाल
- भारत के बहुचर्चित शीना बोरा केस में भी पुलिस ने इसी टेस्ट के जरिए की थी पहचान
- आफताब ने श्रद्धा के 35 टुकड़े कर दिए। और 6 महीने बाद उसकी हत्या का पता चला था।
हिटलर, शीना बोरा का भी हो चुका है टेस्ट
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Skull Super Imposition Test एक ऐसी तकनीकी है जिसके जरिए किसी व्यक्ति के खोपड़ी के कुछ हिस्से मौजूद होने पर उसका डिजिटल चेहरा बनाकर शिनाख्त की जाती है। आज के दौर में इसे कंप्यूटर के जरिए किया जाता है। लेकिन यह तकनीकी पहले भी इस्तेमाल होती रही है। साल 1945 में जर्मन तानाशाह एडॉल्फ हिटलर की पहचान में भी इसी तकनीकी का यूज किया गया था। इसके बाद साल 2000 में रूस के पास हिटलर की रखी टूटी खोपड़ी और जबड़े से भी दोबारा शिनाख्त किया गया। इसमें Skull Super Imposition Test का सहारा लिया गया। हालांकि बाद इसको लेकर विवाद भी खड़ा हुआ। और अमेरिकी वैज्ञानिकों ने दावा किया कि वह अवशेष हिटलर के नहीं थे। हालांकि इसके बाद साल 2018 में एक बार फिर हिटलर की खोपड़ी के अवशेषों और दांतों की फिर जांच हुई। दाइचे वैले के अनुसार फ्रेंच पैथोलॉजिस्टों की एक टीम ने मॉस्को में रखे दांतों के एक सेट पर जांच की, और उसने बताया कि यह वही दांतों का सेट था जिसे मई 1945 में जर्मनी की राजधानी बर्लिन से बरामद किया गया था और वह हिटलर के थे।
इसी तरह भारत में बहुचर्चित शीना बोरा हत्याकांड में भी Skull Super Imposition Test का सहारा लिया गया था। और उसके जरिए शीरा बोरा की हत्या की गुत्थी सुलझी थी। साल 2012 में शीना बोरा की हत्या हुई थी। और अब टाइम्स ऑफ इंडिया के अनुसार दिल्ली पुलिस श्रद्धा के मामले में भी इसी टेस्ट का सहारा लेने पर विचार कर रही है।
कैसे होता है Skull Super Imposition Test
सुपरइम्पोजिशन टेस्ट का आमतौर पर इस्तेमाल सिर के कंकाल की जांच करने के लिए किया जाता है। फॉरेंसिक एक्सपर्ट इस तकनीक का इस्तेमाल तब करते हैं जब इंसान की पहचान अनुमान के मुताबिक नहीं हो पाती है। और जांच अधिकारी को संदेह रहता है कि बरामद खोपड़ी किसी विशेष लापता इंसान की हो सकती है। टेस्ट की मदद से जांच के दौरान मिले सिर के कंकाल और मौत से पहले उस शख्स की तस्वीरों की विश्लेषण किया जाता है। दोनों की तुलना करके यह समझने की कोशिश की जाती है कि उनमें कितनी समानताएं हैं। और एक डिजिटल इमेज बनाकर वास्तविक तस्वीर से मिलान की जाती है।
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