जब नार्को को नहीं माना जाता सबूत तो आफताब के टेस्ट के पीछे क्या है वजह
आफताब का नार्को टेस्ट हो चुका है। दिल्ली पुलिस का दावा है कि कई तरह की जानकारी सामने आई है। लेकिन अहम सवाल नार्को टेस्ट को सबूत के तौर पर पेश करने की है।
- आफताब पूनावाला का नार्को टेस्ट हुआ
- दिल्ली पुलिस का दावा, अहम सबूत मिले
- 18 मई को श्रद्धा वाकर की हुई थी हत्या
आफताब के पॉलीग्राफी टेस्ट के साथ ही नार्को टेस्ट भी हो गया । नार्को टेस्ट में आफताब ने गुनाह भी कबूल लिया है लेकिन अब भी आफताब बच सकता है क्योंकिनार्को टेस्ट पर 100 % भरोसा नहीं किया जा सकता। नार्को टेस्ट में आरोपी को Heavy Drug ही दिया जाता है जिसके प्रभाव में आकर आरोपी सच बोलने लगता है लेकिन अगर आरोपी drug addict या alcoholic रहा है तो उसका tolerance level भी ज्यादा होगा। ऐसे स्थिति में वो semi-consciousness हालात में भी झूठ बोल सकता है । कुछ केस में ये पाया गया कि नार्को टेस्ट के दौरान आरोपी ने झूठ भी बोला है। अगर आरोपी शातिर है तो वो इस टेस्ट से बच भी सकता है। अगर किसी व्यक्ति का अपने ऊपर काफी हद तक काबू है तो नार्को टेस्ट फेल साबित हो सकता है।
संविधान के अनुच्छेद 20 के सेक्शन 3 को समझिए
दूसरी बात ये है कि संविधान के अनुच्छेद 20 के सेक्शन 3 के तहत ये कहा गया है कि किसी भी आरोपी को (witness against himself) यानी अपने ही खिलाफ गवाह बनाने पर मजबूर नहीं किया जा सकता । इसकी कोई कानूनी इसी आधार पर साल 2010 में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि ब्रेन मैपिंग, नार्को और पॉलीग्राफी टेस्ट गैरकानूनी हैं।अब आपको लगेगा कि अगर नार्को टेस्ट में कोई झूठ बोल सकता है या नार्को टेस्ट को कोर्ट नहीं मानती तो फिर नार्को टेस्ट किया ही क्यों गया ।दरअसल, नार्को टेस्ट तब किया जाता है जब किसी केस में या ता आरोपी लगातार बयान बदल रहा हो या फिर पुलिस के हाथ में बहुत पुख्ता चीजें ना हों, श्रद्धा मर्डर केस में भी पुलिस के पास ना चश्मदीद गवाह है, ना श्रद्धा की बॉडी मिली है इसलिए पुलिस पॉलीग्राफ, नार्को टेस्ट के भरोसे हैं।
नार्को टेस्ट इसलिए जरूरी
पुलिस भी जानती है कि नार्को टेस्ट में कबूले गुनाह के दम पर आफताब को सजा नहीं हो सकती है लेकिन नार्को टेस्ट के जरिए आफताब से जो भी जानकारी पुलिस को मिली है उसके आधार पर पुलिस आगे की कार्रवाई कर सकती है यानी नार्को टेस्ट से पुलिस को नए सुराग मिल सकते हैं, उदाहरण के लिए नार्को टेस्ट में आफताब ने हथियार और श्रद्धा के मोबाइल के बारे में बताया तो पुलिस उस लोकेशन पर सर्च कर सकती है जिसका जिक्र आफताब ने किया। इसी वजह से पुलिस शायद एक बार फिर सर्च ऑपरेशन चला सकती है।
श्रद्धा मर्डर केस में पुलिस को अभी बहुत मेहनत करनी हैं, हर पहलू की बारीकी से जांच करनी हैं और सबसे बड़ी चुनौती ये है कि कोर्ट में ये कैसे साबित किया जाए कि श्रद्धा का मर्डर आफ़ताब ने ही किया है, ऐसा पहली बार नहीं है जब पुलिस को किसी मर्डर केस को सुलझाने में इतने पापड़ बेलने पड़ रहे हैं ऐसे कई केस है जिन्होंने पुलिस को पानी पिला दिया है ।
- 1999 में पहली बार सीरियल महिला किलर के नाम से कुख्यात...केडी केमपम्मा नाम सामने आया
- ये मंदिर के प्रसाद में साइनाइड ज़हर खिलाकर महिलाओं की हत्या करती थी, हत्या के इस तरीके की वजह से इसे 'साइनाइड मल्लिका' नाम दिया गया
- केडी केमपम्मा बेंगलूरु के एक मंदिर में पूजा पाठ करती थी
- वहां आने वाली अमीर महिलाओं से मिलती जुलती और उनके दुखों के बारे में जानती।
- ये उन्हें भगवान के चमत्कार की कहानियां सुनाती और उन्हें अपने झांसे में लेकर उनके कष्टों को दूर करने की बात करती, इसके लिए ये खास अनुष्ठान के लिए महिलाओं को सुनसान जगह पर बुलाती।
- फिर प्रसाद में साइनाइड मिलाती और महिला को दे देती। इसके बाद ये साइनाइड किलर, महिला की लाश से सारे गहने और पैसे छीनकर वहां से फरार हो जाती।
- केडी केमपम्मा ने 6 महिलाओं की हत्या की लेकिन इस केस को सुलझाने में पुलिस को 8 साल लग गये, 2007 में केडी केमपम्मा गिरफ़्तार किया गया और 2010 में उम्र कैद की सजा मिली
- इसी तरह 1960 के दशक में मुंबई में साइको किलर के नाम से कुख्यात रमन राघव केस भी है
- रमन राघव फुटपाथ पर सोने वाले गरीब- मजदूरों की हत्या करता था
- रमन राघव के पुराने पुलिस रिकॉर्ड में ज्यादा जानकारी थी
- ये हत्यारा लोगों के सिर पर भारी चीज से वार करके हत्या करता था
- करीब 8 साल में रमन को अरेस्ट किया इस दौरान इसने 40 लोगों की हत्या की
- इसे भी उम्र कैद की सज़ा मिली लेकिन किडनी बीमारी की वजह से 1995 में रमन की मौत हो गई
- इसी तरह 2004 में पंजाब में दरबारा सिंह के नाम के सीरियल किलर का नाम सामने आया
- इस आदमी ने 17 बच्चों की हत्या की
- हत्या करने के लिए ये बच्चों को टॉफ़ी-मिठाई लालच देकर अपने पास बुलाता था और मार देता था
- इसे पकड़ने में भी पुलिस को करीब 2 साल लग गये, 2018 में जेल में सज़ा के दौरान इसकी मौत हो गई ।
ऐसे मिलेंगे सुराग
आफताब का पुराना मोबाइल फ़ोन दिल्ली पुलिस से बरामद कर लिया हैं। जिसे उसने बेच दिया था। बताया जा रहा है कि सबूत मिटाने के लिए उसने ऐसा किया। फिलहाल पुलिस को उम्मीद है कि इस मोबाइल के मिलने से अहम सबूत हाथ लग सकते है।पॉलीग्राफी टेस्ट या लाई डिटेक्टर टेस्ट - इसमें मशीन की मदद से संदिग्ध के हाव भाव को देखा जाता है उसकी मेंटल एक्टिविटी को भी नापता जाता है। सवालों के जवाब देते वक्त मशीन इंसान की सभी तरह की एक्टिविटी का चार्ट तैयार करती है। संदिग्ध की फिजिकल एक्टिविटी जैसे, हार्टबीट, नाड़ी, श्वसन दर और पसीना को नोट किया जाता है।ब्रेन मेपिग टेस्ट में संदिग्ध को न तो कोई दवा पिलाई जाती है, ना कोई इंजेक्शन लगाया जाता है.सिर्फ ब्रेन मेपिग टेस्ट लेब में एक कुर्सी पर बिठाया जाता है और संदिग्ध के सिर पर एक हेलमेट जैसा दिखने वाला जिसे हेडबैंड कहते हैं पहनाया जाता जिसमें इसमें सेंसर लगे होते हैं।नार्को टेस्ट के बारे में आपने इतना सुना होगा कि इस टेस्ट के जरिये संदिग्ध व्यक्ति से सच उगलवाया जाता है
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