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लोक गायक आलोक पाण्डेय गोपाल को डॉक्टरेट की मानद उपाधि, BHU से सीखीं संगीत की बारीकियां

भोजपुरी लोकगायन को राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय मंच पर प्रतिष्ठा दिलाने वाले प्रख्यात लोकगायक आलोक पाण्डेय गोपाल को थावे विद्यापीठ ने विद्या वाचस्पति (डॉक्टरेट) की मानद उपाधि से सम्मानित किया है। यह सम्मान उन्हें भारतीय लोकसंस्कृति के वैश्विक स्तर पर प्रचार-प्रसार, हिंदी एवं भोजपुरी साहित्य के संरक्षण और संवर्धन में उनके अमूल्य योगदान के लिए प्रदान किया गया है।

Folk singer Alok Pandey Gopal gets honorary doctorate degreeFolk singer Alok Pandey Gopal gets honorary doctorate degreeFolk singer Alok Pandey Gopal gets honorary doctorate degree

Folk singer Alok Pandey Gopal gets honorary doctorate degree

भोजपुरी लोकगायन को राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय मंच पर प्रतिष्ठा दिलाने वाले प्रख्यात लोकगायक आलोक पाण्डेय गोपाल को थावे विद्यापीठ ने विद्या वाचस्पति (डॉक्टरेट) की मानद उपाधि से सम्मानित किया है। बाबा हरिहरनाथ मंदिर, सोनपुर में थावे विद्यापीठ के विशेष अधिवेशन के दौरान यह उपाधि दी गई, जिसमें विद्यापीठ के कुलपति डॉ. विनय पाठक, कुलसचिव डॉ. पीएस दयाल, पूर्व केंद्रीय मंत्री डॉ. संजय पासवान, प्रति-कुलपति जंग बहादुर पांडे ने उन्हें मानद उपाधि से नवाजा। यह सम्मान उन्हें भारतीय लोकसंस्कृति के वैश्विक स्तर पर प्रचार-प्रसार, हिंदी एवं भोजपुरी साहित्य के संरक्षण और संवर्धन में उनके अमूल्य योगदान के लिए प्रदान किया गया है।

आलोक पाण्डेय गोपाल का जन्म 20 जनवरी 1992 को बिहार के सीवान में हुआ था। उनके पिता, पंडित रामेश्वर पांडे, एक शास्त्रीय गायक थे, जिन्होंने गोपाल को संगीत की प्रारंभिक शिक्षा दी। गोपाल ने बनारस हिंदू विश्वविद्यालय (बीएचयू) से संगीत की बारीकियां सीखीं और फिर गोरखपुर विश्वविद्यालय से हिंदी में एम.ए., प्रयाग संगीत समिति से संगीत प्रभाकर (बी.एड) और प्राचीन कला केंद्र, चंडीगढ़ से भास्कर (एम.ए. वोकल) की डिग्री हासिल की हैं। उन्होंने डीडी किसान पर प्रसारित होने वाले लोकप्रिय रियलिटी शो 'माटी के लाल' में जीत हासिल करके भारत के पहले लोक स्टार का खिताब जीता।

संगीत और साहित्य में योगदान

आलोक पाण्डेय गोपाल ने भारतीय लोकसंस्कृति और साहित्य के संरक्षण और संवर्धन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। वहीं सामाजिक मुद्दों पर जागरूकता फैलाने के लिए संगीत का उपयोग किया। उन्होंने डिजिटल मंच के माध्यम से लोक संगीत को नई पीढ़ी तक पहुंचाया। वहीं, युवा पीढ़ी को लोक संगीत और संस्कृति के प्रति प्रेरित किया। गोपाल की गायन शैली में बनारसी अंदाज के साथ-साथ पूरबी, निर्गुण, कजरी, चैती, होली और अन्य शैलियों की झलक मिलती है। उन्होंने न केवल भोजपुरी, बल्कि अवधी, ब्रज, मैथिली, मगही और नागपुरी (आदिवासी) भाषाओं में भी अपनी कला का प्रदर्शन किया है।

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