Bennett University: बेनेट विश्वविद्यालय में 'भारत में परिवर्तनकारी संविधानवाद' पर संपन्न हुआ अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन, जानें खास बातें
Bennett University: बेनेट विश्वविद्यालय में एक खास अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन का आयोजन किया गया, जिसकी थीम थी 'भारत में परिवर्तनकारी संविधानवाद' जानें इससे जुड़ी खास बातें
प्रो. (डॉ.) दिलीप उके
Bennett University: बेनेट विश्वविद्यालय में एक खास अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन का आयोजन किया गया। इसका विषय 'भारत में परिवर्तनकारी संविधानवाद' था। इस दौरान खास बिंदुओं पर चर्चा करेंगे। इस अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन में बताया गया - 'संविधानवाद सीमित सरकार के बारे में है, लेकिन यह शासन की सीमा नहीं बताता है।' यह टिप्पणी महाराष्ट्र नेशनल लॉ यूनिवर्सिटी, मुंबई के कुलपति प्रो. (डॉ.) दिलीप उके ने की, जो बेनेट यूनिवर्सिटी के लॉ स्कूल द्वारा आयोजित 'संविधान सप्ताह समारोह' में सोमवार को बतौर मुख्य अतिथि शामिल हुए थे।
उन्होंने कहा कि हमें ध्यान रखना चाहिए कि संविधानवाद के अस्तित्व के लिए संविधान की उपस्थिति कोई पूर्व शर्त नहीं है। इस दौरान बेनेट लॉ स्कूल ने प्रशिक्षण और अनुसंधान से संबंधित शैक्षणिक कार्यक्रमों में सहयोग करने के लिए महाराष्ट्र नेशनल लॉ यूनिवर्सिटी, मुंबई के साथ एक समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किए। समझौते के तहत फैकल्टी और छात्र एक एक्सचेंज प्रोग्राम (विनिमय कार्यक्रम) में शामिल होंगे। साथ ही, इसमें कानून उद्योग की सर्वोत्तम प्रथाओं को लाने के लिए संयुक्त रूप से पाठ्यचर्या और सह-पाठयक्रम कार्यक्रम आयोजित किए जाएंगे।
समापन समारोह में मुख्य अतिथि प्रो. (डॉ.) दिलीप
सम्मेलन के समापन समारोह में मुख्य अतिथि प्रो. (डॉ.) दिलीप उके की उपस्थिति में तीन तकनीकी सत्रों के दौरान बड़ी संख्या में शोधकार्यों से संबंधित पेपर प्रस्तुतियों का अवलोकन किया गया। सम्मेलन का ध्यान मुख्य रूप से संवैधानिकता के तहत अधिकारों और न्याय के सिद्धांतों पर था। प्रो. (डॉ.) दिलीप उके ने संविधानवाद को परिभाषित किया और संविधानवाद व परिवर्तनकारी संविधानवाद के बीच अंतर को पहचानने के महत्व पर जोर दिया।
सम्मेलन के विषय को रेखांखित करते हुए उन्होंने कहा, "परिवर्तनकारी संविधानवाद असल में आर्थिक और सामाजिक पुनर्निर्माण का एक माध्यम है।" उन्होंने जोर देते हुए कहा कि लोकतंत्र की परियोजना देश में चुनावों के मुकाबले कहीं ज्यादा महत्व रखती है क्योंकि इसमें समाज का संपूर्ण पुनर्निर्माण शामिल होता है। यही कारण है कि हमें 'परिवर्तनकारी संविधानवाद' की अत्यधिक आवश्यकता है।" प्रो. (डॉ.) उके ने कहा, "परिवर्तनकारी संविधानवाद भारतीय संविधान में अंतर्निहित है।"
संबोधन के अंत में प्रो. उके ने इस बात पर जोर दिया कि अंततः यह देश के नागरिकों पर निर्भर है कि वे मौलिक कर्तव्यों को एक बोझ के रूप में नहीं बल्कि 'संवैधानिक धर्म' के रूप में लें। ऐसा करते हुए लोगों को सबसे पहले खुद को बदलने का संकल्प लेना होगा। इसी से हमें सफलता, पूर्णता और परिवर्तनकारी संवैधानिकता के एहसास की गारंटी मिलेगी।
देश और दुनिया की ताजा ख़बरें (Hindi News) अब हिंदी में पढ़ें | एजुकेशन (education News) की खबरों के लिए जुड़े रहे Timesnowhindi.com से | आज की ताजा खबरों (Latest Hindi News) के लिए Subscribe करें टाइम्स नाउ नवभारत YouTube चैनल
End of Article
TNN एजुकेशन डेस्क author
सरकारी नौकरी हर युवा की चाह है। आईएएस, पीसीएस जैसी कई नौकरियां ऐसी हैं, जिनके मिलने के बाद करियर फर्...और देखें
End Of Feed
© 2025 Bennett, Coleman & Company Limited