Quit India Movement, Kranti Diwas 2023: क्यों मनाया जाता है क्रांति दिवस, जानें भारत छोड़ो आंदोलन का इतिहास और महत्व
Quit India Movement Day, Kranti Diwas 2023: भारत छोड़ो आंदोलन 8 अगस्त 1942 को चलाने का फैसला किया गया और इसकी जमीनी स्तर पर शुरुआत अगले दिन 9 अगस्त को हुई थी। इस वजह से इसे अगस्त क्रांति दिवस के नाम से भी जाना जाता है।
KRANTI DIWAS 2023
Quit India Movement Day, Kranti Diwas 2023 Date, History, Significance: अंग्रेजी सत्ता को देश की धरती से उखाड़ फेंकने के लिए महात्मा गांधी के नेतृत्व में जो आखिरी आंदोलन हुआ था, उसे 'भारत छोड़ो आंदोलन' के नाम से जाना जाता है। 8 अगस्त 1942 को भारत छोड़ो आंदोलन (Quit India Movement) चलाने का फैसला किया गया और इसकी जमीनी स्तर पर शुरुआत अगले दिन 9 अगस्त को हुई थी। इस वजह से इसे अगस्त क्रांति दिवस (August Kranti Diwas) के रूप में भी जाना जाता है।
क्यों शुरू हुआ था आंदोलन
भारत छोड़ो आंदोलन की शुरुआत राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी (AICC) के बॉम्बे अधिवेशन में की थी। दरअसल, द्वितीय विश्व युद्ध जब शुरू हुआ तो अंग्रेजों ने भारत से समर्थन मांगा था। इसके बदले में भारत को आजादी का वादा किया गया था। हालांकि, जब अंग्रेजों ने अपना वादा नहीं निभाया तो महात्मा गांधी ने उनके खिलाफ अंदोलन शुरू कर दिया। इसमें पूरे देश के लोग शामिल हुए थे, जिससे अंग्रेजी शासन की जड़े हिल गई थीं। इस आंदोलन के दौरान ही महात्मा गांधी ने करो या मरो का नारा भी दिया था।
भारत छोड़ो आंदोलन का महत्व
भारत छोड़ो आंदोलन ने देश के स्वतंत्रता संग्राम में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। इस आंदोलन को सही मायने में एक जन- आंदोलन माना जाता है। इस आंदोलन ने युवाओं, किसानों, महिलाओं और मजदूर वर्ग सहित लाखों लोगों को प्रभावित किया था। कांग्रेस के पहले आंदोलनों के मुकाबले भारत छोड़ो आंदोलन कुछ हद तक हिंसक भी था। इसका शायद सबसे बड़ा कारण यह रहा होगा कि आंदोलन की घोषणा होते ही कांग्रेस के सभी बड़े नेताओं को गिरफ्तार कर लिया गया और आंदोलन की बागडोर आम जनता के हाथों में आ गई।
भारत की आजादी में बड़ा योगदान
इस आंदोलन के दौरान ही देश में राम मनोहर लोहिया, सुचेता कृपलानी, छोटूभाई पुरानीक , बीजू पटनायक, अच्युत पटवर्धन, अरूणा आसफ अली, आर.पी. गोयनका, जयप्रकाश नारायण, उषा मेहता, सुमति मुखर्जी आदि नेता उभरे थे | यह आंदोलन आजादी की लड़ाई में एक महत्वपूर्ण मोड़ साबित हुआ था। अंग्रेजी हुकुमत ने आंदोलन का तो दमन कर दिया था लेकिन उन्हें इस बात का एहसास हो गया था कि भारत पर शासन करना अब उनके लिए मुश्किल हो गया है।
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