Manmohan Singh: डॉक्टर बनाना चाहते थे पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के पिता, जानें क्यों बीच रास्ते छोड़ दी डॉक्टरी
Manmohan Singh: जानें दिवंगत व पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के बारे में रोचक किस्सा। जब उनके पिता उन्हें डॉक्टर बनाना चाहते थे, लेकिन उनकी रुचि इस फील्ड में नहीं थी। उन्होंने कैसे तैसे प्री-मेडिकल कोर्स में दाखिला लिया, लेकिन जल्द ही उन्होंने अपनी रुचि खो दी।
मनमोहन सिंह से जुड़ा दिलचस्प किस्सा
Manmohan Singh: पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह का 26 दिसंबर 2024 की रात दिल्ली AIIMS में 92 वर्ष की आयु में निधन हो गया। आज हम उनसे जुड़ा बहुत दिलचस्प किस्सा जानेंगे, अर्थशास्त्री से राजनेता बने मनमोहन सिंह कभी डॉक्टर बनने की राह पर थे, लेकिन उन्होंने अपनी दिल की सुनी और बीच रास्ते पढ़ाई छोड़ दी। एक समय था जब उनके पिता उन्हें डॉक्टर बनाना चाहते थे, लेकिन उनकी रुचि इस फील्ड में नहीं थी। उन्होंने कैसे तैसे प्री-मेडिकल कोर्स में दाखिला ले लिया, लेकिन जल्द ही उन्होंने अपनी रुचि खो दी, ऐसा उनकी बेटी द्वारा लिखी गई किताब 'Strictly Personal: Manmohan and Gursharan' में बताया गया है।
2014 में प्रकाशित किताब "Strictly Personal: Manmohan and Gursharan" में इस बात जिक्र है के वे अर्थशास्त्र विषय को पसंद करते थे, वे एक हसंमुख इंसान थे और उनका सेंस ऑफ ह्यूमर बहुत अच्छा था।
कुछ महीनों में छोड़ दी डॉक्टरी
अप्रैल 1948 में Manmohan Singh को अमृतसर के खालसा कॉलेज में दाखिला मिला। किताब के अनुसार, "मनमोहन सिंह के पिता चाहते थे कि वे डॉक्टर बनें, इसलिए उन्होंने दो साल के एफएससी कोर्स में दाखिला लिया, जिससे उन्हें आगे की पढ़ाई के लिए मेडिसिन की पढ़ाई करनी पड़ी। कुछ महीनों बाद ही उन्होंने पढ़ाई छोड़ दी। डॉक्टर बनने में उनकी रुचि खत्म हो गई थी। वास्तव में, विज्ञान की पढ़ाई में भी उनकी रुचि खत्म हो गई थी।"
"मैं अपने पिता के साथ उनकी दुकान पर चला गया, लेकिन ये मुझे पसंद नहीं आया, क्योंकि मेरे साथ बराबरी का व्यवहार नहीं किया जाता था। मुझे पानी लाने और चाय लाने जैसे काम कहे जाते थे। फिर मैंने सोचा कि मुझे कॉलेज वापस जाना चाहिए। और मैंने सितंबर 1948 में हिंदू कॉलेज में प्रवेश लिया"
अर्थशास्त्र एक ऐसा विषय था जिसने उन्हें (Manmohan Singh) तुरंत आकर्षित किया।
"Manmohan Singh को हमेशा गरीबी के मुद्दों में दिलचस्पी थी, कुछ देश गरीब क्यों हैं, दूसरे अमीर क्यों हैं। ऐसे सवाल व इनके जवाब जानने में उन्हें दिलचस्पी रहती थी।
कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय में अध्ययन करते समय, पैसा ही एकमात्र वास्तविक समस्या थी जो श्री सिंह (Manmohan Singh) को परेशान करती थी। "उनकी ट्यूशन और रहने का खर्च सालाना लगभग 600 पाउंड था। पंजाब विश्वविद्यालय की छात्रवृत्ति से उन्हें लगभग 160 पाउंड मिलते थे। बाकी के लिए उन्हें अपने पिता पर निर्भर रहना पड़ता था।
उनकी बेटी ने किताब में लिखा कि उनके पिता कभी बाहर नहीं खाते थे, और शायद ही कभी बीयर या वाइन पीते थे, अगर कभी घर से पैसे कम पड़ जाते या समय पर नहीं आते, तो इन स्थितियों से भी अपने आप जूझते थे। "जब ऐसा होता था, तो वे खाना छोड़ देते थे या कुछ सस्ता खाकर गुजारा करते थे"
"जब वे चिंतनशील मूड में होते थे, तो अपनी नाक के किनारे तर्जनी अंगुली रखकर बैठते थे।
हंसना और हंसाना भी जानते थे
उनकी बेटी किताब में लिखती हैं कि उनके दोस्तों से पता चलता है कि भले ही वे बड़े अर्थशास्त्री क्यों न हों, लेकिन यह जानकर सुकून मिलता था कि वे हंस भी सकते थे और चुटकुले भी सुना सकते थे। हमारे साथ, वे शायद ही कभी ऐसा करते थे।
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नीलाक्ष सिंह author
उत्तर प्रदेश की राजधानी, नवाबों के शहर लखनऊ का रहने वाला हूं। स्कूली शिक्षा, ग्रेजुएशन, पोस्ट ग्र...और देखें
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