Ramdhari singh dinkar poems for children: रामधारी सिंह दिनकर की बच्‍चों के लिए रोचक कविताएं

Poems of ramdhari singh dinkar : रामधारी सिंह 'दिनकर' हिन्दी के एक प्रमुख लेखक, कवि व निबन्धकार थे। वे आधुनिक युग के श्रेष्ठ वीर रस के कवि के रूप में स्थापित हैं।

Ramdhari singh dinkar poems for children: रामधारी सिंह दिनकर की बच्‍चों के लिए रोचक कविताएं

Poems of ramdhari singh dinkar : हिन्‍दी साहित्‍य के सहस्‍त, प्रसिद्ध लेखक और कवि रामधारी सिंह दिनकर जी की कविताएं बच्‍चों में नए उर्जावान का संचार करती हैं। उनकी ओर से रचित हर कविता रोचक होने के साथ-साथ प्रेरणादायी भी होती हैं । यहां दी गई है दिनकर जी की बच्‍चों के लिए कुछ प्रसिद्ध कविताएं ।

1. चांद का कुर्ता

हठ कर बैठा चाँद एक दिन, माता से यह बोला,

‘‘सिलवा दो माँ मुझे ऊन का मोटा एक झिंगोला।

सनसन चलती हवा रात भर, जाड़े से मरता हूँ,

ठिठुर-ठिठुरकर किसी तरह यात्रा पूरी करता हूँ।

आसमान का सफर और यह मौसम है जाड़े का,

न हो अगर तो ला दो कुर्ता ही कोई भाड़े का।’’

बच्चे की सुन बात कहा माता ने, ‘‘अरे सलोने!

कुशल करें भगवान, लगें मत तुझको जादू-टोने।

जाड़े की तो बात ठीक है, पर मैं तो डरती हूँ,

एक नाप में कभी नहीं तुझको देखा करती हूँ।

कभी एक अंगुल भर चौड़ा, कभी एक फुट मोटा,

बड़ा किसी दिन हो जाता है, और किसी दिन छोटा।

घटता-बढ़ता रोज किसी दिन ऐसा भी करता है,

नहीं किसी की भी आँखों को दिखलाई पड़ता है।

अब तू ही ये बता, नाप तेरा किस रोज़ लिवाएँ,

सी दें एक झिंगोला जो हर रोज बदन में आए?’’

2. चूहे की दिल्ली-यात्रा

चूहे ने यह कहा कि चूहिया! छाता और घड़ी दो,

लाया था जो बड़े सेठ के घर से, वह पगड़ी दो।

मटर-मूँग जो कुछ घर में है, वही सभी मिल खाना,

खबरदार, तुम लोग कभी बिल से बाहर मत आना!

बिल्ली एक बड़ी पाजी है रहती घात लगाए,

जाने वह कब किसे दबोचे, किसको चट कर जाए।

सो जाना सब लोग लगाकर दरवाजे में किल्ली,

आज़ादी का जश्न देखने मैं जाता हूँ दिल्ली।

चूँ-चूँ-चूँ, चूँ-चूँ-चूँ, चूँ-चूँ-चूँ,

दिल्ली में देखूँगा आज़ादी का नया जमाना,

लाल किले पर खूब तिरंगे झंडे का लहराना।

अब न रहे, अंग्रेज, देश पर अपना ही काबू है,

पहले जहाँ लाट साहब थे वहाँ आज बाबू है!

घूमूँगा दिन-रात, करूँगा बातें नहीं किसी से,

हाँ फुर्सत जो मिली, मिलूँगा जरा जवाहर जी से।

गाँधी युग में कैन उड़ाए, अब चूहों की खिल्ली?

आज़ादी का जश्न देखने मैं जाता हूँ दिल्ली।

चूँ-चूँ-चूँ, चूँ-चूँ-चूँ, चूँ-चूँ-चूँ,

पहन-ओढ़कर चूहा निकला चुहिया को समझाकर,

इधर-उधर आँखें दौड़ाईं बिल से बाहर आकर।

कोई कहीं नहीं था, चारों ओर दिशा थी सूनी,

शुभ साइत को देख हुई चूहे की हिम्तत दूनी।

चला अकड़कर, छड़ी लिये, छाते को सिर पर ताने,

मस्ती मन की बढ़ी, लगा चूँ-चूँ करके कुछ गाने!

इतने में लो पड़ी दिखाई कहीं दूर पर बिल्ली,

चूहेराम भगे पीछे को, दूर रह गई दिल्ली।

चूँ-चूँ-चूँ, चूँ-चूँ-चूँ, चूँ-चूँ-चूँ,

3. सूरज का ब्याह

उड़ी एक अफवाह, सूर्य की शादी होने वाली है,

वर के विमल मौर में मोती उषा पिराने वाली है।

मोर करेंगे नाच, गीत कोयल सुहाग के गाएगी,

लता विटप मंडप-वितान से वंदन वार सजाएगी!

जीव-जन्तु भर गए खुशी से, वन की पाँत-पाँत डोली,

इतने में जल के भीतर से एक वृद्ध मछली बोली-

‘‘सावधान जलचरो, खुशी में सबके साथ नहीं फूलो,

ब्याह सूर्य का ठीक, मगर, तुम इतनी बात नहीं भूलो।

एक सूर्य के ही मारे हम विपद कौन कम सहते हैं,

गर्मी भर सारे जलवासी छटपट करते रहते हैं।

अगर सूर्य ने ब्याह किय, दस-पाँच पुत्र जन्माएगा,

सोचो, तब उतने सूर्यों का ताप कौन सह पाएगा?

अच्छा है, सूरज क्वाँरा है, वंश विहीन, अकेला है,

इस प्रचंड का ब्याह जगत की खातिर बड़ा झमेला है।’’

4. पढ़क्‍कू की सूझ

एक पढ़क्‍कू बड़े तेज थे, तर्कशास्‍त्र पढ़ते थे,

जहाँ न कोई बात, वहाँ भी नए बात गढ़ते थे।

एक रोज़ वे पड़े फिक्र में समझ नहीं कुछ न पाए,

"बैल घुमता है कोल्‍हू में कैसे बिना चलाए?"

कई दिनों तक रहे सोचते, मालिक बड़ा गज़ब है?

सिखा बैल को रक्‍खा इसने, निश्‍चय कोई ढब है।

आखिर, एक रोज़ मालिक से पूछा उसने ऐसे,

"अजी, बिना देखे, लेते तुम जान भेद यह कैसे?

कोल्‍हू का यह बैल तुम्‍हारा चलता या अड़ता है?

रहता है घूमता, खड़ा हो या पागुर करता है?"

मालिक ने यह कहा, "अजी, इसमें क्‍या बात बड़ी है?

नहीं देखते क्‍या, गर्दन में घंटी एक पड़ी है?

जब तक यह बजती रहती है, मैं न फिक्र करता हूँ,

हाँ, जब बजती नहीं, दौड़कर तनिक पूँछ धरता हूँ"

कहाँ पढ़क्‍कू ने सुनकर, "तुम रहे सदा के कोरे!

बेवकूफ! मंतिख की बातें समझ सकोगे थोड़े!

अगर किसी दिन बैल तुम्‍हारा सोच-समझ अड़ जाए,

चले नहीं, बस, खड़ा-खड़ा गर्दन को खूब हिलाए।

घंटी टून-टून खूब बजेगी, तुम न पास आओगे,

मगर बूँद भर तेल साँझ तक भी क्‍या तुम पाओगे?

मालिक थोड़ा हँसा और बोला पढ़क्‍कू जाओ,

सीखा है यह ज्ञान जहाँ पर, वहीं इसे फैलाओ।

यहाँ सभी कुछ ठीक-ठीक है, यह केवल माया है,

बैल हमारा नहीं अभी तक मंतिख पढ़ पाया है।

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