Shyama Raina Story: 82 की उम्र में फर्राटेदार अंग्रेजी सिखा रही ये महिला, रिटायरमेंट के बाद बदली सैकड़ों जिंदगियां

Shyama Raina Story: श्यामा छोटी उम्र से ही टीचर बनना चाहती थी और इसके लिए उन्होंने मेहनत की। अंग्रेजी में तेज होने की वजह से उन्होंने अपनी पूरी पढ़ाई अंग्रेजी में ही की। कुछ सालों तक उन्होंने हॉस्टल में वार्डन की जिम्मेदारी निभाई और फिर कॉलेज में टीचर हो गईं।

Shyama Raina Story

Shyama Raina Story: आज के समय में जादातर लोग एक लंबे समय तक सरकारी नौकरी की तैयारी करते हैं और जब उन्हें नौकरी मिल जाती है तो वो नौकरी करते हैं। कई सालों तक नौकरी करने के बाद रिटायरमेंट लेकर घर बैठ जाते हैं। आज हम एक ऐसी महिला की कहानी बताएंगे, जो 82 साल की उम्र स्लम में बच्चों को फर्राटेदार अंग्रेजी सीखा रही हैं। उन्होंने केवल बच्चों को अंग्रेजी ही नहीं सिखाई है बल्कि उनसे अंग्रेजी सीखने वाले बच्चे आज देश के प्रमुख शैक्षणिक संस्थाओं में पढ़ाई के साथ नर्सिंग और टीचिंग से लेकर फैशन करियर तक में लगे हुए हैं। वह कक्षा 9 से लेकर 12 तक के बच्चों को अंग्रेजी सीखा रही हैं। बच्चे केवल अंग्रेजी बोलने में ही अच्छे ना हो बल्कि उनकी ग्रामर भी अच्छी हो, इस पर भी वह ध्यान दे रही हैं।

रिटायर होने के बाद चुना ये रास्ता

37 सालों तक VML गर्ल्स कॉलेज में पढ़ाने वाली श्यामा रैना रिटायर हो गईं। उन्होंने औरों की तरह घर पर बैठना ठीक नहीं समझा और अकेले दिन ही स्लम के बच्चों को इकट्ठा कर पढ़ाने लगीं। उनका कहना है कि नौकरी में पैसे तो मिल जाते हैं लेकिन इतना सुकून नहीं मिलता था, जितना स्लम के बच्चों को पढ़ाकर मिल रहा है। 22 सालों से स्लम के बच्चों को पढ़ा रही श्यामा रैना बच्चों की इंग्लिश नॉलेज पर जोर दे रही हैं। इतना ही नहीं बल्कि उनके पढ़ाई बच्चे सीबीएसई बोर्ड या फिर यूपी बोर्ड के 10वीं और 12वीं के एग्जाम में इंग्लिश सब्जेक्ट में करीब 90% नंबर भी ला रहे हैं।

छोटी उम्र से ही बनना चाहती थी टीचर

श्यामा छोटी उम्र से ही टीचर बनना चाहती थी और इसके लिए उन्होंने मेहनत की। अंग्रेजी में तेज होने की वजह से उन्होंने अपनी पूरी पढ़ाई अंग्रेजी में ही की। कुछ सालों तक उन्होंने हॉस्टल में वार्डन की जिम्मेदारी निभाई और फिर कॉलेज में टीचर हो गईं। इस बीच उन्हें कई बार विचार आया कि वह गरीब बच्चों को पढ़ाया लेकिन दो बेटियों और परिवार की जिम्मेदारी होने की वजह से वह ऐसा नहीं कर पा रही थी। जब वह रिटायर हुई तो उन्होंने देखा कि गाजियाबाद सेक्टर 62 के आसपास बहुत सारे बच्चे ऐसे ही घूमते हैं, जिनके पास पढ़ने के लिए पैसे नहीं हैं। उन्होंने ऐसे बच्चों को पढ़ाने की जिम्मेदारी उठाई और पिछले 22 सालों से बिना फीस के स्लम में रहने वाले बच्चों को अंग्रेजी की शिक्षा दे रही हैं।

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