Success Story: मां की बीमारी के कारण छोड़ी सेना की नौकरी, फिर कला में रुचि से पाया मुकाम

Success Story of Manmohan Singh Rathore: परिस्थितियां कई बार इस तरह सामने आती हैं कि सभी रास्ते बंद नजर आते हैं। सफल लोग इन्हीं बंद रास्तों के बीच एक नया रास्ता बनाते हैं और सफलता की कहानी लिखते हैं। आज हम आपको राजस्थान के बीकानेर के रहने वाले मनमोहन सिंह राठौड़ की कहानी से रूबरू कराने वाले हैं।

Success Story of Manmohan Singh Rathore

Success Story of Manmohan Singh Rathore: परिस्थितियां कई बार इस तरह सामने आती हैं कि सभी रास्ते बंद नजर आते हैं। ये ऐसी स्थिति होती है जब इंसान खुद को निराश पाता है। कुछ लोग यहीं हिम्मत हारकर बैठ जाते हैं जबकि सफल लोग इन्हीं बंद रास्तों के बीच एक नया रास्ता बनाते हैं और सफलता की कहानी लिखते हैं। आज हम आपको राजस्थान के बीकानेर के रहने वाले मनमोहन सिंह राठौड़ की कहानी से रूबरू कराने वाले हैं। 27 अगस्त 1984 को बीकानेर में जन्मे मनमोहन सिंह ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा बीकानेर के ही स्कूलों से प्राप्त की। इसके बाद उन्होंने बीकानेर के महाराजा गंगा सिंह विश्वविद्यालय से बीए की डिग्री भी हासिल की।

साल 2004 में मनमोहन सिंह का चयन भारतीय सेना में हो गया लेकिन 2008 में अपनी मां की बीमारी के कारण उन्हें सेना की नौकरी छोड़नी पड़ी। सेना की सरकारी नौकरी से त्यागपत्र देना उनके लिए आसान नहीं था। कुछ समय बाद उन्होंने गुरुग्राम में आईटी एवं डिजिटल मार्केटिंग की ट्रेनिंग ली और 2012 में इस क्षेत्र में काम करना शुरू किया। हालांकि उनका मन इसमें नहीं लगा।

कला और हस्तशिल्प में पाया मुकाम

यहीं से मनमोहन सिंह ने एक नई राह चुनी। उन्होंने राजस्थानी कला और हस्तशिल्प के क्षेत्र में करियर बनाने की सोची। कोरोना महामारी के दौरान उन्होंने क्राफ्टिथर (Craftyther) नाम की एक कंपनी बनाई और उसके द्वारा राजस्थानी कला और हस्तशिल्प के प्रोडक्ट्स को बेचना शुरू किया। इससे ना केवल वह खुद मजबूत हुए बल्कि राजस्थानी हस्तशिल्प को भी बढ़ावा मिला। उनकी कहानी बताती है कि यदि इच्छाशक्ति और मेहनत हो, तो किसी भी लक्ष्य को प्राप्त किया जा सकता है। उन्होंने स्थानीय कारीगरों के लिए भी रोजगार के अवसर पैदा किए हैं।

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