Swami Vivekananda Speech In Chicago: स्वामी विवेकानंद का शिकागो में दिया ऐतिहासिक भाषण, जिसने गाड़ दिया सनातन संस्कृति का ध्वज

Swami Vivekananda Speech In Chicago, Swami Vivekananda Speech In Hindi (स्वामी विवेकानंद का शिकागो भाषण): स्वामी विवेकानंद धर्म, दर्शन, इतिहास, कला, सामाजिक विज्ञान और साहित्य के (Swami Vivekananda Speech In Hindi) ज्ञाता थे। कल यानी 12 जनवरी को स्वामी विवेकानंद जी की जयंती (Swami Vivekananda Speech In Chicago) मनाई जाएगी। इसे हर साल राष्ट्रीय युवा दिवस (National Youth Day) के रूप में मनाया जाता है। ऐसे में यहां हम आपके स्वामी विवेकानंद का शिकागो में दिया ऐतिहासिक भाषण लेकर (National Youth Day Speech In Hindi) आए हैं।

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Swami Vivekananda Speech In Chicago: स्वामी विवेकानंद का शिकागो में दिया भाषण

Swami Vivekananda Speech In Chicago, Swami Vivekananda Speech In Hindi (स्वामी विवेकानंद का शिकागो भाषण): उठो जागो और तब तक मत लक्ष्य की प्राप्ति ना हो जाए...धर्म, दर्शन, इतिहास, कला, सामाजिक विज्ञान और साहित्य के ज्ञाता स्वामी विवेकानंद जी से तो आप सभी (Swami Vivekananda Speech In Hindi) परिचित होंगे। स्वामी जी का नाम आते ही मन में एक ऐसे तेजस्वी युवा सन्यासी की छवि मन में उतरती है, जिन्हें ज्ञान का भंडार कहा (Swami Vivekananda Speech In Chicago) जाता था। ज्ञान परंपरा के शिखर पुरुष स्वामी विवेकानंद ने पश्चिमी देशों के बड़े-बड़े विद्वानों को बौना साबित कर भारत को विश्वगुरु के रूप में पुनर्स्थापित किया और देश को एक नई (Swami Vivekananda Speech) पहचान दिलाई। उनकी सोच व दर्शन विश्व बंधुत्व की भावना से भरा हुआ था।

स्वामी विवेकानंद का पूरा नाम नरेंद्र नाथ दत्त था। इस बार 12 जनवरी को स्वामी विवेकानंद जी की 162वीं जयंती मनाई जाएगी। इस खास मौके पर स्कूल, कॉलेज से लेकर अन्य सामाजिक स्थलों पर तमाम तरह के कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं। साथ ही इस दिन के महत्व व इतिहास का जिक्र करने के लिए भाषण व निबंध प्रतियोगिता का आयोजन किया जाता है। ऐसे में यहां हम आपके लिए स्वामी विवेकानंद का शिकागो का शानदार भाषण लेकर आए हैं, जिसने भारत को विश्वगुरु के रूप में एक नई पहचान दिलाई।

Swami Vivekananda Speech In Hindi: गाड़ दिया सनातन संस्कृति का ध्वज

स्वामी विवेकानंद जी की जब बात होती है तो अमेरिका के शिकागो के धर्म संसद में साल 1893 दिए गए भाषण की चर्चा जरूर होती है। यह भाषण उन्होंने 11 सितंबर 1893 को दिया था। इस भाषण में स्वामी जी के पांच शब्दों ने पांच हजार वर्षों तक सनातन संस्कृति का ध्वज गाड़ दिया। यह पांच शब्द पूरी दुनिया में विश्व बंधुत्व का संदेश बनकर गूंज उठे। यहां आप स्वामी विवेकानंद के ऐतिहासिक भाषण पर एक नजर डाल लें।

Swami Vivekananda Speech In Chicago: स्वामी विवेकानंद का शिकागो भाषण

सिस्टर्स एंड ब्रदर्स ऑफ अमेरिका। मेरे अमेरिकी भाइयों और बहनों आपके इस स्नेहपूर्ण और जोरदार स्वागत से मेरा हृदय अपार हर्ष से भर गया है। मैं आपको दुनिया की सबसे प्राचीन संत परंपरा की तरफ से धन्यवाद देता हूं। मैं दुनिया की सबसे पुरानी संत परंपरा और सभी धर्मों की जननी की तरफ से धन्यवाद देता हूं। सभी जातियों और संप्रदायों के लाखों करोड़ों हिंदुओं की तरफ से आपका आभार व्यक्त करता हूं।

मैं इस मंच पर बोलने वाले कुछ वक्ताओं का भी धन्यवाद करना चाहता हूं जिन्होंने यह जाहिर किया कि दुनिया में सहिष्णुता का विचार पूरब के देशों से फैला है। मुझे गर्व है कि मैं उस धर्म से हूं जिसने दुनिया को सहिष्णुता और सार्वभौमिक स्वीकृति का पाठ पढ़ाया है। हम सिर्फ सार्वभौमिक सहिष्णुता पर ही विश्वास नहीं करते बल्कि हम सभी धर्मों को सच के रूप में स्वीकार करते हैं। मुझे गर्व है कि मैं उस देश से हूं जिसने सभी धर्मों और सभी देशों के सताए गए लोगों को अपने यहां शरण दी। मुझे गर्व है कि हमने अपने दिल में इसराइल की वो पवित्र यादें संजो रखी हैं जिनमें उनके धर्मस्थलों को रोमन हमलावरों ने तहस नहस कर दिया था और फिर उन्होंने दक्षिण भारत में शरण ली। मुझे गर्व है कि मैं एक ऐसे धर्म से हूं जिसने पारसी धर्म के लोगों को शरण दी और लगातार अब भी उनकी मदद कर रहा है।

मैं इस मौके पर वो श्लोक सुनाना चाहता हूं जो मैंने बचपन से याद किया, जिसे रोज करोड़ो लोग दोहराते हैं। जिस तरह अलग अलग जगहों से निकली नदियां अलग अलग रास्तों से होकर आखिरकार समुद्र में मिल जाती हैं, ठीक उसी तरह मनुष्य अपनी इच्छा से अलग अलग रास्ते चुनता है। ये रास्ते देखने में भले ही अलग अलग लगते हैं, लेकिन ये सब ईश्वर तक ही जाते हैं।

मोजूदा सम्मेलन जो कि आज तक की सबसे पवित्र सभाओं में से है, वह अपने आप में गीता में कहे गए इस उपदेश का प्रमाण है। जो भी मुझ तक आता है, चाहे कैसा भी हो मैं उस तक पहुंचाता हूं। लोग अलग अलग रास्ते चुनते हैं, अलग अलग परेशानियां झेलते हैं, लेकिन आखिर में मुझ तक पहुंचते हैं।

रुचिनां वैचित्र्यादृजुकुटिलनानापथजुषाम नृणामेको गम्यस्त्वमसि पयसामर्णव इव। यह श्लोक बोलते हुए स्वामी जी ने समझाने की कोशिश की सांप्रदायिकताएं, कट्टरताएं और इसके भयानक वंशज हठधमिर्ता लंबे समय से पृथ्वी को अपने शिकंजों में जकड़े हुए हैं। उन्होंने पृथ्वी को हिंसा से भर दिया है। कितनी बार ही यह धरती खून से लाल हुई है। कितनी ही सभ्यताओं का तबाह हुई हैं और न जाने कितने देश मिट गए हैं।

अगर ये भयानक राक्षस नहीं होते तो आज मानव समाज कहीं ज्यादा उन्नत होता, लेकिन अब उनका समय पूरा हो चुका है। मुझे पूरी उम्मीद है कि आज इस सम्मेलन का शंखनाद सभी हठधर्मिताओं, हर तरह के क्लेश, चाहे वे तलवार से हों या कलम से और सभी मनुष्यों के बीच की दुर्भावनाओं का विनाश करेगा।

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आदित्य सिंह author

मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान राम की नगरी अयोध्या का रहने वाला हूं। लिखने-पढ़ने का शौकीन, राजनीति और शिक्षा से जुड़े मुद्दों में विशेष रुचि। साथ ही हेल्...और देखें

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