हार के बाद अधीर रंजन चौधरी को सताने लगी चिंता? बयां किया दर्द; अपने राजनीतिक भविष्य पर कह दी ऐसी बात
West Bengal Politics: ममता से पंगा लेना अधीर रंजन चौधरी को भारी पड़ गया। यही वजह है कि अब उन्हें अपने राजनीतिक भविष्य की चिंता सताने लगी है। वो खुद अपना दर्द बयां कर रहे हैं और ये कह रहे हैं कि मेरा राजनीतिक भविष्य कैसा होगा, नहीं जानता हूं। लेकिन ये समझना जरूरी है कि आखिर उनकी ये हार हुई कैसे।
टेंशन में अधीर रंजन।
Adhir Ranjan vs Mamata Banerjee: इधर राहुल गांधी, मल्लिकार्जुन खड़गे समेत कांग्रेस के दिग्गज नेता विपक्षी गठबंधन INDIA में शामिल दलों को एकजुट करने की कोशिश में जुटे थे, तो उस वक्त पश्चिम बंगाल में प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष INDI गठबंधन में शामिल ममता बनर्जी और तृणमूल कांग्रेस के खिलाफ जहर उगलने में कोई कसर नहीं छोड़ रहे थे। नतीजा ये हुआ कि इंडिया गठबंधन का हिस्सा होने के बावजूद ममता बनर्जी ने पश्चिम बंगाल की सभी लोकसभा सीटों पर अलग और अकेले चुनाव लड़ने का फैसला कर लिया। हालांकि इससे ममता की टीएमसी को फायदा ही हुआ, कांग्रेस को एक सीट का नुकसान जरूर पहुंचा।
ममता से पंगा लेना अधीर रंजन चौधरी को पड़ा भारी
काफी लंबे समय से पश्चिम बंगाल की बहरामपुर लोकसभा सीट से चुनाव जीतते आ रहे अधीर रंजन चौधरी को लोकसभा चुनाव 2024 के नतीजों में बड़ा झटका लगा। सूबे में कांग्रेस की सीट 2 से घटकर 1 हो गई। ममता से पंगा लेना अधीर रंजन चौधरी को भारी पड़ गया। यही वजह है कि अब उन्हें अपने राजनीतिक भविष्य की चिंता सताने लगी है। वो खुद अपना दर्द बयां कर रहे हैं और ये कह रहे हैं कि मेरा राजनीतिक भविष्य कैसा होगा, नहीं जानता हूं। लेकिन ये समझना जरूरी है कि आखिर उनकी ये हार हुई कैसे।
अधीर रंजन के चलते कांग्रेस की 'शत्रु' बनी थीं ममता
'अधीर रंजन चौधरी बीजेपी के एजेंट हैं।', ऐसा दावा लोकसभा चुनाव से कुछ वक्त पहले तृणमूल कांग्रेस के नेता कुणाल घोष ने किया था। ये अधीर रंजन की उस बयान पर पलटवार था, जिसमें उन्होंने ईडी के अधिकारियों पर हुए हमले को लेकर ममता सरकार को भला-बुरा कह दिया था। कांग्रेस और टीएमसी दोनों ही विपक्षी दलों के गठबंधन इंडियन नेशनल डेवलपमेंट इंक्लूसिव अलायंस (INDIA) में सहयोगी हैं, लेकिन पश्चिम बंगाल में अधीर रंजन चौधरी ने कभी सहयोगी का धर्म नहीं निभाया।
लालू यादव ने भी उठाया था अधीर रंजन वाला मुद्दा
पश्चिम बंगाल में कांग्रेस के अधीर रंजन की बयानबाजी से ममता बनर्जी की टीएमसी बार-बार नाराज होती रही हैं। नाराजगी भी लाजमी भी थी, जब दोनों पार्टियां एक दूसरे के साथ मिलकर चुनाव लड़ने की तैयारी में जुटी थी, तब अधीर रंजन ने ऐसा गड्ढा खोद किया कि ममता ने अकेले चुनाव लड़ने का फैसला कर लिया। लालू यादव ये मुद्दा उठा चुके हैं कि जब केंद्र में टीएमसी और कांग्रेस साथ हैं तो पश्चिम बंगाल में अधीर रंजन टीएमसी के खिलाफ बयानबाजी क्यों करते हैं? हालांकि अब अधीर रंजन चौधरी अपने ही खोदे गड्ढे में गिर चुके हैं।
अधीर रंजन के चलते बढ़ा मनमुटाव, अब होगा खत्म?
बीते लंबे समय से कांग्रेस और टीएमसी के बीच कुछ भी ठीक नहीं चल रहा था। हालांकि चुनावी नतीजों ने दोनों पार्टियों के बीच की दूरियां घटा दी हैं। ममता के लिए अच्छी खबर ये रही कि उनके खिलाफ जहर उगलने वाले अधीर रंजन अब हार चुके हैं। कयास ये भी लगाए जा रहे हैं कि अब अधीर रंजन को प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष की भी कुर्सी से हाथ धोना पड़ सकता है।
अधीर रंजन को अब सता रही अपने भविष्य की चिंता
पश्चिम बंगाल के बहरामपुर संसदीय क्षेत्र से हार के एक दिन बाद कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और पांच बार के सांसद अधीर रंजन चौधरी ने बुधवार को कहा कि वह नहीं जानते कि उनका राजनीतिक भविष्य कैसा होगा। पार्टी की पश्चिम बंगाल इकाई के प्रमुख चौधरी को तृणमूल कांग्रेस के स्टार उम्मीदवार और पूर्व क्रिकेटर यूसुफ पठान ने 85,000 से अधिक मतों के अंतर से मात दे दी है। अधीर रंजन चौधरी की हार के साथ ही कांग्रेस ने बहरामपुर पर अपनी राजनीतिक पकड़ खो दी, जो राज्य में कांग्रेस का अंतिम गढ़ था। पार्टी को केवल एक सीट मालदा दक्षिण पर जीत मिली है।
इंटरव्यू में अधीर रंजन चौधरी ने बयां किया अपना दर्द
अपने बहरामपुर आवास पर एक बांग्ला टीवी चैनल से बात करते हुए चौधरी ने कहा कि उन्हें आशंका है कि आने वाला समय उनके लिए कठिन होगा। चौधरी ने कहा, 'इस सरकार से लड़ने के प्रयास में मैंने अपनी आय के स्रोतों की अनदेखी की है। मैं खुद को बीपीएल (गरीबी रेखा से नीचे का) सांसद कहता हूं। राजनीति के अलावा मेरे पास कोई और कौशल नहीं है। इसलिए आने वाले दिनों में मेरे लिए मुश्किलें खड़ी होंगी और मुझे नहीं पता कि उनसे कैसे पार पाया जाए।' चौधरी ने पुष्टि की कि वह अपना सांसद आवास खाली करने के लिए जल्द ही राजधानी जाएंगे।
अधीर रंजन ने अपनी बेटी के लिए घर ढूंढने की कही बात
उन्होंने कहा, 'मेरी बेटी एक छात्रा है और कभी-कभी अपनी पढ़ाई के लिए इस जगह का इस्तेमाल करती है। मुझे वहां एक नया घर ढूंढना होगा, क्योंकि मेरे पास कोई घर नहीं है।' चुनाव के बाद ममता बनर्जी की ‘इंडिया’ गठबंधन के साथ निकटता पर बात करते हुए चौधरी ने कहा कि उन्होंने गठबंधन में टीएमसी की मौजूदगी पर कभी आपत्ति नहीं जताई। हालांकि चौधरी ने इस बात से सहमति जताई कि उन्होंने बनर्जी के साथ गठबंधन का विरोध करते हुए पार्टी हाईकमान के समक्ष अपनी बात रखी है, क्योंकि उनका मानना है कि यह राजनीतिक आत्महत्या के समान होगा।
क्या प्रदेश कांग्रेस प्रमुख के पद पर बने रहें अधीर रंजन?
यह पूछे जाने पर कि क्या वह प्रदेश कांग्रेस प्रमुख के पद पर बने रहेंगे तो उन्होंने कहा, 'मैंने चुनाव में अपनी हार स्वीकार कर ली है और पहले अपने नेताओं से इस पद के लिए मुझसे ज्यादा योग्य व्यक्ति को खोजने का आग्रह करते हुए अपना पद छोड़ना चाहता था। मैं सोनिया गांधी के अनुरोध पर रुका रहा। मुझे अभी तक अपने नेताओं की ओर से कोई फोन नहीं आया है। फोन आने पर मैं एक बार फिर पार्टी को अपनी इच्छा से अवगत कराउंगा।' चौधरी ने कहा कि बहरामपुर में प्रचार के लिए किसी नेता को न भेजना पार्टी का विवेकाधिकार है और इस बारे में वह कोई टिप्पणी नहीं करना चाहते।
अधीर रंजन ने कहा, 'जब राहुल गांधी की ‘पूरब-पश्चिम भारत जोड़ो यात्रा’ मुर्शिदाबाद पहुंची तो हमने उसमें हिस्सा लिया। हमारे पार्टी अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे ने एक बार मालदा में प्रचार किया, लेकिन बहरामपुर कभी नहीं आए। यह हमारे केंद्रीय नेतृत्व का फैसला था, जिसके बारे में मुझे कुछ नहीं कहना है।' साल 1999 से बहरामपुर से सांसद चौधरी के लिए यह शायद सबसे कठिन चुनावी मुकाबला था, जिसमें उन्हें गुजरात के रहने वाले टीएमसी उम्मीदवार पठान से शिकस्त का सामना करना पड़ा।
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