अजित पवार को मिली NCP, लेकिन असली टेस्ट होना अभी बाकी, सामने ये चुनौतियां
भले ही शिवसेना और एनसीपी को विभाजित करने की भाजपा की रणनीति लगभग एक जैसी थी, लेकिन अजित की मुश्किलें एकनाथ शिंदे के मुकाबले अधिक गंभीर है
अजित पवार की सियासत
Ajit Pawar: भारतीय जनता पार्टी के साथ सरकार बनाने की नाकाम कोशिश और अपने चाचा शरद पवार से मात खाने के चार साल बाद अजित पवार आखिरकार एनसीपी पर पूरा नियंत्रण हासिल करने में कामयाब हो गए हैं। सात महीने की लंबी लड़ाई के बाद चुनाव आयोग ने मंगलवार को उनके गुट को असली एनसीपी घोषित किया। इस घटनाक्रम ने अजीत के लिए चीजें पूरी तरह से बदल दी हैं, जो हमेशा पर्दे के पीछे काम करना पसंद करते थे। पार्टी में बंटवारे से पहले तक शरद पवार एनसीपी का निर्विवाद चेहरा थे। लेकिन अब अजित को आगे बढ़कर पार्टी का नेतृत्व करना होगा और अपने नाम पर वोट मांगना होगा। यही उनकी सबसे बड़ी चुनौती है।
चाचा की छाया से निकलने को बेताब
हमेशा अपने चाचा की छाया से बाहर निकलने और महाराष्ट्र का मुख्यमंत्री बनने के लिए बेताब रहने वाले 64 वर्षीय अजित पवार के सामने अब कई चुनौतियां हैं। अब उन्हें अपने ही चाचा को अलग-थलग करने के भावनात्मक मुद्दे का सामना करना पड़ेगा। चुनाव आयोग का फैसला घोषित होने के तुरंत बाद शरद पवार के नेतृत्व वाले गुट की राष्ट्रीय अध्यक्ष, पवार की बेटी सुप्रिया सुले ने अजीत पर व्यक्तिगत हमला करते हुए कहा, अजित ने उनके पिता को बेघर कर दिया है। जिस घर में आपका जन्म हुआ वह आपके पिता के नाम पर है। क्या आप अपने पिता को बाहर करने जा रहे हैं?
शिंदे के मुकाबले अजित की मुश्किलें गंभीर
भले ही शिवसेना और एनसीपी को विभाजित करने की भाजपा की रणनीति लगभग एक जैसी थी, लेकिन अजित की मुश्किलें एकनाथ शिंदे के मुकाबले अधिक गंभीर है क्योंकि एनसीपी संस्थापक शरद पवार अभी भी बहुत सक्रिय हैं। एनसीपी कैडर पवार साहब और अजित के बीच बंटा हुआ है, लेकिन जहां तक जमीनी स्तर पर जुड़ाव का सवाल है, तो शरद पवार का नेटवर्क अभी भी बेजोड़ है। अजित पवार भी इस बात से वाकिफ हैं और इसलिए विभाजन के तुरंत बाद भी वे लगातार पवार के नाम का इस्तेमाल कर रहे थे।
शरद पवार को व्यापक समर्थन
शरद पवार को मराठा समुदाय के साथ-साथ महाराष्ट्र के विभिन्न हिस्सों, विशेषकर पश्चिमी महाराष्ट्र में भी सम्मान और समर्थन हासिल है। उनकी छवि और आधार निर्विावद है। हाल ही में 2019 के उपचुनाव में छत्रपति शिवाजी के वंशज उदयनराजे भोसले की हार हुई थी। वह सतारा से एनसीपी सांसद के रूप में इस्तीफा देकर भाजपा में शामिल हो गए थे। सतारा में पवार के अभियान, जिसमें भारी बारिश के दौरान उनका मशहूर भाषण भी शामिल था, उसी ने भोसले की हार सुनिश्चित की।
महाराष्ट्र अभी कई मुद्दों से दो-चार
महाराष्ट्र अभी कई सियासी और सामाजिक मु्द्दों से दो-चार है। मराठा आंदोलन का असर सत्तारुढ़ गठबंधन पर पड़ सकता है। इसे जैसे कई मुद्दे अजीत पवार के नेतृत्व के लिए एक चुनौती के रूप में सामने आएंगे। विपक्षी दल लगातार आरोप लगा रहे हैं कि राज्य में निवेश को भाजपा के नेतृत्व वाले सत्तारूढ़ गठबंधन द्वारा पड़ोसी राज्य गुजरात में ले जाया जा रहा है। महाराष्ट्र में पार्टी के 53 विधायक और नौ एमएलसी हैं। इनमें से 40 विधायक और पांच एमएलसी अजित के पक्ष में हैं जबकि पवार के गुट को 13 विधायकों और चार एमएलसी का समर्थन हासिल है।
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अमित कुमार मंडल author
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