Amethi Lok Sabha Election: पहली बार बिन गांधी परिवार रही अमेठी, क्या लौट पाएगी राहुल गांधी की खोई प्रतिष्ठा? 4 जून को आएंगे नतीजे
Amethi Lok Sabha Election: 2019 के लोकसभा चुनाव में इस सीट पर स्मृति ईरानी ने राहुल गांधी को करारी शिकस्त दी थी, जिसके बाद गांधी परिवार ने अमेठी से दूरी बना ली। इस लोकसभा चुनाव में कांग्रेस ने स्मृति ईरानी से मुकाबला करने के लिए अपने खास किशोरी लाल शर्मा केा मैदान में उतारा है।
Amethi Lok Sabha Election
Amethi Lok Sabha Election: लोकसभा चुनाव अपने अंतिम दौर में पहुंच चुका है। 1 जून को आखिरी व सातवें चरण के मतदान होंगे, इसके बाद सभी को 4 जून की मतगणना का इंतजार रहेगा। मतगणना के बाद तय हो जाएगा कि सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी सरकार में बनी रहेगी या इंडिया गठबंधन सत्ता में आएगा। लोकसभा चुनाव के नतीजे जानने के साथ-साथ लोगों को अमेठी लोकसभा सीट का हाल जानने में भी बड़ी दिलचस्पी है। दरअसल, ऐसा पहली बार है जब इस सीट पर गांधी परिवार का कोई भी सदस्य चुनाव नहीं लड़ रहा है।
बता दें, उत्तर प्रदेश की अमेठी लोकसभा सीट को गांधी परिवार के सबसे मजबूत किलों में से एक माना जाता रहा है। हालांकि, 2019 के लोकसभा चुनाव में इस सीट पर स्मृति ईरानी ने राहुल गांधी को करारी शिकस्त दी थी, जिसके बाद गांधी परिवार ने अमेठी से दूरी बना ली। इस लोकसभा चुनाव में कांग्रेस ने स्मृति ईरानी से मुकाबला करने के लिए अपने खास किशोरी लाल शर्मा केा मैदान में उतारा है। बीते 25 सालों में ऐसा पहली बार है जब गांधी परिवार इस खास लोकसभा सीट से दूर है। बता दें, 1967 में निर्वाचन क्षेत्र बने अमेठी को गांधी परिवार का मजबूत किला माना जाता है और करीब 31 वर्षों तक गांधी परिवार के सदस्यों ने इस लोकसभा सीट का प्रतिनिधित्व किया है।
पहली बार 1998 में लगा था झटका
अमेठी लोकसभा सीट पर गांधी परिवार को 1998 में उस समय झटका लगा था, जब राजीव गांधी और सोनिया गांधी के करीबी सतीश शर्मा को भाजपा के संजय सिंह के हाथों शिकस्त का सामना करना पड़ा था। यह पहला मौका था जब यह सीट गांधी परिवार के हाथ से निकल गयी थी। इसके बाद सोनिया गांधी ने 1999 में अमेठी में गांधी परिवार की वापसी कराई और संजय सिंह को उन्होंने तीन लाख से ज्यादा मतों से हराकर अमेठी को फिर से कांग्रेस की झोली में डाल दिया था। इसके बाद सोनिया गांधी ने लंबे समय तक इस सीट का प्रतिनिधित्व किया और 2004 में यह सीट राहुल गांधी को अमेठी सीट सौंपी दी। राहुल ने 2004, 2009 और 2014 में लगातार तीन बार इस सीट पर जीत दर्ज की लेकिन 2019 में उन्हें स्मृति इरानी के हाथों शिकस्त झेलनी पड़ी।
कैसा रहा अमेठी का सियासी इतिहास
अमेठी लोकसभा सीट से सबसे पहले सांसद चुने जाने वाले व्यक्ति थे कांग्रेस के विद्याधर बाजपेयी, जिन्होंने न सिर्फ 1967 में बल्कि 1971 में भी यहां से जीत हासिल की थी। 1977 के चुनाव में जनता पार्टी के रवींद्र प्रताप सिंह ने पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के छोटे बेटे संजय गांधी को हराकर इस सीट पर कब्जा जमाया था। लेकिन संजय गांधी ने 1980 के आम चुनाव में रवींद प्रताप सिंह को हराकर महज तीन वर्षों में अपना चुनावी बदला पूरा कर लिया। उसी वर्ष के आखिर में संजय गांधी की एक विमान दुर्घटना में मृत्यु हो गई। इसके बाद 1981 में हुए उपचुनाव में संजय के भाई राजीव गांधी ने अपने निकटतम प्रतिद्वंद्वी को दो लाख से अधिक मतों से हराकर अमेठी से शानदार जीत हासिल की थी। राजीव गांधी ने 1991 तक अमेठी लोकसभा क्षेत्र का प्रतिनिधित्व किया। इसी वर्ष उग्रवादी समूह लिट्टे ने उनकी हत्या कर दी। राजीव की हत्या के बाद, इसी वर्ष हुए उपचुनाव में अमेठी से सतीश शर्मा जीते और 1996 में फिर से सांसद चुने गए, लेकिन 1998 में भाजपा के संजय सिंह ने उन्हें हरा दिया।
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