Barmer Lok Sabha Constituency: एक निर्दलीय ने बाड़मेर लोकसभा सीट पर मचा रखा है हलचल, राष्ट्रीय पार्टियों के छुड़ा दिए हैं पसीने
Barmer Lok Sabha Constituency: रविंद्र भाटी ने अपना राजनीतिक जीवन एक छात्र नेता के रूप में शुरू किया था और चार साल की छोटी सी अवधि में विधायक बन गए, अब भौगोलिक क्षेत्र के लिहाज से देश के दूसरे सबसे बड़े लोकसभा क्षेत्र बाड़मेर-जैसलमेर से सांसदी का चुनाव लड़ रहे हैं।
बाडमेर लोकसभा सीट पर कांग्रेस-बीजेपी की हालत खराब
Barmer Lok Sabha Constituency: बाड़मेर लोकसभा सीट पर एक निर्दलीय ने राष्ट्रीय पार्टी के नेताओं के पसीने छुड़ा दिए हैं। बाड़मेर सीट से निर्दलीय मैदान में उतरे रविंद्र सिंह भाटी ने जिस तरह से ये चुनाव लड़ा है, वो अपने आप में एक इतिहास है। बाड़मेर सीट पर इसी निर्दलीय के कारण त्रिकोणीय मुकाबले की बात कही जा रही है। लेकिन जिस तरह से रविंद्र भाटी के समर्थन में लोगों की भीड़ उमड़ी है वो कुछ और ही कहानी बयां कर रही है।
कौन हैं रविंद्र भाटी
रविंद्र भाटी ने अपना राजनीतिक जीवन एक छात्र नेता के रूप में शुरू किया था और चार साल की छोटी सी अवधि में विधायक बन गए, अब भौगोलिक क्षेत्र के लिहाज से देश के दूसरे सबसे बड़े लोकसभा क्षेत्र बाड़मेर-जैसलमेर से सांसदी का चुनाव लड़ रहे हैं। उनकी राजनीतिक स्थिति ने भारतीय जनता पार्टी और कांग्रेस दोनों को ही परेशान कर दिया है। सत्ता विरोधी लहर और भाटी के राजपूत समाज से होने के कारण दोनों राष्ट्रीय पार्टियों के लिए मुश्किल पैदा हो गई है।
भाजपा ने टिकट देने से कर दिया था मना
यह सीट तब चर्चा में आया जब भाजपा ने रविन्द्र सिंह भाटी को टिकट देने से मना कर दिया। पभाटी पहली बार 2019 में चर्चा में आए थे, जब तत्कालीन सीएम अशोक गहलोत के एक करीबी छात्र उम्मीदवार को भाटी ने हरा दिया था। एक स्कूल शिक्षक के बेटे, रविद्र भाटी ने 2019 में जोधपुर के जय नारायण व्यास विश्वविद्यालय के पहले स्वतंत्र छात्र संघ नेता बनकर अपना राजनीतिक जीवन शुरू किया, जो पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के साथ-साथ केंद्रीय मंत्री अश्विनी वैष्णव और गजेंद्र सिंह शेखावत का भी मातृ संस्थान है। इसके बाद बीजेपी ने भाटी पर डोरे डाले, लेकिन हाल ही में हुए राजस्थान विधानसभा चुनावों में भाटी को विधानसभा टिकट देने से इनकार करने के बाद चीजें बिगड़ गईं। इसके बाद भाटी ने निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में जाने का फैसला किया और निर्दलीय जीत हासिल की। विधानसभा चुनाव में मिली सफलता के बाद भाटी लोकसभा सीट के लिए भी भाजपा से टिकट पाने के इच्छुक थे। लेकिन पार्टी ने अंततः अपने मौजूदा सांसद और केंद्रीय मंत्री कैलाश चौधरी के साथ जाने का फैसला किया और भाटी को टिकट नहीं मिला, जिसके बाद भाटी निर्दलीय मैदान में उतर गए।
रविंद्र सिंह भाटी का समीकरण
लोकसभा चुनाव में जीत सुनिश्चित करने के लिए भाटी अपनी राजपूत पहचान के साथ-साथ अपने उदारवादी दृष्टिकोण के सहारे मैदान में हैं। ताकि वे राजस्थान की छत्तीस बिरादरी या 36 समुदायों के पसंदीदा बन सकें। जिसमें मुस्लिम भी शामिल हैं। अपनी रैलियों में भाटी अपने विरोधियों पर व्यक्तिगत हमले करने से बचते दिखे हैं और सिर्फ़ यही बोलते हैं कि बाड़मेर-जैसलमेर के लोगों के लिए वे क्या करेंगे। वे जन सरोकारों से जुड़े मुद्दे उठाते हैं, जैसे कि डेजर्ट नेशनल पार्क (डीएनपी) का मुद्दा। वे इलाके में पानी की समस्या, बेरोज़गारी और ख़राब सड़कों के बारे में भी बोलते दिखे हैं।
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