अरविंद केजरीवाल की गिरफ्तारी का लोकसभा चुनाव पर कितना पड़ेगा असर? समझिए आम आदमी पार्टी का नफा-नुकसान
Delhi: खुद को कट्टर ईमानदार बताने वाले दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल भ्रष्टाचार के आरोपों में सलाखों के पीछे चले गए हैं। लोकसभा चुनाव 2024 से पहले सीएम केजरीवाल की गिरफ्तारी का चुनावी परिणाम पर कितना असर पड़ेगा? ये देखना बेहद दिलचस्प होगा। उनकी गिरफ्तारी से आम आदमी पार्टी को नुकसान होगा या फिर फायदा? समझिए समीकरण।
केजरीवाल की गिरफ्तारी, लोकसभा चुनाव पर कितना असर?
Arvind Kejriwal's Arresting Impact: भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज उठाकर राजनीति में आए अरविंद केजरीवाल खुद भ्रष्टाचार के आरोप में गिरफ्तार हो गए हैं। लोकसभा चुनाव से ठीक पहले केजरीवाल की गिरफ्तारी से क्या आम आदमी पार्टी और मजबूत होगी या फिर AAP की हवा निकल जाएगी? ये सवाल इसलिए उठ रहे हैं, क्योंकि चुनाव में केजरीवाल की गिरफ्तारी का मुद्दा विपक्षी दलों और सत्ताधारी भाजपा दोनों ही तरफ से उठाया जाएगा। केजरीवाल के समर्थकों ने अपनी कमर कस ली है और सड़कों पर उतर आए हैं, तो वहीं भाजपा केजरीवाल को लगातार कोस रही है। आपको समझाते हैं कि केजरीवाल की गिरफ्तारी से आगामी चुनाव में किसे कितना नफा-नुकसान होगा।
लोकसभा चुनाव पर गिरफ्तारी का कितना असर?
अरविंद केजरीवाल की गिरफ्तारी लोकसभा चुनाव 2024 पर खासा प्रभाव डाल सकती है। देश में आचार संहिता लागू है, 7 चरणो में लोकसभा चुनाव होने हैं। 19 अप्रैल को पहले चरण के लिए वोटिंग होगी, ऐसे में प्रवर्तन निदेशालय का ये एक्शन केजरीवाल की आम आदमी पार्टी और विपक्ष के लिए फायदा और नुकसान दोनों ही पहुंचा सकती है।
केजरीवाल के जेल जाने से आप को फायदा या नुकसान?
सभी विपक्षी दल खुलकर अरविंद केजरीवाल की गिरफ्तारी का विरोध कर रहे हैं। तो वहीं भाजपा और NDA में शामिल पार्टियां केजरीवाल के पोल खुलने का दावा कर रही हैं। हालांकि सवाल यही है कि अरविंद केजरीवाल के जेल जाने से आगामी लोकसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी को नुकसान होगा या फायदा? आपको दोनों ही संभावनाएं बताते हैं। देश की सियासत में भावनात्मक दृष्टिकोण की काफी अहमियत है। इंदिरा गांधी की मृत्यु के बाद हुए लोकसभा चुनाव के नतीजों में देखा गया था कि कांग्रेस के प्रति लोगों ने कैसे सहानुभूति दिखाई। अरविंद केजरीवाल के जेल जाने से आम आदमी पार्टी निश्चित तौर पर चुनाव में सहानुभूति बंटोरने की कोशिश करेगी, जिसका असर चुनावी परिणाम में देखा जा सकता है। हालांकि इसका एक दूसरा छोर भी है, केजरीवाल को भ्रष्ट बताकर भाजपा आम आदमी पार्टी पर जमकर प्रहार कर रही है। लोगों में अगर ये स्पष्ट संदेश जाता है कि केजरीवाल ही इस कथित आबकारी घोटाले के मास्टरमाइंड हैं, तो आम आदमी पार्टी को भारी नुकसान झेलना पड़ सकता है।
किन राज्यों में आप को कितना हो सकता है नफा-नुकसान?
दिल्ली की सात लोकसभा सीटों में से आम आदमी पार्टी 4 और कांग्रेस 3 सीट पर चुनाव लड़ रही है। ऐसे में यदि लोगों की सहानुभूति हासिल करने में आम आदमी पार्टी सफल रही, तो इसका लाभ चुनावी नतीजों में कांग्रेस को भी पहुंच सकता है। हालांकि यदि सभी सीटों पर एक बार फिर भाजपा ने जीत दर्ज कर ली तो कोई हैरानी की बात नहीं होगी। वहीं पंजाब की सभी 13 सीटों पर आम आदमी पार्टी अकेले चुनाव लड़ रही है, कांग्रेस और आप इस राज्य में आमने-सामने हैं। ऐसे में पंजाब में यदि आप के प्रति लोगों की संवेदना जाग उठी तो आप यहां ज्यादा से ज्यादा सीटें जीत सकती है। इसके अलावा मध्य प्रदेश, हरियाणा, गुजरात में भी आप और कांग्रेस के बीच सीट शेयरिंग की बात चल ही रही थी कि केजरीवाल गिरफ्तार हो गए।
आम आदमी पार्टी इस कोशिश में होगी कि केजरीवाल की गिरफ्तारी का मुद्दा भुनाकर लोकसभा चुनाव में ज्यादा से ज्यादा सीटें हासिल कर ले। एक ओर लोकसभा चुनाव, तो दूसरी ओर केजरीवाल की गिरफ्तारी, यदि आप ने इस मुद्दे को सही तरीके से उठाया तो ये उसका उत्थान तय हो जाएगा। सवाल ये है कि क्या इस गिरफ्तारी के बाद केजरीवाल और बड़े नेता के रूप में उभर जाएंगे?
और बड़े नेता बनकर उभरेंगे केजरीवाल? समझिए आप की रणनीति
आम आदमी पार्टी के नेताओं ने ये दावा किया है कि इस गिरफ्तारी के बाद अरविंद केजरीवाल और बड़े नेता के रूप में उभरेंगे। इतिहास के पन्नों को खंगालें तो ऐसा नहीं है कि नेताओं के जेल जाने का सिलसिला पहले कम रहा है और अब ज्यादा हो गया है। देश के दिग्गज से भी दिग्गज नेता भ्रष्टाचार के आरोपों में जेल जा चुके हैं। जेल से बाहर आने के बाद उन्होंने और मजबूती के साथ सियासत अपना दमखम दिखाया है। हालांकि केजरीवाल ने वाकई इस कथित घोटाले में मास्टरमाइंड की भूमिका अदा की थी या नहीं इसका जवाब तो कोर्ट देगा। जांच होगी, सबूतों के आधार पर सुनवाई होगी। उदाहरण के तौर पर अरविंद केजरीवाल से पहले लालू यादव, जयललिता, हेमंत सोरेन जैसे सीएम जेल जा चुके हैं।
पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत मान ने शुक्रवार को दिल्ली के मुख्यमंत्री एवं आम आदमी पार्टी (आप) के राष्ट्रीय संयोजक अरविंद केजरीवाल के परिवार के सदस्यों से मुलाकात की और कहा कि पार्टी उनके साथ मजबूती से खड़ी है। मान ने केजरीवाल को एक देशभक्त बताया और कहा कि वह इस प्रकरण से और बड़े नेता बनकर उभरेंगे। उन्होंने कहा कि केजरीवाल महज एक व्यक्ति नहीं बल्कि एक विचार हैं।
केजरीवाल की गिरफ्तारी से ‘आप' के सामने नेतृत्व का संकट
आबकारी नीति संबंधी कथित घोटाले से जुड़े मामले में दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल की गिरफ्तारी के कारण आम आदमी पार्टी (आप) और दिल्ली सरकार के सामने नेतृत्व का संकट खड़ा हो गया है और ऐसे में उनकी पत्नी सुनीता केजरीवाल, कैबिनेट मंत्रियों आतिशी और सौरभ भारद्वाज को इस भूमिका के लिए उनके संभावित विकल्प के तौर पर देखा जा रहा है। ‘आप’ के सामने अब एक ऐसे नेता को चुनने की चुनौती है जो केजरीवाल की अनुपस्थिति में पार्टी और दिल्ली में उनकी सरकार की कमान संभाल सके। ‘आप’ नेतृत्व के लिए ऐसे नेता को चुनना वास्तव में एक कड़ी चुनौती है जिसका कद पार्टी संयोजक केजरीवाल के कद के समान या इसके आस-पास हो।
केजरीवाल की पत्नी, आतिशी या भी भारद्वाज... कौन विकल्प?
केजरीवाल 2012 में पार्टी के गठन के बाद से इसके संयोजक हैं और करीब एक दशक से दिल्ली के मुख्यमंत्री पद पर बने हुए हैं। केजरीवाल का स्थान ले सकने वाले नेता को खोजना और भी अधिक महत्वपूर्ण इसलिए है क्योंकि ‘आप’ पंजाब, दिल्ली, गुजरात, असम और हरियाणा में लोकसभा चुनाव लड़ने की तैयारी कर रही है जहां केजरीवाल पार्टी के अहम प्रचारक होने वाले थे। दिल्ली के मुख्यमंत्री पद के लिए पूर्व आईआरएस (भारतीय राजस्व सेवा) अधिकारी सुनीता केजरीवाल के अलावा ‘आप’ सरकार की मंत्री आतिशी और भारद्वाज के नाम पर भी चर्चा जारी है।
दिल्ली सरकार में शिक्षा, वित्त, पीडब्ल्यूडी (लोक निर्माण विभाग), राजस्व और सेवाओं सहित सबसे अधिक विभाग संभालने वाली आतिशी को अरविंद केजरीवाल का करीबी माना जाता है। वह ‘आप’ सरकार और केजरीवाल का बचाव करने वाली पार्टी की अग्रिम पंक्ति की प्रवक्ता भी हैं और अपने नियमित संवाददाता सम्मेलनों में एवं समाचार चैनलों पर उपस्थिति के जरिए भाजपा पर हमला करती रही हैं। इसी तरह, भारद्वाज भी दिल्ली कैबिनेट के एक प्रमुख सदस्य हैं और उनके पास स्वास्थ्य एवं शहरी विकास सहित कई महत्वपूर्ण विभाग हैं। वह भी पार्टी का एक जाना-माना चेहरा हैं, जो अक्सर पार्टी एवं उसके नेताओं का बचाव करते हैं और शासन-संबंधी एवं राजनीतिक मुद्दों पर केंद्र की भाजपा (भारतीय जनता पार्टी) सरकार पर जवाबी हमला करते हैं।
हालांकि, पिछले साल दिसंबर में ‘आप’ ने ‘मैं भी केजरीवाल’ नाम से एक हस्ताक्षर अभियान शुरू किया था, जिसमें लोगों से पूछा गया था कि उन्हें गिरफ्तार होने की स्थिति में क्या दिल्ली के मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे देना चाहिए या जेल से सरकार चलानी चाहिए।
केजरीवाल ने विधायकों और निगम पार्षदों से की थी मुलाकात
‘आप’ सुप्रीमो ने इस अभियान के दौरान दिल्ली में पार्टी विधायकों और नगर निगम पार्षदों से भी मुलाकात की थी और उनकी प्रतिक्रिया ली थी। भारद्वाज ने हाल में एक संवाददाता सम्मेलन में कहा था, ‘इस अभियान के दौरान लगभग 90 प्रतिशत लोगों ने राय दी कि केजरीवाल के पास दिल्ली का जनादेश है और उन्हें चुना गया है इसलिए केवल उन्हें ही सरकार चलानी चाहिए, चाहे वह कहीं से भी हो।’
‘आप’ को पार्टी का नेतृत्व करने के लिए केजरीवाल का विकल्प भी ढूंढ़ना होगा। पार्टी दिल्ली और पंजाब में सत्ता में है और इसके अलावा गुजरात और गोवा में भी इसके विधायक हैं। इस मामले में भी पार्टी के विकल्प काफी सीमित हैं। सुनीता केजरीवाल के अलावा पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत मान और आतिशी का नाम भी उन नेताओं के रूप में चर्चा में है जो ‘आप’ के नए राष्ट्रीय संयोजक की जिम्मेदारी संभाल सकते हैं।
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