चुनावों में BJP की 'जीत' या विपक्ष की 'हार'...? समझिए वे कारक, जिनसे 2024 के पहले 'कमल' का हुआ उद्धार

Assembly Election Results 2023: दरअसल, जिन पांच राज्यों में विधानसभा चुनाव हुए थे, उनमें दो जगह कांग्रेस अपनी सरकार नहीं बचा पाई। यह सूबे थे- राजस्थान और छत्तीसगढ़। दोनों ही हिंदी पट्टी के लिहाज से अहम प्रदेश माने जाते हैं।

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तस्वीर का इस्तेमाल सिर्फ प्रस्तुतिकरण के लिए किया गया है। (फाइल)

तस्वीर साभार : टाइम्स नाउ ब्यूरो

Assembly Election Results 2023: पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव 2023 में हिंदी पट्टी के तीन अहम सूबों (मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़) में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) की जीत हुई है, जिसके प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को मात देने के लिए बने विपक्ष के इंडिया गठजोड़ को तगड़ा झटका लगा है। ताजा चुनावी जीत बीजेपी की विजय से कहीं अधिक विपक्ष की हार, उसके गठबंधन के घटते कद और कमजोर नेतृत्व की ओर इशारा करती है। यही वजह है कि सड़क से लेकर सोशल मीडिया और सियासी गलियारों तक यही चर्चा है कि साल 2024 के आम चुनाव के पहले लिटमस टेस्ट या फिर लोकसभा चुनाव के सेमीफाइनल में कमल चहक कर खिला है। आइए, समझते हैं इसके पीछे कौन से अहम कारक रहे:

चूंकि, बीजेपी अब सिर्फ राजनीतिक पार्टी नहीं है। समय की जरूरतों और तकनीक के हिसाब से वह बहुत आगे निकल चुकी है। मौजूदा समय में भाजपा किसी इलेक्शन मशीन से कम नहीं है। पार्टी की चुनावी मशीनरी बेहद दमदार और अनुशासित है। ऊपर ब्रांड मोदी (पीएम नरेंद्र मोदी) का ठप्पा सोने पर सुहागे के तौर पर का करता है।

चूंकि, बीजेपी ने सारे सूबों में एक खास रणनीति अपनाई थी। वह थी- चुनाव के पहले किसी भी सीएम पद के उम्मीदवार को घोषित नहीं करना। ऐसे में समझा जा सकता है कि बीजेपी यह अंदरूनी तौर पर यह समझना चाह रही थी कि पीएम मोदी की अपील, छवि और साख किस कदर लोगों के बीच बसी हुई है।

हालिया चुनावी परिणाम आगे आने वाले लोकसभा इलेक्शंस में बीजेपी की संभावनाओं को प्रबल करते हैं। ऐसा इसलिए क्योंकि जिन तीन सूबों में बीजेपी को जीत मिली है, वहां पर लोकसभा की कुल 65 सीटे हैं। ऐसे में इंडिया गठजोड़ में कांग्रेस का कद कमजोर नजर आता है।

यही नहीं, विपक्ष इंडिया गठबंधन के बैनर तले न तो अभी तक मोदी के बराबर का नेता ढूंढकर खड़ा कर पाया है और न ही भगवा दल के हार्डकोर हिंदुत्व के एजेंडे का तोड़ तलाश पाया है। जातिगत जनगणना का मसला भी इन चुनावों में बीजेपी को पलीता लगाने में नाकाम साबित हुआ है। ऐसे में सियासी एक्सपर्ट्स, चुनावी विश्लेषक और सीनियर पत्रकार इसे बीजेपी की जीत से कहीं अधिक विपक्ष की हार के तौर पर देखते हैं।

विपक्ष कहां रहा चूक?दरअसल, विपक्ष (खासकर कांग्रेस) लंबे समय से लोगों का विश्वास जीतने में विफल साबित हुआ है। उसकी आम छवि है कि वह सिर्फ विरोध के नाम पर विरोध करता है और नकारात्मक रूप से चुनावी ताल ठोंकता है। सीट शेयरिंग में जब अहम ऊपर आता है, तब परेशानियां बढ़ती हैं और यही वजह होती है कि वह सहयोगियों को साथ लेकर चलने में नाकाम साबित हो जाता है। विपक्ष की बार-बार हार भी बड़ा कारण है। अगर वह किसी सूबे में सत्ता पा भी लेते हैं तो वे उसे बचाकर नहीं रख पाते, जैसा कि हाल में देखने को मिला।

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अभिषेक गुप्ता author

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