Hot Seat: यूपी की देवरिया सीट के लिए क्या है BJP का प्लान? स्थानीय उम्मीदवार चाहते हैं कार्यकर्ता; जानें रेस में कौन-कौन
Election News: उत्तर प्रदेश के देवरिया लोकसभा सीट पर अब तक भाजपा ने अपने उम्मीदवार की घोषणा नहीं की है। ऐसे में ये सवाल उठ रहा है कि क्या यहां दोबारा रमापति राम को टिकट मिलेगा या भाजपा फिर एक बार प्रत्याशी बदलेगी। रेस में कई नाम शामिल हैं, इस बार पार्टी कार्यकर्ता यहां स्थानीय उम्मीदवार चाहते हैं।
अब तक कौन-कौन रहा देवरिया का सांसद?
Hot Seat Of Uttar Pradesh: लोकसभा चुनाव 2024 के लिए उत्तर प्रदेश की अधिकतर सीटों पर भाजपा ने भले ही उम्मीदवार उतार दिए हों, लेकिन अभी भी यूपी की कुछ सीटों को लेकर पार्टी असमंजस में है। पार्टी कुल 12 सीटों पर अभी तक प्रत्याशियों का फैसला नहीं कर पाई है, इसी में से एक देवरिया लोकसभा सीट भी है। देवरिया लोकसभा सीट का प्रतिनिधित्व जहां कांग्रेस के विश्वनाथ राय, राजमंगल पांडेय जैसे कद्दावर नेताओं ने किया। वहीं बाद के दिनों में भाजपा के ले. जनरल प्रकाश मणि त्रिपाठी से लेकर सपा के मोहन सिंह भी यहां के सांसद रहे। प्रकाश मणि त्रिपाठी की गिनती ईमानदार नेताओं में होती है। इसी तरह मोहन सिंह की गिनती पढ़े लिखे और चिंतक के रूप में होती थी, लेकिन बाद के दिनों में इस सीट पर धनबल के जरिये बसपा से गोरख प्रसाद जायसवाल भी जीतकर संसद पहुंचे।
पिछले दो चुनावों में बाहरी का मुद्दा रहा हावी
चुनावों 2014 और 2019 के लोकसभा चुनाव की बात करें, यहां बाहरी के मुद्दे पर कार्यकर्ताओं में भारी असंतोष देखा गया। 2014 में मोदी लहर में भाजपा ने यहां से पार्टी के कद्दावर नेता कलराज मिश्र को उम्मीदवार बना दिया। भाजपा के बड़े नेताओं में कलराज मिश्र की गिनती होती है। यूपी में उनकी राजनीतिक पकड़ काफी मजबूत मानी जाती रही है, लेकिन उनकी सियासी जमीन लखनऊ के ईर्द गिर्द ही देखी गई। उस वक्त भाजपा ने लखनऊ से राजनाथ सिंह को मैदान अपना उम्मीदवार बनाया था, जिसके चलते मिश्र को चुनाव लड़ने के लिए देवरिया भेज दिया गया।
कलराज मिश्र जब अचानक देवरिया से प्रत्याशी बनाए गए तो सभी को आश्चर्य हुआ। उस वक्त जब उन्हें बाहरी बताया जाने लगा, तो कलराज मिश्र ने सफाई दी थी कि उनके पुरखे देवरिया के प्यासी रहने वाले ही थे, हालांकि मोदी लहर में इन बातों का कोई खास फर्क नहीं पड़ा और कलराज जीत गए। कलराज मिश्र, केंद्र सरकार में मंत्री भी बने और देविरया के लिए कई विकास कार्य भी किए।
रमापति राम त्रिपाठी को 2019 में मिला टिकट
लोकसभा चुनाव 2019 से पहले संत कबीर नगर के भाजपा सांसद स्व. शरद त्रिपाठी और एक स्थानीय विधायक के बीच जूता कांड हुआ था, जिसकी वजह से शरद त्रिपाठी का टिकट संतकबीर नगर से कट गया। शरद भाजपा के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष रमापति राम त्रिपाठी के बेटे थे। ऐसे में पार्टी में रमापति राम त्रिपाठी की पकड़ ठीक थी। शरद का टिकट कटा, तो रमापति राम त्रिपाठी को भाजपा ने देवरिया लोकसभा सीट से उम्मीदवार बना दिया।
उस समय भी कार्यकताओं में यह सवाल उठा कि भाजपा ने एक बार फिर इस सीट पर किसी स्थानीय नेता को उम्मीदवार न बनाकर बाहरी व्यक्ति को प्रत्याशी बना दिया। इसे लेकर दबी जुबान काफी चर्चा हुई, तब उस समय भी रामापति राम त्रिपाठी को सफाई देनी पड़ी कि बतौर संगठन पदाधिकारी वह देवरिया से जुड़े रहे हैं।
कौन-कौन, कब-कब रहा देवरिया का सांसद?
वर्ष | सांसद का नाम | पार्टी |
1951 | विश्वनाथ राय | कांग्रेस |
1951 | सरजू प्रसाद मिश्र | कांग्रेस |
1951 | राम जी वर्मा | सोशलिस्ट पार्टी |
1957 | राम जी वर्मा | प्रजा सोशलिस्ट पार्टी |
1962 | विश्वनाथ राय | कांग्रेस |
1967 | विश्वनाथ राय | कांग्रेस |
1971 | विश्वनाथ राय | कांग्रेस |
1977 | उग्रसेन सिंह | जनता पार्टी |
1980 | रामायण राय | कांग्रेस |
1984 | राजमंगल पांडे | कांग्रेस |
1989 | राजमंगल पांडे | जनता दल |
1991 | मोहन सिंह | जनता दल |
1996 | प्रकाश मणि त्रिपाठी | भाजपा |
1998 | मोहन सिंह | समाजवादी पार्टी |
1999 | प्रकाश मणि त्रिपाठी | भाजपा |
2004 | मोहन सिंह | समाजवादी पार्टी |
2009 | गोरख प्रसाद जयसवाल | बहुजन समाज पार्टी |
2014 | कलराज मिश्र | भाजपा |
2019 | रमापति राम त्रिपाठी | भाजपा |
अब लोकसभा चुनाव 2024 में एक बार फिर बाहरी और स्थानीयता का मुद्दा हावी होता नजर आ रहा है। जमीनी कार्यकर्ता और नेता अंदरखाने में यह कहते सुने जा रहे हैं कि क्या देवरिया का भाजपा कार्यकर्ता सिर्फ झंडा ढोने के लिए हैं। कांग्रेस ने पूर्व विधायक व पार्टी के राष्ट्रीय प्रवक्ता अखिलेश प्रताप सिंह को जब से उम्मीदवार बनाया है, तब से स्थानीयता का मुद्दा और गरमा हो गया है। चर्चा यह भी है कि अगर पार्टी ने इस बार भी अगर रामापति राम त्रिपाठी पर भरोसा जताया तो यह पार्टी के हित में नहीं होगा। भाजपा कार्यकर्ता हर हाल में स्थानीय उम्मीदवार चाहते हैं।
किन-किन नामों पर हो रही है चर्चा?
देवरिया को ब्राह्मणों की धरती कहते हैं, इस लोकसभा सीट में 5 विधानसभाएं आती हैं और यहां पंडितों का बोलबाला है। ऐसे में यहां जातिगत समीकरण बहुत मायने रखता है। अब अगर दावेदारी की बात करें तो यहां से प्रदेश सरकार में मंत्री सूर्य प्रताप शाही के चुनाव लड़ने की भी चर्चा है, कार्यकर्ताओं के मन में उनके नाम पर भी कई तरह के संशय हैं। स्थानीय कार्यकर्ता उनको बड़ा नेता तो मान रहे हैं, लेकिन कहा जा रहा है कि उनकी सियासी जमीन को उतना मजबूत नहीं माना जा रहा।
राजनीतिक पंडितों की मानें तो पिछले विधानसभा चुनाव में अगर बसपा से पथरदेवा सीट पर मुस्लिम उम्मीदवार नहीं उतारा होता तो वहां से सपा के ब्रह्माशंकर त्रिपाठी को मजबूत माना जा रहा था। इस सीट से स्थानीय विधायक शलभ मणि त्रिपाठी को टिकट मिलने के भी कयास लगाए जा रहे हैं।
क्या चाहते हैं भाजपा के स्थानीय कार्यकर्ता?
कार्यकर्ता खुलकर तो अपनी बात नहीं रख पा रहे हैं, लेकिन नाम न छापने की शर्त पर एक पदाधिकारी ने बताया कि पार्टी को किसी नए चेहरे के साथ मैदान में उतरना चाहिए। वही पुराने नेता, वही पुराने लोग, हर बार उन्हीं को मौका दिया जाना ठीक नहीं है। कई स्थानीय और नए उम्मीदवार वर्षों से क्षेत्र में दिन रात एक करके पार्टी का प्रचार प्रसार कर रहे हैं और चुनाव लड़ने की इच्छा जता चुके हैं। ऐसे में इस बार उनको मौका देना चाहिए।
कार्यकर्ताओं का कहना है कि जो सांसद, विधायक और मंत्री रह लिया हो, उसे ही बार-बार मौका क्यों दिया जाए? नए लोगों को भी तो आगे लाया जाए। कार्यकर्ताओं को यह भी उम्मीद है कि पार्टी जल्द ही देवरिया लोकसभा सीट से किसी स्थानीय व नए उम्मीदवार को सामने लाएगी। फिलहाल देवरिया इस इंतजार में है कि भाजपा कब अपने प्रत्याशी की घोषणा करती है।
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