चाचा शिवपाल का साथ अखिलेश के लिए साबित हुआ संजीवनी! इन 3 सबक ने सपा को दिलाई बढ़त
Chacha Bhatija Politics: कहीं न कहीं मुलायम सिंह यादव के निधन के बाद चाचा शिवपाल यादव ने भतीजे अखिलेश यादव को मजबूत करने का संकल्प लिया और एक अभिभावक के तौर पर निसंदेह अपनी जिम्मेदारी का निर्वहन किया। लेकिन यहां समझना जरूरी हो जाता है कि आखिर कैसे चाचा का साथ पाते ही अखिलेश की पार्टी ने कमाल कर दिया।
अखिलेश यादव के साथ शिवपाल यादव।
Uttar Pradesh: सियासत में चाचा भतीजे की लड़ाई किसी से छिपी नहीं है। यूपी, बिहार, महाराष्ट्र या छत्तीसगढ़... चाचा और भतीजे एक दूसरे के धुर विरोधी रहे हैं। हालांकि जब चाचा-भतीजे का साथ होता है तो पार्टियां दमदार हो जाती हैं। उत्तर प्रदेश की सियासत में अखिलेश यादव और शिवपाल यादव के बीच 2017 के विधानसभा चुनाव से पहले जो फूट हुई थी वो अब दूर हो चुकी है, दरारें बढ़ चुकी हैं, विवाद खत्म हो चुका है। कहीं न कहीं मुलायम सिंह यादव के निधन के बाद चाचा ने भतीजे को मजबूत करने का संकल्प लिया और एक अभिभावक के तौर पर निसंदेह अपनी जिम्मेदारी का निर्वहन किया। लेकिन यहां समझना जरूरी हो जाता है कि आखिर कैसे चाचा का साथ पाते ही अखिलेश की पार्टी ने कमाल कर दिया।
अखिलेश के लिए अब तक की सबसे बड़ी जीत
समाजवादी पार्टी ने 2004 के लोकसभा चुनाव में यूपी की 80 में से 35 सीटों पर जीत का डंका बजाया था। इस बार के चुनाव में सपा 30 से अधिक सीटों पर अपना दम दिखा रही है। अखिलेश और राहुल की जोड़ी ने कमाल कर दिया है, जिस उत्तर प्रदेश में पिछले दो बार से भाजपा पूर्ण बहुमत की सरकार बनती आ रही है। उसी यूपी में अबकी बार भाजपा की नैया डूबती नजर आ रही है। अखिलेश और राहुल की जोड़ी ने जलवा बिखेर दिया। इसमें शिवपाल यादव की अहम भूमिका रही, चाचा ने भतीजे को खूब मजबूत किया। आपको वो तीन सबक समझना चाहिए, जिसके चलते विधानसभा में करारी हार झेलने के बावजूद सपा ने इतनी बड़ी जीत हासिल की।
1). नेताओं की जुबान पर लगाई लगाम
विधानसभा चुनाव 2022 में अखिलेश यादव की पार्टी सपा को करारी हार झेलनी पड़ी थी, उस वक्त अखिलेश ने तमाम बड़े-बड़े वादे किए। हालांकि जब परिणाम आए तो उनके दावों की हवा निकल गई। उस वक्त सपा के हार की एक ये वजह भी थी कि उनके नेताओं की जुबान पूरी तरह बेलगाम हो गई थी। मुख्तार के बेटे अब्बास अंसारी ने तो पुलिसवालों का हिसाब करने तक का ऐलान कर दिया था। उस वक्त सपा के साथ गठबंधन में रहे ओम प्रकाश राजभर ने ये तक दावा कर दिया था कि वो दोपहिया पर ट्रिपलिंग फ्री करा देंगे। इस बार अखिलेश ने अपने नेताओं की जुबान को काबू में रखा, जो कहीं न कहीं जीत की सबसे बड़ी वजह बनी।
2). अंदरूनी कलह का कर दिया अंत
चाचा और भतीजे के बीच छिड़ी कलह के चलते 2017 में सपा को जबरदस्त नुकसान उठाना पड़ा था। अखिलेश यादव ने उस वक्त अपने चाचा शिवपाल यादव के खिलाफ कड़ा रुख अख्तियार कर लिया था। परिवार की कलह को इस बार अखिलेश ने पूरी तरह मैनेज कर लिया। चाचा-भतीजे के बीच सुलह हो चुकी है और अब दोनों साथ-साथ अपनी पार्टी को मजबूत कर रहे हैं। आपसी लड़ाई का खत्म होना सपा के लिए संजीवनी बूटी साबित हुई।
3). पीडीए फॉर्मूले ने किया मजबूत
पिछड़ा, दलित और अल्पसंख्यक का फॉर्मूला लेकर अखिलेश ने अपनी पार्टी को खूब मजबूत किया। समाजवादी पार्टी ने लोकसभा चुनाव से पहले एक के बाद एक कई समाजवादी पीडीए (पिछड़ा, दलित, अल्पसंख्यक) यात्रा निकाली। जिसका असर नतीजों में देखने को मिल रहा है। अखिलेश ने टिकट बंटवारे में भी यादवों के अलावा अल्पसंख्यकों, दलित और पिछड़े जाति के उम्मीदवारों पर भरोसा जताया। नतीजा सबके सामने है, अखिलेश का पीडीए फॉर्मूला इस चुनाव में कारगर साबित हुआ।
अखिलेश की साइकिल में चाचा ने भरी हवा
अखिलेश यादव के चाचा शिवपाल यादव ने इस बार लोकसभा चुनाव में अपनी दावेदारी पेश नहीं की। समाजवादी पार्टी ने शिवपाल के बेटे आदित्य यादव को बदायूं सीट से उम्मीदवार बनाया। इस चुनाव में उन्होंने एड़ी-चोटी का जोर लगा दिया। सपा की साइकिल को रफ्तार देने में अखिलेश के चाचा की अहम भूमिका दिखी। कहीं न कहीं लोकसभा चुनाव में दमदार जीत हासिल करने के बाद सपा, अखिलेश और शिवपाल की नजर 2027 में होने वाले यूपी विधानसभा चुनाव पर होगी।
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