Chhattisgarh Election: छत्तीसगढ़ की वो 9 विधानसभा सीटें, जहां कभी जीत नहीं पाई है भाजपा, इस बार नए चेहरे पर जोर
Chhattisgarh Election: छत्तीसगढ़ में सीतापुर, पाली-तानाखार, मरवाही, मोहला-मानपुर, कोंटा, खरसिया, कोरबा, कोटा और जैजैपुर ऐसे विधानसभा क्षेत्र हैं जहां 15 वर्ष तक शासन करने के बाद भी भाजपा को कभी सफलता नहीं मिली।
छत्तीसगढ़ में इन 9 सीटों पर कभी नहीं जीती है भाजपा (फोटो- Bjp Chhattisgarh )
Chhattisgarh Election: छत्तीसगढ़ विधानसभा चुनाव 2023 में बीजेपी इस बार सत्ता में वापसी के लिए पूरा जोर लगाती दिख रही है। पीएम मोदी से लेकर जेपी नड्डा तक चुनाव प्रचार में उतरे हुए हैं, ऐसे में बीजेपी का ध्यान उन सीटों पर ज्यादा है, जहां वो कभी नहीं जीती है, या कम अंतरों से हारी है। छ्त्तीसगढ़ में ऐसी 9 सीटें हैं जहां बीजेपी आजतक एक भी विधानसभा चुनाव में जीत हासिल करने में नाकामयाब रही है।
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कौन है वो नौ सीटें
छत्तीसगढ़ में सीतापुर, पाली-तानाखार, मरवाही, मोहला-मानपुर, कोंटा, खरसिया, कोरबा, कोटा और जैजैपुर ऐसे विधानसभा क्षेत्र हैं जहां 15 वर्ष तक शासन करने के बाद भी भाजपा को कभी सफलता नहीं मिली। इनमें से सीतापुर, पाली-तानाखार, मरवाही, मोहला-मानपुर और कोंटा अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित सीट है, जबकि अन्य चार सामान्य वर्ग की सीट हैं।
नए चेहरों पर दांव
भाजपा को इस बार उम्मीद है कि वह इन नौ सीट को जरूर जीतेगी। पार्टी ने इनमें से छह सीट पर नए चेहरों को अपना उम्मीदवार बनाया है। इन नौ सीट में से बस्तर क्षेत्र का नक्सल प्रभावित कोंटा क्षेत्र भी है जहां से राज्य के उद्योग मंत्री कवासी लखमा विधायक हैं। लखमा एक बार फिर कांग्रेस की ओर से चुनाव मैदान में हैं। लखमा क्षेत्र के प्रभावशाली आदिवासी नेता हैं तथा 1998 से लगातार पांच बार इस सीट से जीत चुके हैं। भाजपा ने इस सीट से नए चेहरे सोयम मुक्का को मैदान में उतारा है। राज्य के उत्तर क्षेत्र सरगुजा संभाग की सीतापुर सीट भी एक ऐसी सीट है जहां से भाजपा कभी नहीं जीती। कांग्रेस के एक और प्रभावशाली आदिवासी नेता तथा भूपेश बघेल सरकार में मंत्री अमरजीत भगत राज्य के गठन के बाद से ही सीतापुर सीट से जीतते रहे हैं। भाजपा ने इस सीट से नए चेहरे राम कुमार टोप्पो को मैदान में उतारा है।
अजित जोगी का दबदबा
इसी तरह कांग्रेस सरकार में एक और मंत्री उमेश पटेल खरसिया सीट से लगातार तीसरी बार चुनाव लड़ रहे हैं। 1977 में अस्तित्व में आने के बाद से ही यह सीट कांग्रेस का गढ़ रही है। खरसिया सीट से भाजपा ने नए चेहरे महेश साहू को मैदान में उतारा है। राज्य की मरवाही और कोटा सीट भी कांग्रेस का गढ़ रही है, इससे पहले 2018 में जनता कांग्रेस छत्तीसगढ़ (जे) ने दोनों सीट पर जीत हासिल की थी। वर्ष 2000 में राज्य के गठन के बाद कांग्रेस सरकार के पहले मुख्यमंत्री अजीत जोगी ने 2001 में मरवाही से उपचुनाव जीता था। बाद में उन्होंने 2003 और 2008 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के टिकट पर दो बार इस सीट से जीत हासिल की। 2020 में अजीत जोगी की मृत्यु के बाद हुए उपचुनाव में कांग्रेस ने यह सीट जीत ली। इसी तरह कोटा सीट पर अजित जोगी की पत्नी की कब्जा रहा है। भाजपा ने कोटा और मरवाही सीट से नए चेहरे प्रबल प्रताप सिंह जूदेव और प्रणव कुमार मरपच्ची को मैदान में उतारा है। कांग्रेस ने मरवाही से अपने वर्तमान विधायक केके ध्रुव और कोटा से छत्तीसगढ़ पर्यटन बोर्ड के अध्यक्ष अटल श्रीवास्तव को मैदान में उतारा है।
2008 परिसीमन के बाद वाली सीटें
चार अन्य सीट कोरबा, पाली-तानाखार, जैजैपुर और मोहला-मानपुर पर भाजपा कभी नहीं जीती, और ये सीट 2008 में परिसीमन के बाद अस्तित्व में आई थीं। राज्य में पाली-तानाखार सीट पर दिलचस्प मुकाबला देखने को मिल रहा है। यहां भाजपा ने राम दयाल उइके को मैदान में उतारा है, जो 2018 के विधानसभा चुनाव से पहले कांग्रेस छोड़कर भाजपा में लौट आए थे। बघेल सरकार के एक अन्य मंत्री जयसिंह अग्रवाल परिसीमन के बाद अस्तित्व में आए कोरबा सीट पर 2008 से अजेय हैं। भाजपा ने कोरबा से कांग्रेस के अग्रवाल के खिलाफ अपने पूर्व विधायक लखनलाल देवांगन को मैदान में उतारा है। राज्य का जैजैपुर (जांजगीर-चांपा जिला) सीट वर्तमान में दो बार के बहुजन समाज पार्टी के विधायक केशव चंद्रा के पास है। कांग्रेस ने अपने जिला युवा कांग्रेस के प्रमुख बालेश्वर साहू और भाजपा ने अपने जिला इकाई के प्रमुख कृष्णकांत चंद्रा को मैदान में उतारा है। राज्य के नक्सल प्रभावित मोहला-मानपुर सीट पर कांग्रेस ने अपने वर्तमान विधायक इंद्रशाह मंडावी को मैदान में उतारा है, वहीं पूर्व विधायक संजीव शाह भाजपा के उम्मीदवार हैं।
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