हरियाणा में कांग्रेस ने ही कांग्रेस को हराया? अंदरूनी कलह ने चुनाव में कर दिया खेला
Haryana Politics: हरियाणा विधानसभा चुनाव को लेकर एग्जिट पोल के नतीजे भी कांग्रेस के पक्ष में थे। 10 सालों से एंटी इनकंबेंसी का फायदा उठाया जा रहा था। लेकिन सवाल ये है कि आखिर यहां कांग्रेस क्यों हारी? क्या हरियाणा में कांग्रेस ने ही कांग्रेस को हराया? कहा जा रहा है कि भीतरघात ने पार्टी को सत्ता से दूर कर दिया।
हरियाणा विधानसभा में कांग्रेस को क्यों झेलनी पड़ी हार?
Why Congress Defeat in Haryana: कांग्रेस ने हरियाणा में चुनावी कैंपेन की शुरुआत तो पूरे दमखम के साथ की थी, लेकिन, धीरे-धीरे पार्टी के अंदर का अंतर्कलह खुलकर लोगों के सामने आ गया। एक तरफ पार्टी के वरिष्ठ नेता और प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा का खेमा था तो दूसरी तरफ रणदीप सुरजेवाला के समर्थक। कांग्रेस पार्टी के भीतर जिसकी नाराजगी की चर्चा सबसे ज्यादा रही, वह हैं सांसद कुमारी शैलजा। जिनका खेमा अलग ही अंदाज में इस चुनाव के दौरान नजर आया। कुमारी शैलजा खुद ही लंबे समय तक पार्टी के चुनाव प्रचार से दूर रहीं और शामिल हुईं भी तो एकदम बेमन से। जिसका परिणाम चुनाव नतीजों में साफ उभरकर आया।
कांग्रेस को हरियाणा में क्यों झेलनी पड़ी हार?
एक तरफ कांग्रेस के खिलाफ मैदान में आम आदमी पार्टी का होना कांग्रेस को परेशान कर ही रहा था, वहीं पार्टी के अंदर प्रदेश के शीर्ष नेताओं के बीच कलह ने पार्टी को और ज्यादा नुकसान पहुंचा दिया। एक तरफ कांग्रेस पार्टी की तरफ से टिकट बंटवारे में कुमारी शैलजा की बात को नहीं मानने से जहां पार्टी के दलित वोट बैंक में नाराजगी दिख रही थी। वहीं, पार्टी के तमाम ऐसे नेता जो टिकट की आस लगाए बैठे थे, उन्होंने टिकट नहीं मिलने की वजह से दूसरी पार्टियों का दामन थामा या निर्दलीय अपनी ही पार्टी के कैंडिडेट के खिलाफ चुनाव मैदान में उतर आए।
राहुल गांधी ने हरियाणा में 12 सीटों पर की रैलियां
इस पूरे चुनाव में कांग्रेस के स्टार प्रचारक राहुल गांधी ने हरियाणा में 12 सीटों पर चुनावी रैलियां की, जिसमें से पार्टी को 5 सीट पर ही जीत मिल पाई। इनमें से गन्नौर, सोनीपत और बहादुरगढ़ में तो कांग्रेस को ऐसा झटका लगा कि यहां से निर्दलीय उम्मीदवार जीत गए और गन्नौर सीट पर तो कांग्रेस प्रत्याशी दूसरे स्थान पर रहे। मतलब, यहां पार्टी के अंदर की खेमेबाजी राहुल गांधी के प्रचार से खत्म नहीं हो पाई। राहुल गांधी ने मंच से कुमारी शैलजा और भूपेंद्र सिंह हुड्डा का हाथ मिलवाकर पार्टी के एकजुट होने का संदेश भी दिया था, लेकिन यहां ये भी काम नहीं आया।
हुड्डा कैंप के दबदबे से नाराज रहीं कुमारी शैलजा
कुमारी शैलजा विधानसभा चुनाव में पार्टी के टिकट बंटवारे में भूपेंद्र सिंह हुड्डा कैंप के दबदबे की वजह से नाराज रहीं और बोल भी पड़ी थीं कि उनकी भूपेंद्र हुड्डा से बातचीत नहीं होती है। हरियाणा के चुनाव में तो भूपेंद्र सिंह हुड्डा, कुमारी शैलजा और रणदीप सुरजेवाला तक सीएम बनने की इच्छा जाहिर करते रहे। भूपेंद्र सिंह हुड्डा दो बार राज्य के सीएम रह चुके हैं और तीसरी बार के लिए वह अपनी फिल्डिंग सजाकर बैठे थे।
भीतरघात की वजह से टूट गईं सारी उम्मीदें
दलित और महिला कार्ड खेलकर, साथ ही पार्टी आलाकमान से नजदीकी बढ़ाकर कुमारी शैलजा भी सीएम की कुर्सी पर नजर टिकाए हुए थीं। ऐसे में चुनाव परिणाम से पहले ही कांग्रेस के भीतर घमासान हरियाणा में शुरू हो गया था।
चुनाव परिणाम आने से ठीक दो दिन पहले से ही दिल्ली में कुमारी शैलजा और भूपेंद्र सिंह हुड्डा दोनों डेरा डाले बैठे थे। दोनों में से कोई भी चुनाव परिणाम के साथ अपनी दावेदारी ठोंकने में देर करने के मूड में नहीं था। ऐसे में हरियाणा से विधानसभा चुनाव के जिस तरह के परिणाम आए, उसने साफ कर दिया कि यहां कांग्रेस ने ही कांग्रेस को हराया और पार्टी के अंदर की लड़ाई ने उसे सत्ता से दूर कर दिया।
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