विपक्षी एकता के लिए कांग्रेस-उद्धव खेमे ने लगाया 'जोर': बंद कमरे में आधा घंटे चला मंथन, फिर बोले- यह दोस्ती नहीं, रिश्ता है
वैसे, एक रोज पहले यानी रविवार को ठाकरे ने एमवीए की संयुक्त ‘वज्रमठ’ रैली में कहा था, “क्रांति करने के लिए आपको सिर्फ (ईवीएम का) बटन दबाने की जरूरत है। स्वतंत्रता सेनानी और क्रांतिकारी स्वतंत्रता प्राप्त करने के लिए फांसी के तख्ते पर चढ़ गए। उन्हें इसकी परवाह नहीं थी कि प्रधानमंत्री या राष्ट्रपति कौन होगा। उन्होंने देश की जनता के लिए अपनी जान कुर्बान कर दी न कि भाजपा को सत्ता में लाने के लिए।”
मुंबई में मातोश्री में भेंट के दौरान कांग्रेस के केसी वेणुगोपाल और उद्धव ठाकरे के साथ उनकी शिवसेना वाले खेमे के नेता।
साल 2024 के आम चुनाव से पहले विपक्षी एकता के लिए विभिन्न दल अपनी एड़ी चोटी का जोर लगा रहे हैं। वे किसी भी सूरत में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली एनडीए सरकार को अगले लोकसभा चुनाव में मात देना चाहते हैं। सोमवार (17 अप्रैल, 2023) को इसी कड़ी में कांग्रेस और शिवसेना (यूबीटी) के अध्यक्ष उद्धव ठाकरे के खेमे वाली पार्टी ने विपक्षी एकता के लिए जोर लगाया।
कांग्रेस के महासचिव के.सी.वेणुगोपाल महाराष्ट्र के पूर्व सीएम ठाकरे के मुंबई स्थित आवास मातोश्री पहुंचे, जहां बंद कमरे में अहम नेताओं के बीच उनकी आधा घंटे से अधिक मुलाकात चली। मीटिंग के बाद उन्होंने पत्रकारों को संबोधित किया और ठाकरे ने कहा- हम जब दोस्ती निभाते हैं, वह दोस्ती नहीं, रिश्ता होता है। हमने 23 साल बीजेपी को समर्थन दिया, पर उन्होंने उसे कभी नहीं समझा कि कौन दोस्त है और कौन दुश्मन।
वेणुगोपाल ने बीजेपी पर जुबानी निशाना साधते हुए कहा, ‘‘हमने देखा है कि कैसे मोदी और अमित शाह की ओर से लोकतंत्र को नष्ट कर दिया गया है। मोदी की तानाशाही के खिलाफ साथ मिलकर लड़ने के लिए सभी विपक्षी दलों में आम सहमति है। कांग्रेस का उद्धव ठाकरे के नेतृत्व वाली शिवसेना (यूबीटी) के साथ पूरी एकजुटता है। हम सब इस बात पर सहमत हैं कि हमें इन ताकतों (भाजपा) से मिलकर लड़ना है।’’
पत्रकारों के आगे एक सवाल पर वह बोले, ‘‘मैंने उद्धव से सोनिया (गांधी) से मिलने दिल्ली आने का अनुरोध किया है। फिर राहुल गांधी भी निश्चित तौर पर मुंबई आएंगे।’’ वैसे, एक रोज पहले यानी रविवार को ठाकरे ने एमवीए की संयुक्त ‘वज्रमठ’ रैली में कहा था, “क्रांति करने के लिए आपको सिर्फ (ईवीएम का) बटन दबाने की जरूरत है। स्वतंत्रता सेनानी और क्रांतिकारी स्वतंत्रता प्राप्त करने के लिए फांसी के तख्ते पर चढ़ गए। उन्हें इसकी परवाह नहीं थी कि प्रधानमंत्री या राष्ट्रपति कौन होगा। उन्होंने देश की जनता के लिए अपनी जान कुर्बान कर दी न कि भाजपा को सत्ता में लाने के लिए।”
दरअसल, शिवसेना (यूबीटी), कांग्रेस और राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (राकांपा) ने महा विकास आघाड़ी का गठन किया था, जो पिछले साल जून तक महाराष्ट्र में सत्ता में रही, जबकि एकनाथ शिंदे के नेतृत्व में कुछ विधायकों की बगावत के कारण शिवसेना में विभाजन हो गया था और उसके बाद शिंदे भाजपा के समर्थन से मुख्यमंत्री बने थे। (पीटीआई-भाषा इनपुट्स के साथ)
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