कांग्रेस के साथ अपने ही कर रहे खेला? जानें राजस्थान में वापसी का एकमात्र विकल्प
Assembly Elections 2023: राजस्थान चुनाव में कांग्रेस के सामने बागियों को काबू में रखना सबसे बड़ा सिरदर्द साबित हो रहा है। कांग्रेस से बगावत करने वाले करीब 15-20 उम्मीदवारों ने पार्टी के उम्मीदवारों की खटिया खड़ी करने पर उतारू हैं। राजस्थान प्रभारी सुखजिंदर सिंह रंधावा ने उन सभी को चेतावनी पत्र भेजा है। आपको बताते हैं कि अब गहलोत के पास क्या विकल्प है।
Rajasthan Chunav News: राजस्थान के सियासी इतिहास में एक कहानी दर्ज हो चुकी है कि सूबे में 5 साल भाजपा और 5 साल कांग्रेस की सरकार रहेगी। 30 साल पहले ये फॉर्मूला सेट हुआ था, तो बदस्तूर जारी है। इस बार कांग्रेस को पूरी उम्मीद है कि ये रिकॉर्ड टूट जाएगा और गहलोत सरकार की प्रचंड वापसी होने जा रही है। हालांकि कांग्रेस के इस सपने को चकनाचूर करने पर उसके अपने ही उतारू हैं। बागियों ने पार्टी की मुसीबत इस कदर बढ़ा रखी है कि कुछ भी रास्ता नजर नहीं आ रहा है।
ताकत दिखाकर बागियों को हड़काने में जुटी कांग्रेस!
कहते हैं कि रूठे हुए को मनाने के लिए कभी गुस्सा नहीं दिखाना चाहिए, कम से कम उन अपनों की नाराजगी खत्म करने के लिए साम दाम दंड भेद सभी का इस्तेमाल करने से गुरेज नहीं करना चाहिए। मगर कांग्रेस ने अपने बागियों को समझाने-बुझाने के बजाय हड़काने का तरीका अपनाया है। पार्टी को निश्चित तौर पर उसके इस तरीके का कोई लाभ नहीं होता नजर आ रहा है। दरअसल, अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के राजस्थान प्रभारी सुखजिंदर सिंह रंधावा ने सोमवार को पार्टी के उन वरिष्ठ नेताओं को चेतावनी पत्र भेजा, जो कथित तौर पर पार्टी के अधिकृत उम्मीदवार का समर्थन नहीं कर रहे हैं।
कांग्रेस के राजस्थान प्रभारी ने बागियों को चेतावनी पत्र भेजा
पार्टी ने एक बयान में कहा कि रंधावा ने पार्टी के आधिकारिक उम्मीदवार के खिलाफ बगावत करने वाले कांग्रेस कार्यकर्ताओं को एक पत्र भी भेजा और उनसे आधिकारिक उम्मीदवार का समर्थन करके पार्टी के पक्ष में प्रचार में शामिल होने को कहा। रंधावा ने चेतावनी दी है कि अगर अगले दो दिनों में बागी उम्मीदवार चुनाव से पीछे नहीं हटते हैं और हबीबुर रहमान, उमरदराज और सरोज मीणा समेत पार्टी पदाधिकारी और वरिष्ठ नेता चुनाव प्रचार में शामिल नहीं होते हैं तो पार्टी उनके खिलाफ कार्रवाई करेगी। पार्टी सूत्रों के मुताबिक, कांग्रेस से बगावत करने वाले करीब 15-20 उम्मीदवार आगामी विधानसभा चुनाव में पार्टी के अधिकृत उम्मीदवारों के लिए मुसीबत बन रहे हैं।
कांग्रेस ने राजस्थान में कर दी बड़ी गलती, होगा नुकसान
5-5 साल वाले फॉर्मूले को देखते हुए निश्चित तौर पर कांग्रेस को एक-एक कदम सोच समझकर बढ़ाना चाहिए, मगर शायद ये बात पार्टी और दिग्गज नेताओं के पल्ले नहीं पड़ रही है। अकड़ के साथ किसी चुनाव तो दूर एक छोटी सी जंग में भी जीत नहीं हासिल की जा सकती है। कांग्रेस को कहीं न कहीं बागियों को समझाने पर जोर देना चाहिए। हालांकि कांग्रेस के लिए सबसे बड़ी राहत की बात ये है कि जिस बात का सबसे बड़ा डर था वो अबतक नहीं हुआ। सचिन पायलट और अशोक गहलोत की लड़ाई खुलकर सामने नहीं आई है। बाकि तो आने वाला वक्त ही बताएगा कि 30 सालों को वो रिकॉर्ड कांग्रेस तोड़ पाती है या खुद टूट जाती है।
क्या है 5 साल कांग्रेस, 5 साल भाजपा वाला फॉर्मूला?
राजस्थान विधानसभा चुनाव 1993
भाजपा+ को 124 सीटों पर जीत मिली
कांग्रेस के खाते में 76 सीटें गईं
भैरौ सिंह शेखावत मुख्यमंत्री बनें
राजस्थान विधानसभा चुनाव 1998
कांग्रेस को 152 सीटों पर जीत मिली
भाजपा+ सिर्फ 48 सीटों पर सिमट गई
अशोक गहलोत मुख्यमंत्री बनें
राजस्थान विधानसभा चुनाव 2003
भाजपा को 123 सीटों पर जीत मिली
कांग्रेस+ सिर्फ 77 सीटें जीत सकी
वसुंधरा राजे मुख्यमंत्री बनीं
राजस्थान विधानसभा चुनाव 2008
कांग्रेस को 102 सीटों पर जीत मिली
भाजपा+ सिर्फ 98 सीटें ही जीत सकी
अशोक गहलोत फिर मुख्यमंत्री बनें
राजस्थान विधानसभा चुनाव 2013
भाजपा ने रिकॉर्ड 163 सीटों पर जीत हासिल की
कांग्रेस+ सिर्फ 37 सीटों पर सिमट गई
वसुंधरा राजे दोबारा मुख्यमंत्री बनीं
राजस्थान विधानसभा चुनाव 2018
कांग्रेस को 107 सीटों पर जीत मिली
भाजपा+ सिर्फ 93 सीटें ही जीत सकी
अशोक गहलोत तीसरी बार मुख्यमंत्री बनें
आज तक किसी को ये बात समझ नहीं आई कि ऐसा क्या हुआ जो हर विधानसभा चुनाव में 5 साल भाजपा और 5 साल कांग्रेस को मौका देने का सिलसिला शुरू हो गया। जब 1990 के बाद 1993 में लगातार दूसरी बार भाजपा ने सरकार बनाया। भैरो सिंह शेखावत भाजपा के नेतृत्व वाली सरकार में लगातार दूसरी बार प्रदेश के मुख्यमंत्री बनें। इसी के बाद से ये सिलसिला शुरू हुआ। अगर हर गुणा-गणित के बाद गहलोत की वापसी होती है तो कांग्रेस के लिए बहुत बड़ी खुशखबरी होगी, साथ ही लोकसभा चुनाव 2024 के लिए पॉजिटिव संकेत होंगे। मगर फिलहाल कुछ भी कह पाना अंधेरे में तीर चलाने जैसा है। राजनीति में कुछ भी हो सकता है।
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