चुनावी समर में गर्माया आदिवासियों के लिए अलग धर्म कोड की मांग वाला मसला: समझिए, क्या है इसके पीछे की स्टोरी

Elections 2023: अलग से धर्म कोड को देने के मसले पर केंद्र सरकार का अब तक साफ रुख नहीं देखने को मिला है। ऐसे में माना जाता है कि अलग धर्म कोड बनाना प्रैक्टिकल नहीं है। अगर यह आया तब समाज में अस्थिरता आ सकती है।

तस्वीर का इस्तेमाल सिर्फ प्रस्तुतिकरण के लिए किया गया है। (फाइल)

Elections 2023: चुनावी समर में आदिवासियों के लिए अलग धर्म कोड की मांग का मसला फिर से गर्माता नजर आया है। "आदिवासी लोग हिंदू नहीं हैं और उनके लिए नया धर्म कोड लाया जाना चाहिए"...इस मांग के साथ विवाद दोबारा उठा है। आइए, जानते हैं इस पूरे मामले की आखिर स्टोरी क्या है:

मौजूदा समय में झारखंड, ओडिशा, असम, पश्चिम बंगाल और बिहार वे सूबे हैं, जहां के लोग सरना धर्म की अलग श्रेणी की मांग को पुरजोर तरीके से उठा रहे हैं। अब आगे बढ़ने से पहले यह जान लेते हैं कि आखिरकार सरना लोग कौन होते हैं। ये प्रकृति प्रेमी होते हैं और पहाड़-नदियों, चांद-सूरज और जंगलों को पवित्र मानते हुए उनकी पूजा-अर्चना करते हैं। अगर केंद्र इनकी मांग को मंजूरी दे दे तो यह भी एक धर्म की तरह अलग माने जाएंगे।

चूंकि, वे सदियों से शिवलिंग की पूजा भी करते आए हैं, इस लिहाज से शिव यानी आदिदेव और भैरव इनके प्रमुख देवता या ईष्ट माने जाते हैं। वैसे, हिंदुस्तान के संविधान में अनुसूचित जनजातियों यानी कि आदिवासियों को हिंदू ही माना जाता है, मगर बहुत से कानून इस तरह के हैं जो इन पर लागू नहीं होते। यही वजह है कि कई सारी जनजातियों में विभिन्न चीजों को लेकर रीति-रिवाज अलग-अलग देखने को मिलते हैं।

हालांकि, अलग से धर्म कोड को देने के मसले पर केंद्र सरकार का अब तक साफ रुख नहीं देखने को मिला है। ऐसे में माना जाता है कि अलग धर्म कोड बनाना प्रैक्टिकल नहीं है। अगर यह आया तब समाज में अस्थिरता आ सकती है।

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