'पहले रायबरेली तो जीतकर दिखाएं', शतरंज के चैंपियन गैरी कास्पारोव ने राहुल गांधी पर किया तंज
Rahul Gandhi: शतरंज के दिग्गज खिलाड़ी गैरी कास्पारोव ने भी राहुल गांधी पर तंज कसकर सभी को हैरानी में डाल लिया है। उन्होंने राहुल गांधी पर परोक्ष रूप से कटाक्ष करते हुए कहाकि उन्हें पहले रायबरेली को जीतना होगा। उन्होंने यह कमेंट जयराम रमेश की उस पोस्ट पर किया जिसमें उन्होंने राहुल गांधी को शतरंज का मंझा हुआ खिलाड़ी बताया था।
शतरंज के दिग्गज गैरी कास्पारोव का राहुल गांधी पर तंज
Rahul Gandhi: कांग्रेस नेता राहुल गांधी वायनाड के बाद रायबरेली से भी लोकसभा चुनाव लड़ रहे हैं। गुरुवार को उन्होंने इस लोकसभा सीट से नामांकन भी दाखिल कर दिया, जिसके बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से लेकर पूरी भारतीय जनता पार्टी उनको ट्रोल कर रही है। अब शतरंज के दिग्गज खिलाड़ी गैरी कास्पारोव ने भी राहुल गांधी पर तंज कसकर सभी को हैरानी में डाल लिया है। उन्होंने राहुल गांधी पर परोक्ष रूप से कटाक्ष करते हुए कहाकि उन्हें पहले रायबरेली को जीतना होगा।
शतरंज के दिग्गज खिलाड़ी गैरी कास्पारोव की इस टिप्पणी के कई मायने निकाले जा रहे हैं। दरअसल, उनकी यह प्रतिक्रिया कांग्रेस महासचिव जयराम रमेश की उस पोस्ट को लेकर की गई है, जिसमें उन्होंने राहुल गांधी को सियासत और शतरंज का माहिर खिलाड़ी बताया था।
क्या है मामला?
राहुल गांधी की रायबरेली से दावेदारी को लेकर जयराम रमेश ने एक ट्वीट किया था। इसमें उन्होंने कहा था कि राहुल गांधी के फैसले ने विरोधियों को चौंका दिया है, वे शतरंज और सियासत के मंझे हुए खिलाड़ी हैं और अभी शतंरज की कुछ चालें बाकी हैं। जयराम रमेश की इस पोस्ट पर एक यूजर ने तंज कसते हुए कहा कि शुक्र है कि गैरी कास्पारोव और विश्वनाथ आनंद जल्द ही रिटायर हो गए और उन्हें हमारे समय के सबसे महान शतरंज जीनियस का सामना नहीं करना पड़ा। इस पोस्ट में यूजर ने कास्पारोव व विश्वनाथ आनंद को टैग किया था। इसी के जवाब में कास्पारोव ने लिखा, 'पारंपरिक निर्देश है कि शीर्ष पर चुनौती देने से पहले आपको पहले रायबरेली से जीतना चाहिए!'
जयराम रमेश ने क्या कहा?
राहुल गांधी की रायबरेली से दावेदारी के बाद जयराम रमेश ने कहा, वह राजनीति और शतरंज के मंजे हुए खिलाड़ी हैं और सोच समझ कर दांव चलते हैं। ऐसा निर्णय पार्टी के नेतृत्व ने बहुत विचार विमर्श करके बड़ी रणनीति के तहत लिया है। इस निर्णय से BJP, उनके समर्थक और चापलूस धराशायी हो गये हैं। बेचारे स्वयंभू चाणक्य जो 'परंपरागत सीट' की बात करते थे, उनको समझ नहीं आ रहा अब क्या करें?
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