S Jaishankar Exclusive: क्या सही में मोदी सरकार ने वॉर रुकवाया था? एस जयशंकर ने बता दिया पूरा सच; देखिए टाइम्स नाउ नवभारत पर विदेश मंत्री का एक्सक्लूसिव इंटरव्यू
S Jaishankar Exclusive: टाइम्स नाउ नवभारत के खास शो पब्लिक मंच में टाइम्स नाउ और टाइम्स नाउ नवभारत की ग्रुप एडिटर-इन-चीफ नाविका कुमार से बात करते हुए विदेश मंत्री ने कहा कि दिल्ली में जी-20 शिखर सम्मेलन में पश्चिमी देशों और रूस को एक साथ लाना बहुत बड़ी कूटनीतिक जीत थी।
S Jaishankar Exclusive: टाइम्स नाउ नवभारत के साथ एक्सक्लूसिव बातचीत में विदेश मंत्री डॉ. एस जयशंकर ने वॉर रुकवाने से लेकर चीन विवाद तक और राजनीति में एंट्री से लेकर पश्चिमी देशों को लेकर भारत के सख्त रूख पर अपनी बेबाक राय रखी। यह पहली बार है जब विदेश मंत्री ने स्पष्ट रूप से कहा है कि भारत यूक्रेन में युद्ध को रोकने, वहां फंसे भारतीयों को बचाने में कामयाब रहा।
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सबसे बड़ी कूटनीतिक जीत
टाइम्स नाउ नवभारत के खास शो पब्लिक मंच में टाइम्स नाउ और टाइम्स नाउ नवभारत की ग्रुप एडिटर-इन-चीफ नाविका कुमार से बात करते हुए विदेश मंत्री ने कहा कि दिल्ली में जी-20 शिखर सम्मेलन में पश्चिमी देशों और रूस को एक साथ लाना बहुत बड़ी कूटनीतिक जीत थी। उन्होंने कहा- "मैं आपको जी20 के बारे में बताना चाहूंगा। जी20 के दौरान यूक्रेन एक ज्वलंत विषय था। हम सोचते थे कि हम सभी को आम सहमति पर नहीं ला पाएंगे। हमने G20 कार्यक्रम को सफल बनाने के लिए पूरे साल काम किया, लेकिन अगर हम सभी को इसमें शामिल नहीं कर सके, तो यह एक समस्या होगी। पश्चिम और रूस के बीच बहुत बड़ी खाई थी, यहां तक कि चीन का झुकाव भी रूस की ओर था। इसलिए, एक बड़ा अंतर था और जी20 को किसी भी कीमत पर सफल बनाना हमारी जिम्मेदारी थी। G20 की अंतिम बैठक से पहले के दो दिन काफी तनावपूर्ण थे। हम लगातार 2-3 दिनों तक सोए नहीं क्योंकि हम बातचीत में व्यस्त थे।"
हां, वॉर रुकवाया- विदेश मंत्री
आगे जब नाविका कुमार ने विदेश मंत्री से पूछा कि इस चुनावी मौसम में सोशल मीडिया पर जंग छिड़ी हुई है। बीजेपी का एक विज्ञापन है जिसमें लिखा है, 'वॉर रुकवा दिया।' दूसरी तरफ विपक्ष मीम्स बना रहा है। वे कह रहे हैं कि उन्हें गाजा और इजराइल के युद्ध को भी रोकना चाहिए। इस पर विदेश मंत्री ने कहा कि अगर आप ये पूछेंगे तो मेरा जवाब होगा कि हां, हमने वॉर रुकवया। विदेश मंत्री ने कहा- "अगर आप मुझसे युद्ध रोकने के बारे में पूछेंगे तो मेरा जवाब हां होगा। मैं इसका गवाह हूं। मैं आपको तारीख दे सकता हूं। मैं समय बता सकता हूं। मैं आपको बता सकता हूं कि किसके लिए। ऐसा दो बार किया जा चुका है। सबसे पहले यह 5 मार्च को खार्किव में किया गया था। हमारे छात्र निकटतम सुरक्षित क्षेत्र की ओर जा रहे थे। भारी गोलाबारी हो रही थी। हमारे प्रधानमंत्री ने राष्ट्रपति पुतिन को फोन किया और उनसे हमारे छात्रों के लिए रास्ता बनाने के लिए गोलाबारी रोकने को कहा। प्रधानमंत्री के अनुरोध पर रूसी सेना ने गोलाबारी रोक दी और हमारे लोग सुरक्षित क्षेत्र में पहुंच सके। एक और महत्वपूर्ण घटना 8 मार्च को हुई। यूक्रेन, रूस और स्थानीय मिलिशिया के बीच तीनतरफा लड़ाई चल रही थी। हमारे छात्र उस क्षेत्र को छोड़ना चाहते थे और हमने संघर्ष को रोकने की कोशिश की। लेकिन, हमारे प्रयास सफल नहीं हो सके। जैसे ही हमारे छात्र बस में दाखिल हुए, गोलीबारी फिर से शुरू हो गई। छात्रों को बस छोड़कर अपने हॉस्टल लौटना पड़ा। इसलिए हम प्रधानमंत्री के पास गए और उनसे छात्रों का मनोबल बढ़ाने के लिए कहा। हमने सुझाव दिया कि दिल्ली के लोगों को वहां जाना चाहिए और छात्रों से बात करनी चाहिए। हमारे दो वरिष्ठ अधिकारियों को उस क्षेत्र में भेजा गया। हम संघर्ष को रोकना चाहते थे और अपने छात्रों के लिए रास्ता बनाना चाहते थे। जब हमने पीएम मोदी को समझाया, तो उन्होंने राष्ट्रपति पुतिन और राष्ट्रपति ज़ेलेंस्की से बात की और स्थानीय मिलिशिया के साथ समझौता किया और गोलीबारी रोक दी। हमने एक साफ-सुथरा रास्ता बनाया और हमारे छात्र निकल गए।
विदेश नीति पर क्या बोले विदेश मंत्री
आगे भारत की विदेश नीति पर बात करते हुए एस जयशंकर ने कहा कि आप जानते हैं जब पिछली सरकारें चीन पर नीतियां बना रही थीं, जब नेहरू चीन पर नीतियां बना रहे थे, तो सरदार पटेल ने इसका विरोध किया था। नेहरू मंत्रिमंडल के कई मंत्रियों ने उनका विरोध किया। बाद में जब अक्साई चिन रोड बनी तो संसद में तीखी चर्चा हुई। नेहरू की विदेश नीति पर कई चर्चाएं हुईं। इसलिए यह कहना कि हाल ही में हालात बिगड़े हैं, गलत है। पाकिस्तान का उदाहरण लीजिए, जब नेहरू और लियाकत अली खान के बीच समझौता हुआ कि दोनों देश अपनी अल्पसंख्यक आबादी की रक्षा करेंगे। उस समय मंत्री रहे श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने इसका विरोध किया था। नेहरू की अमेरिका नीतियों का डॉ. अम्बेडकर ने विरोध किया था। ख़ैर, नेहरू युग अब एक इतिहास है। अटल जी तक परमाणु परीक्षण करने का साहस किसी में नहीं था। मोदी के सत्ता में आने से पहले तक किसी में एलओसी पार कर आतंक को मुंहतोड़ जवाब देने की हिम्मत नहीं थी।
क्या भारत में शामिल होगा PoK?
आगे जब पीओके के भारत में शामिल होने को लेकर सवाल पूछा गया तो विदेश मंत्री ने कहा- "मैंने देखा है कि पिछले कुछ हफ्तों में भारत में पीओके को लेकर रुचि बढ़ रही है। अब नाविका जी अगर आपको याद हो तो दस साल पहले या पांच साल पहले भी कोई पीओके के बारे में बात नहीं करता था तो अब वे इसके बारे में क्यों बात कर रहे हैं? वे इसके बारे में अब इसलिए बात कर रहे हैं क्योंकि अनुच्छेद 370 हटने के बाद कश्मीर घाटी में जबरदस्त बदलाव आया है और इसका असर आप पीओके में भी देख सकते हैं। वहां के लोग सोच रहे हैं कि अगर सीमा पार के लोग फल-फूल रहे हैं तो हम क्यों नहीं, हम अत्याचार क्यों सह रहे हैं। मेरा मानना है कि 30 साल पहले संसद में लिया गया फैसला वैसा ही है कि पीओके भारत का हिस्सा था, है और रहेगा। मुझे विश्वास है कि हमारी जो भी आकांक्षाएं हैं, वे जल्द ही पूरी होंगी।"
कैसे पीएम मोदी ने उन्हें राजनीति में आने के लिए मनाया?
इस खास बातचीत में आगे विदेश मंत्री ने बताया कि उन्होंने कैसे राजनीति में एंट्री की। विदेश मंत्री ने कहा- "पीएम ने मुझे मीटिंग के लिए बुलाया। हमारी सामान्य बातचीत हुई जैसी कि मैं आपके साथ कर रहा हूं। यह विचार उनके (प्रधानमंत्री) के पास था, मेरे पास नहीं। पीएम मोदी बहुत विचारशील हैं। उन्होंने मुझसे बात की, मुझसे इस बारे में सोचने और फिर जवाब देने को कहा। यह कैबिनेट के शपथ ग्रहण से कुछ दिन पहले हुआ। मुझे निर्णय लेने के लिए ज्यादा समय नहीं मिला।"
विपक्ष को घेराविदेश नीति, चीन और पाकिस्तान को लेकर विपक्ष के दावों को लेकर जब एस जयशंकर से सवाल पूछा गया तो उन्होंने कहा कि राहुल गांधी कई बार अपनी ही बातों से इनकार कर देते हैं। वह अस्पष्ट बातें कहते हैं। राहुल चीन को इतना समझते हैं कि वह चीनी दूत के साथ गुप्त बैठकें करते हैं। इन बैठकों से उन्हें कुछ अतिरिक्त समझ तो होनी ही चाहिए। राहुल गांधी और रघुराम राजन जैसे लोग सोचते हैं कि हम विनिर्माण क्षेत्र में कभी भी उत्कृष्ट प्रदर्शन नहीं कर सकते और हमें कोशिश भी नहीं करनी चाहिए। हमें लगता है कि वे हमें गलत रास्ते पर ले जा रहे हैं। फारूक अब्दुल्ला के दावों पर विदेश मंत्री ने कहा- 'उस परिवार को पाकिस्तान से बहुत सहानुभूति है. उन्हें पाकिस्तान की बहुत परवाह है। भारत की ताकत पूरी दुनिया जानती है। मैं कह रहा हूं कि पीओके में पूरे देश की दिलचस्पी है। अब पाकिस्तान की हालत देखिए। वे संघर्ष कर रहे हैं। लेकिन ये नेता पीछे जा रहे हैं।"
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