हुड्डा और सैलजा के झगड़े में बिखर गया कांग्रेस का वोट, हरियाणा में पार्टी की हार के ये रहे कारण

Haryana Election Result 2024: हरियाणा में BJP ने जीत की हैट्रिक लगाई है। भाजपा ने कांग्रेस को हरियाणा में झटका दिया है। वह मानकर चल रही थी कि इस बार एक दशक के वनवास को खत्म कर देगी, लेकिन ऐसा कांग्रेस कर नहीं सकी। वहीं, आतंरिक कलह की वजह से हरियाणा में पार्टी को बड़ा नुकसान हुआ है।

कांग्रेस की अंदरूनी कलह ने हरियाणा चुनाव में कर दिया खेला

Haryana Election 2024: हरियाणा में बीजेपी ने जीत की हैट्रिक लगाई है। पार्टी ने कांग्रेस को जोर का झटका दिया है। वह मानकर चल रही थी कि इस बार एक दशक के वनवास को खत्म कर देगी, लेकिन ऐसा कांग्रेस कर नहीं सकी। वहीं, आतंरिक कलह की वजह से पार्टी को बड़ा नुकसान हुआ है। हरियाणा में जाट और दलित समुदाय कांग्रेस के प्रमुख वोट बैंक माने जाते रहे हैं। सैलजा और हुड्डा के बीच के आपसी टकराव के चलते यह गठबंधन टूटता हुआ नजर आया, लोकसभा चुनावों के दौरान जो जाट-दलित वोट एकजुट था, वह अब विभाजित होता दिखा। हुड्डा के नेतृत्व में जाट समुदाय का समर्थन तो कांग्रेस को मिला, लेकिन दलितों के लिए सैलजा की उपेक्षा ने इस समीकरण को कमजोर किया।

कुमारी सैलजा की नाराजगी भाजपा के लिए बना अवसर

कुमारी सैलजा की नाराजगी का 14 दिनों तक जारी रहना भाजपा के लिए अवसर साबित हुआ। दलित समुदाय में यह संदेश गया कि जाट समुदाय के वर्चस्व के चलते दलित नेतृत्व को कांग्रेस में महत्व नहीं मिल रहा है। सैलजा को दरकिनार किए जाने पर दलितों में असंतोष बढ़ा। जब राहुल गांधी ने 14 दिन बाद सैलजा को अहमियत दी, तो जाट समुदाय में इस बात की चर्चा होने लगी कि अगर कांग्रेस सत्ता में आई, तो मुख्यमंत्री की कुर्सी दलित महिला को मिल सकती है। इस परिस्थिति ने जाट और दलित समुदायों के बीच और खाई पैदा की। बची कूची कसर कांग्रेस के लिए जेजेपी-आजाद समाज पार्टी और इनेलो-बसपा जैसे गठबंधन ने पूरी कर दी।

टिकट बंटवारे में भूपिंदर सिंह हुड्डा का प्रभुत्व साफ नजर आया। हुड्डा खेमें को 70 सीटें दी गईं, जबकि कुमारी सैलजा और रणदीप सुरजेवाला लगातार इस बात पर नाराजगी जताते रहे। ऐसे में इन नेताओं ने खुद को अपने-अपने इलाके तक सीमित कर लिया, जिससे कांग्रेस की प्रदेशव्यापी साख को नुकसान पहुंचा। यह असंतोष चुनाव परिणामों में भी दिखा, जब हुड्डा खेमें से कई सिटिंग विधायकों को टिकट मिला, लेकिन 16 उम्मीदवार हार गए। दरअसल कांग्रेस पार्टी में ‘फ्रेंचाइजी सिस्टम’ बंद होना चाहिए। पार्टी के भीतर से यह आवाज उठाई जा रही है कि राज्यों में किसी एक नेता पर निर्भरता खत्म होनी चाहिए, जैसा कि मध्य प्रदेश में कमलनाथ, राजस्थान में अशोक गहलोत और छत्तीसगढ़ में भूपेश बघेल के साथ देखा गया है। हरियाणा में हुड्डा को पूरी तरह से ताकत सौंपना कांग्रेस की हार का कारण बना, जबकि अन्य राज्यों में संतुलित नेतृत्व के चलते कांग्रेस सफल रही।

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