राजस्थान में कैसे भाजपा का चेहरा बनकर उभरीं वसुंधरा राजे? समझिए पूरा गणित
Vasundhara Raje: राजस्थान की राजनीति में वसुंधरा राजे का नाम लंबे वक्त से भाजपा के पहचान के तौर पर देखा जाता रहा है। विधानसभा चुनाव में अगर भाजपा विजयी बिगुल फूंकती है, तो इस बार वसुंधरा किस भूमिका में नजर आएंगी, अबतक आधिकारिक मुहर नहीं लगी है। मगर ये दावा जरूर किया जा रहा है कि वो सबसे प्रमुख चेहरा होंगी।
क्या वसुंधरा राजे फिर बनेंगी राजस्थान की मुख्यमंत्री?
Rajasthan Assembly Election 2023 News: राजस्थान में मुख्यमंत्री की कुर्सी पर किस पार्टी का नेता बैठेगा, इसका फैसला 3 दिसंबर को मतगणना के बाद हो जाएगा। लेकिन यदि भारतीय जनता पार्टी सत्ता में वापसी करती है, तो क्या वसुंधरा राजे की भी वापसी होगी? इस सवाल का जवाब फिलहाल किसी के पास नहीं है। हालिया परिस्थिति को देखते हुए ये जरूर कहा जा सकता है कि जिस तरह चुनाव के शुरुआती दौर में वसुंधरा राजे खेमा थोड़ा कमजोर नजर आ रहा था, वो बीतते वक्त के साथ काफी मजबूत हुआ है। सीधे शब्दों में समझा जाए तो भाजपा के चेहरे के तौर पर वसुंधरा का नाम काफी मजबूत हुआ है। ऐसा कैसे हुआ और मुख्यमंत्री की रेस में वो कितनी मजबूत साबित हो सकती हैं, आपको सारा गुणा-गणित समझाते हैं।
कैसे राजस्थान में वसुंधरा राजे हुईं मजबूत?
सियासी हालातों पर नजर डाली जाए तो जहां सूबे के बड़े और दिग्गज नेता अपने-अपने निर्वाचन क्षेत्र में ताकत झोंकने में जुटे हैं, वहीं वसुंधरा ने स्थानीय रणनीतियों के दायरे से खुद को बाहर निकाला और एक विशेष यात्रा शुरू की। उन्होंने अभियान चलाया और चुनाव प्रचार के लिए राजस्थान के अलग-अलग क्षेत्र में जाकर पार्टी को मजबूत करने की कोशिश की।
आपसी मतभेद के बीच डटी रहीं वसंधरा राजे!
बीते कई दिनों से राजस्थान की सियासत में इस बात की सुगबुगाहट थी कि भाजपा में अंदरूनी कलह का माहौल है। वसुंधरा ने भाजपा के राजस्थान अभियान को सफल बनाने के लिए जो एकल यात्रा की, उससे विरोधाभास उजागर होते दिखे। हालांकि जिन-जिन क्षेत्रों में वसुंधरा पहुंचीं, वहां उन्हें सकारात्मक अनुभव हुए। वो पार्टी के सामने ये साबित करने लगभग सफल रहीं कि वो एक ऐसी नेता हैं जो किसी इलाके तक सीमित नहीं हैं। वसुंधरा पूरे राजस्थान में यात्रा कर रही हैं और जैसलमेर के रेगिस्तान से लेकर उदयपुर के हरे-भरे परिदृश्य तक मतदाताओं से जुड़ रही हैं।
बीजेपी का चेहरा बनकर उभरीं वसुंधरा राजे!
उन्होंने पिछली गिनती में सिरोही, प्रतापगढ़, बांसवाड़ा, बगरू, हनुमानगढ़, भीलवाड़ा, किशनगंज, बहरोड़, बेउर सहित 40 से अधिक निर्वाचन क्षेत्रों में प्रचार किया था। राजे का दृष्टिकोण पारंपरिक राजनीतिक रणनीति से परे है। अक्सर देखा जाता रहा है कि वो चुनाव प्रचार के लिए सिर्फ भाषण और रैलियों पर निर्भर नहीं रहती हैं, बल्कि लोगों के पास पहुंचकर प्रचार करती हैं। इससे कहीं न कहीं वो जनता के बीच मजबूत होती हैं। भाजपा इस तरह की सियासत को तवज्जो देती है, यही वजह है कि वसुंधरा को 2003 में पार्टी ने मुख्यमंत्री पद का जिम्मा सौंपा था।
इन नेताओं को भाजपा ने मैदान में क्यों उतारा?
सवाल ये उठ रहे हैं कि जब वसुंधरा एक बेहतर नेतृत्व साबित होती रही हैं तो भाजपा को केंद्रीय नेताओं को चुनावी रणभूमि पर उतारने की क्या जरूरत आन पड़ी। राजेंद्र राठौर और वसुंधरा राजे के खेमे में मतभेदों की भी काफी चर्चा है। दीया कुमारी और सतीश पूनिया को लेकर भी सुर्खियों का बाजार गरम है। पार्टी की चुनावी रणनीति के भीतर एक बड़े आंतरिक चुनौती के संकेत मिल रहे हैं। वसुंधरा राजे की एकल यात्रा कहीं न कही भाजपा के वरिष्ठ नेताओं के बीच तालमेल की कमी का संकेत देता है? देखना होगा कि राजस्थान में भाजपा 100 के जादुई आंकड़े को पार करने में सफल हो पाती है या नहीं।
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