पीएम मोदी ले रहे हैं बहुत बड़ा रिस्क, हिल जाएगी पूरी दुनिया, रुपया मजबूत करने के लिए लगाएंगे डॉलर की लंका
भारत और रूस के बीच अंतरराष्ट्रीय ट्रेड की पेमेंट रूपए में हो सके, इस पर बात चल रही है। लेकिन बात सिर्फ रूस तक सीमित नहीं है, भारत रूस के अलावा कई और देशों से ऐसी बातचीत कर रहा है। पीएम नरेंद्र मोदी (Narendra Modi) बहुत बड़ा रिस्क ले रहे हैं और यकीन मानिए जो रिस्क पीएम मोदी ले रहे हैं उससे पूरी दुनिया हिल जाएगी।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Narendra Modi) बहुत बड़ा रिस्क ले रहे हैं और यकीन मानिए जो रिस्क पीएम मोदी ले रहे हैं उससे पूरी दुनिया हिल जाएगी। पूरी दुनिया अमेरिका के डॉलर के पीछे भागती है। सरकारें हों, कंपनियां हों, मार्केट हो। किसी का काम डॉलर के बिना नहीं चलता। दुनिया में देश कोई भी हो, उसकी करेंसी की वैल्यू डॉलर (Dollar) के मुकाबले ही देखी जाती है। इंटरनेशनल ट्रेड में किसी को सुई भी खरीदनी होती है तो पेमेंट डॉलर में होता है। यानी डॉलर का ऐसा रुतबा है, ऐसा दबदबा है, कि दुनिया भर में इसी की दादागीरी चलती है। इसके सामने दूसरी करेंसी बेबस हो जाती है। इसके सामने दुनिया के दूसरे देश बेबस हो जाते हैं। लेकिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इसे बदलना चाहते हैं। कैसे वो बहुत बड़ा रिस्क ले रहे हैं। संबंधित खबरें
अभी तक आपको पता होगा कि भारत और रूस के बीच अंतर्राष्ट्रीय ट्रेड की पेमेंट रूपये (Rupees) में हो सके, इस पर बात चल रही है। लेकिन बात सिर्फ रूस तक सीमित नहीं है, भारत रूस के अलावा कई और देशों से ऐसी बातचीत कर रहा है। इसमें श्रीलंका, मालदीव के अलावा कई साउथ ईस्ट एशियाई देश हैं। इसके अलावा कुछ अफ्रीकन, लैटिन अमेरिकन देश हैं। यानी एक तरह से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ये तय कर लिया है कि अमेरिकी डॉलर पर निर्भरता को कम किया जाए, अपने रुपये को मजबूत किया जाए। संबंधित खबरें
फिलहाल भारत का कोई Exporter अपना सामान बेचता है, तो उसे डॉलर में पेमेंट मिलती है। उसे वो रूपये में कैश कराता है। या फिर भारत को कोई Importer दूसरे देश से माल खरीदता है तो वो दूसरे देश को डॉलर में पेमेंट करता है। क्योंकि अंतर्राष्ट्रीय बाजार में डॉलर एक कॉमन करेंसी है जिसमें माल बेचा और खरीदा जाता है। लेकिन इस पेमेंट सिस्टम में अगर डॉलर को हटाना है तो ये तभी हो सकता है कि ट्रेड करने वाले आपस में ये तय कर लें कि डॉलर की जगह अपनी अपनी करेंसी में माल खरीदेंगे और बेचेंगे। इससे डॉलर पर निर्भरता कम होगी और डॉलर का दबदबा भी कम होगा, जिसके सहारे अमेरिका अपनी दादागीरी भी दिखाता है।संबंधित खबरें
अमेरिका के वर्चस्व को चुनौती देने के बड़े रिस्क भी है। आपने देखा ही है कैसे यूक्रेन युद्ध के दौरान भारत पर दबाव डाला गया। अब अगर अमेरिकी डॉलर के वर्चस्व को चुनौती दी जाएगी और अमेरिकी डॉलर की नरेंद्र मोदी लंका लगाएंगे तो उन पर चौतरफा हमले शुरू होंगे। वो लॉबी फिर से जुट जाएगी जो इस तरह की किसी चुनौती को पसंद नहीं करती। इसलिए हम कह रहे हैं कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी बड़ा रिस्क ले रहे हैं। डॉलर को अमेरिका हथियार बनाता रहा है। यूक्रेन युद्ध में भी यही हुआ। संबंधित खबरें
यूक्रेन युद्ध की वजह से पश्चिमी देशों ने रूस पर प्रतिबंध लगा दिए थे। इससे रूस को डॉलर पर चलने वाले ग्लोबल फाइनेंस सिस्टम से बाहर कर दिया। रूस का 630 बिलियन डॉलर का विदेश मुद्रा भंडार फ्रीज कर दिया गया था। रूस के सेंट्रल बैंक को भी इंटरनेशनल पेमेंट के स्विफ्ट सिस्टम से बाहर किया गया। ये सब अमेरिका ने डॉलर के दम पर कियासंबंधित खबरें
दुनिया में डॉलर का दबदबा ऐसा है कि आज की स्थिति में संबंधित खबरें
-दुनिया में 60% foreign exchange reserves डॉलर में है।संबंधित खबरें
-करीब 40% ग्लोबल ट्रेड Payment डॉलर में होता है।संबंधित खबरें
अमेरिकी डॉलर कैसे देशों की मजबूरी बन गया है इसे आप भारत के ही उदाहरण से समझिएसंबंधित खबरें
भारत अपना 86% ट्रेड यानी एक्सपोर्ट-इंपोर्ट अमेरिकी डॉलर में करता है। और 8% यूरो में करता है और 2% रुपये में होता है।संबंधित खबरें
जबकि अमेरिका से Import सिर्फ 5% होता है।संबंधित खबरें
इसी तरह से अमेरिका को Export सिर्फ 15% होता है।संबंधित खबरें
लेकिन डॉलर के वर्चस्व को कम करने के लिए इसी साल जुलाई में Reserve bank of India ने एक बड़ा कदम उठाया। Reserve bank of India ने एक नोटिफिकेशन जारी कर ये बताया।संबंधित खबरें
अब रुपये में इनवॉयस बनाने, पेमेंट करने और आयात-निर्यात का सेटलमेंट करने की अतिरिक्त व्यवस्था की गई है। RBI ने बताया कि इस व्यवस्था को अमल में लाने से पहले बैंकों को रिजर्व बैंक के फॉरेन एक्सचेंज डिपार्टमेंट से अनुमति लेने की जरूरत होगी। संबंधित खबरें
रूपये में अंतर्राष्ट्रीय ट्रेड के नियम क्या होंगे ये भी RBI ने बताया जिसके तहतसंबंधित खबरें
सारे निर्यात और आयात की वैल्यू और उसका इन्वाइस रुपये में होगा।संबंधित खबरें
जिस देश से व्यापार कर रहे हैं उसकी करेंसी का एक्सचेंज रेट बाजार पर निर्भर करेगासंबंधित खबरें
इसके अलावा रूपये में अंतर्राष्ट्रीय ट्रेड के लिए RBI ने Vostro (वॉस्ट्रो) अकाउंट खोलने की बात कही। RBI ने बताया कि बैंकों को Rupee Vostro Account खोलना होगासंबंधित खबरें
Vostro अकाउंट ऐसा अकाउंट होता है जो एक बैंक दूसरे बैंक के लिए खोलता है। उदाहरण के लिए किसी विदेशी बैंक का Vostro अकाउंट भारत में किसी बैंक की तरफ से संभाला जाता है । जैसे अमेरिका का कोई बैंक भारत के SBI बैंक में अपना खाता खोले लेकिन ये खाता रूपये में मेंटेन होगा। यानी खाता विदेशी बैंक का होगा और लेकिन करेंसी उस देश की होगी, जहां Vostro अकाउंट खोला गया है।संबंधित खबरें
अब भारत और रूस के बीच रूपये में व्यापार के लिए Vostro Account कैसे मदद करेगा ये समझिएसंबंधित खबरें
सबसे पहले भारत के बैंक को रूस के बैंक में Vostro Account खुलवाना होगा। जैसे सितंबर महीने में UCO (United Commercial Bank) ने रूस के प्राइवेट बैंक गैजप्रोम(Gazprom) में Vostro अकाउंट खुलवाया। इसी तरह अक्टूबर में रूस के सबसे बड़े बैंक Sberbank और दूसरे सबसे बड़े बैंक VTB बैंक ने दिल्ली में UCO की शाखा में अपना खाता खुलवाया।संबंधित खबरें
अब खाता तो खुल गया लेकिन इसके जरिये अंतर्राष्ट्रीय ट्रेड कैसे होगा ये समझिएसंबंधित खबरें
इस व्यवस्था के जरिए Import करने वाले भारतीय Importer रुपये में पेमेंट करेंगे और इस पेमेंट को विदेशी बैंकों के स्पेशल Vostro अकाउंट में क्रेडिट कर दिया जाएगा अगर कोई भारत से एक्सपोर्ट कर रहा है तो एक्सपोर्टर को इससे जो पेमेंट मिलना है वो उसको पेमेंट भी विदेशी बैंक के इसी स्पेशल Vostro अकाउंट से हो जाएगा। इसी तरह से अगर रूस का कोई एक्सपोर्टर या इंपोर्टर है तो उसका पेमेंट भी इसी तरह के Vostro अकाउंट जो रूस में खुले होंगे, उनसे हो जाएगा।संबंधित खबरें
आसान शब्दों में इसके फायदे समझिएसंबंधित खबरें
पहली बात- ट्रेड में डॉलर के हटने से पहले करेंसी एक्सचेंज करने पर जो नुकसान होता था, वो नुकसान नहीं होगा। पहले हम रुपये को डॉलर में बदलते थे फिर डॉलर को दूसरे देश की करेंसी में बदलते थे। इसमें एक्सचेंज रेट लगता है और व्यापार करने वाले देशों को नुकसान होता था। करोड़ों के व्यापार में ये नुकसान बहुत बड़ा होता था। लेकिन अब ये नुकसान नहीं होगा।संबंधित खबरें
दूसरी बात- एक्सचेंज रेट की वजह से हो रहा नुकसान अगर नहीं होगा तो दूसरे देश भी सीधे भारत की करेंसी से डील करेंगे। इससे व्यापार भी बढ़ेगा। एक्सपर्ट के मुताबिक अभी रुपये में भारत का व्यापार करीब 2% होता है। लेकिन रुपये में व्यापार करने को बढ़ावा देने वाली नीति से रुपये में व्यापार 2% बढ़कर अगले पांच साल में 20% तक भी पहुंच सकता है। संबंधित खबरें
तीसरी बात- इससे रुपये को मजबूती मिलेगी। रुपये की दुनिया में स्वीकार्यता बढ़ेगी। दूसरी करेंसी पर निर्भरता भी कम होगी। दूसरे देशों को भी संकेत मिलेंगे कि वो डॉलर को छोड़कर भारतीय रुपये में व्यापार करें। संबंधित खबरें
कई एक्सपर्ट ये मानते हैं कि रुपये में पेमेंट करने से भारत का निर्यात रूस को बढ़ जाएगा। इससे रूस के साथ व्यापार घाटे को कम करने में भी मदद मिलेगी। अभी रूस के साथ हमारे आयात निर्यात का बड़ा अंतर है। संबंधित खबरें
2021-22 में
भारत का एक्सपोर्ट- 3.25 बिलियन डॉलर थासंबंधित खबरें
भारत का इंपोर्ट- 9.87 बिलियन डॉलर थासंबंधित खबरें
भारत का टारगेट है कि व्यापार घाटे को कम किया जाए और रूस के साथ व्यापार को 13 बिलियन डॉलर से 30 बिलियन डॉलर तक पहुंचाया जाएगासंबंधित खबरें
रूपये में अंतर्राष्ट्रीय व्यापार आसान हो सके इसके लिए आज ही मोदी सरकार ने विदेशी व्यापार नीति में बदलाव किए हैं। सरकार ने एक्सपोर्ट प्रमोशन स्कीम के तहत अंतर्राष्ट्रीय व्यापार की पेमेंट रूपये में करने की इजाजत दे दी है।सरकार की तरफ से कहा गया है कि भारत की करेंसी के internationalisation में कई देशों ने रूचि दिखाई है।संबंधित खबरें
डॉलर का दबदबा दुनिया में कैसे हुआ। इसका करीब 100 साल पुराना इतिहास है। संबंधित खबरें
पहले विश्व युद्ध से पहले ब्रिटिश पाउंड सबसे ताकतवर मुद्रा होती थी। क्योंकि दुनिया में जगह जगह पर ब्रिटिश राज था और ज्यादातर ट्रेड पर उन्हीं का कब्जा था। लेकिन पहले विश्व युद्ध में मुख्य तौर पर ब्रिटेन को बहुत नुकसान हुआ। इससे ब्रिटेन का दबदबा कम हुआ और अमेरिका का दबदबा शुरू हो गया। संबंधित खबरें
उस वक्त हालात ये हो गई थी कि ब्रिटेन ने युद्ध के लिए अमेरिका से जो उधार ले रखा था, उसे युद्ध के बाद ब्रिटेन चुका नहीं पाया, क्योंकि अमेरिका से लिया उधार ब्रिटेन ने युद्ध में फ्रांस जैसे अपने सहयोगियों को सपोर्ट करने में खर्च किया और फ्रांस जैसे सहयोगी देश जब उसे लौटा नहीं पाए तो ब्रिटेन भी अमेरिका को उधार चुका नहीं पाया। संबंधित खबरें
ऐसे में पहले विश्व युद्ध के बाद ब्रिटेन, अमेरिका, फ्रांस जैसे देशों ने विश्व युद्ध का खर्च जर्मनी से वसूलने वाले समझौता करने पर जर्मनी को मजबूर किया, और इसी समझौते की वजह से आने वाले सालों में जो तनाव बढ़ा, वो 1939 में दूसरे विश्व युद्ध का आधार बना। संबंधित खबरें
पहले विश्व युद्ध के समय अमेरिका की स्थिति ये थी कि पहले विश्व युद्ध में अमेरिका ने देर में एंट्री की थी, उसे नुकसान कम हुआ और उस युद्ध में हथियारों और सामान की सप्लाई का मेन सप्लायर अमेरिका ही था। इससे अमेरिका का व्यापार खूब बढ़ा और वहां अर्थव्यवस्था बहुत तेजी से आगे बढ़ने लगी। वहीं ब्रिटेन जैसे देश कमजोर होने लगे।संबंधित खबरें
पहले विश्व युद्ध के बाद जिन देशों को आर्थिक तौर पर बड़ा नुकसान हुआ, और वो युद्ध लिए लिया उधार चुका नहीं पा रहे थे, वो अपने वित्तीय संकट से निकलने के लिए अमेरिका के पास गए और अमेरिका से वहां के बॉन्ड खरीदकर और गोल्ड रखकर अमेरिका से अपने लिए बड़ी रकम उठाई। संबंधित खबरें
इसके बाद दूसरा विश्व युद्ध आते आते अमेरिका बहुत मजबूत स्थिति में आ गया और डॉलर मजबूत हो गया। संबंधित खबरें
1944 में जब दूसरा विश्व युद्ध चल ही रहा था, तब अमेरिका और उसके सहयोगियों सहित 44 देशों ने Bretton Woods Agreement किया। संबंधित खबरें
इस समझौते में दूसरी करेंसी को 1% के फिक्स्ड रेट पर अमेरिकी डॉलर में कंवर्ट करने का नए सिस्टम बना। उस समय दूसरे देश बहुत कमजोर स्थिति में थे और अमेरिका मजबूत था, इसलिए विश्व युद्ध जब खत्म हुआ तो अमेरिका के सहयोगी दलों ने अपने करेंसी रिजर्व के लिए अमेरिकी डॉलर का इस्तेमाल करने पर हामी भर दी। संबंधित खबरें
Bretton Woods Agreement के तहत ही बाद में वर्ल्ड बैंक और IMF जैसी संस्थाएं भी अस्तित्व में आई। और इस समझौते के बाद ही डॉलर दुनिया की रिज़र्व करेंसी बन गया। और इसने दुनिया की रिजर्व करेंसी के तौर पर एक तरह से ब्रिटिश पाउंड को रिप्लेस कर दिया। संबंधित खबरें
अमेरिकी डॉलर को इतना महत्व इसलिए भी दिया जा रहा था क्योंकि अमेरिका की इस करेंसी के पास बड़े गोल्ड रिजर्व का सपोर्ट भी था। उस वक्त अमेरिका के पास दुनिया का सबसे ज्यादा 75% गोल्ड रिजर्व था। और Bretton Woods Agreement के तहत डॉलर को गोल्ड में भी कंवर्ट किए जा सकता थासंबंधित खबरें
इसकी वजह से दूसरे देशों ने गोल्ड रिजर्व की जगह पर अमेरिकी डॉलर का भंडार जमा करना शुरू किया। दूसरे देशों ने अमेरिका की ट्रेजरी सिक्योरिटी खरीदनी शुरू की। इससे अंतर्राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था में अमेरिका और अमेरिकी डॉलर का प्रभुत्व बढ़ता चला गया। संबंधित खबरें
लेकिन अमेरिका ने पिछले 100 साल में जो बनाया, वो अगर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी खत्म करने की दिशा में बढ़ रहे हैं तो उन्हें बड़ी चुनौती और बड़े खतरे का सामना करना पड़ेगा क्योंकि जिसे अमेरिका ने 100 साल में बनाया, उसे एक झटके में खत्म नहीं होने देगा।संबंधित खबरें
दुनिया के कई एक्सपर्ट मानते हैं कि डॉलर पर निर्भरता कम होगी तो किसी भी संकट की स्थिति में दुनिया भर की करेंसीज़ में इतना उतार चढ़ाव नहीं होगा। अर्थव्यवस्था में इतनी उथल पुथल नहीं होगी। जो आज दिख रहा है। इसीलिए भारत इस दिशा में काम कर रहा है कि अपना व्यापार ज्यादातर अपनी करेंसी में ही हो। भारत ना सिर्फ ये कर रहा है बल्कि भारत यूक्रेन युद्ध के बीच लोगों की जान बचाने के लिए भी उतर गया है। दुनिया के लिए इस वक्त बड़ा संकट है-रूस यूक्रेन युद्ध का। संबंधित खबरें
जिससे अर्थव्यवस्थाएं तबाह हो रही हैं। जिससे महंगाई बढ़ रही है। और इससे बड़ा संकट ये है कि अगर रूस-यूक्रेन का युद्ध ना रुका तो सर्दियों में लाखों लोग ठंड में ही मर जाएंगे। किसी हथियार की जरूरत नहीं पड़ेगी। ऐसे वक्त में दुनिया को लग रहा है कि अगर कोई रूस और यूक्रेन के युद्ध को रोक सकता है, अगर कोई दुनिया को बचा सकता है, अगर कोई लाखों लोगों की जान बचा सकता है तो वो देश भारत है। और दुनिया को बचाने और लाखों लोगों की जान बचाने के लिए भारत उतर गया है।संबंधित खबरें
भारत के विदेश मंत्री एस जयशंकर दो दिन के लिए रुस गए थे। यूक्रेन युद्ध के 8 महीने में पहली बार ऐसा हुआ कि विदेश मंत्री ने रूस का दौरा किया। एस जयशंकर पिछले साल जुलाई में रूस गए थे। तब से अब उन्होंने रूस का दौरा किया। संबंधित खबरें
वैसे तो एस जयशंकर रूस इसलिए गए थे क्योंकि वहां पर Trade, Economic, Scientific, Technological और Cultural सहयोग के लिए बनी दोनों देशों की Inter Governmental Commission की मीटिंग में बोलना था और इसमें रूस के ट्रेड मिनिस्टर भी थे। इसके अलावा रूस के विदेश मंत्री से भी उनकी बातचीत हुई। एक बात ये भी है कि यूक्रेन युद्ध शुरू होने से लेकर अब तक बीच में एस जयशंकर और रूस के विदेश मंत्री की अलग अलग जगह पर चार बार मुलाकात हो चुकी है। लेकिन भारत के विदेश मंत्री का रूस जाने की टाइमिंग बहुत अहम है। क्योंकि पूरी दुनिया में ये अटकलें लग रही हैं कि एस जयशंकर का दौर वो रास्ते निकालने के लिए भी हुआ, जिससे रूस-यूक्रेन का युद्ध फिलहाल के लिए रुकवाया जा सकता है। संबंधित खबरें
दुनिया को भारत से उम्मीद इसलिए भी है क्योंकिसंबंधित खबरें
-भारत रूस का भी दोस्त है और पश्चिमी देशों का भी दोस्त है। संबंधित खबरें
-पुतिन के साथ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की पर्सनल केमिस्ट्री है।संबंधित खबरें
दुनिया को लगता है कि अगर पुतिन को कोई रोक सकता है या उन्हें बातचीत के लिए मना सकता है तो वो काम भारत ही कर सकता है। भारत ने पहले भी ऐसा किया है कि जुलाई में रूस को इस बात के लिए राजी किया कि वो यूक्रेन के बड़े अनाज स्टॉक को फ्री कर दे, इसकी डील टर्की और यूएन ने कराई थी लेकिन परदे के पीछे बड़ा रोल भारत ने निभाया था।संबंधित खबरें
कुछ रिपोर्ट्स के मुताबिक सितंबर में जब रूस की सेना यूक्रेन के न्यूक्लियर प्लांट जापोरिजिया पर भीषण गोलाबारी कर रही थी तो रूस को इस बात के लिए राजी किया था कि वो इस वक्त थोड़ा पीछे हट जाएसंबंधित खबरें
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-16 सितंबर को समरकंद में SCO समिट के दौरान पीएम मोदी ने पुतिन से उनके सामने कह दिया था कि ये युद्ध का दौर नहीं है।संबंधित खबरें
-इसके बाद 4 अक्टूबर को पीएम मोदी ने यूक्रेन के राष्ट्रपति जेलेंस्की से फोन पर बात की थी और कहा था कि किसी भी शांति प्रक्रिया में भारत अपना योगदान करने के लिए तैयार हैसंबंधित खबरें
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