सांप्रदायिकता से लेकर महिलाओं की आजादी तक, लुधियाना की चुनावी रैली में ऐसा था नेहरू का पहला भाषण
Jawaharlal Nehru First Rally: आजादी के बाद पाकिस्तान धर्मांधता में किस तरह से डूब रहा था और उसके हश्र दोनों को नेहरू देखते आ रहे थे। उन्हें इस बात की चिंता थी कि भारत भी कहीं इसी राह पर न चलने लगे। इसलिए वह अपनी रैलियों में बार-बार सामाजिक सौहार्द की बात करते थे।
1952 में पंडित नेहरू ने लुधियाना में अपना पहला भाषण दिया था।
Jawaharlal Nehru First Rally: आजादी के बाद देश का पहला आम चुनाव 1951-52 में हुआ। इससे पहले पांच सालों तक पंडित जवाहर लाल नेहरू देश के प्रधानमंत्री रहे लेकिन 1952 में उन्हें और उनकी पार्टी कांग्रेस को चुनाव का सामना करना पड़ा। पीएम के रूप में पांच वर्षों तक देश उनका कार्यकाल देख चुका था। आम चुनाव के लिए कांग्रेस और देश के लिए वह एक बड़े नेता थे। कांग्रेस पार्टी का चुनाव प्रचार पंडित नेहरू के इर्द-गिर्द सिमटा हुआ था। उस समय कांग्रेस की तरफ से वही मुखर और करिश्माई नेता थे। पहले आम चुनाव में नेहरू ने किस तरह से जनता से वोट मांगा, यह जानना काफी दिलचस्प होगा।
लुधियाना में की अपनी पहली चुनावी रैली
1952 के चुनाव में नेहरू ने अपने चुनाव का आगाज लुधियाना से किया। इस रैली में उन्होंने संप्रदायवाद के खिलाफ जमकर हमला बोला। उन्होंने लोगों से सांप्रदायिक ताकतों से सावधान रहने के लिए कहा। नेहरू ने लोगों से कहा कि सांप्रदायिक ताकतें अगर सत्ता में आईं तो वे देश के लिए 'बर्बादी' लेकर आएंगी। उन्होंने लोगों से अपना दिलो-दिमाग खुले रखने और चारो तरफ से ताजी हवा आने देने की अपील की।
पाकिस्तान की हालत से फिक्रमंद थे नेहरू
आजादी के बाद पाकिस्तान धर्मांधता में किस तरह से डूब रहा था और उसके हश्र दोनों को नेहरू देखते आ रहे थे। उन्हें इस बात की चिंता थी कि भारत भी कहीं इसी राह पर न चलने लगे। इसलिए वह अपनी रैलियों में बार-बार सामाजिक सौहार्द की बात करते थे। अमृतसर की रैली में उन्होंने कहा, 'एक धर्म की दूसरी धर्म से आगे निकलने की होड़ इससे पहले कभी नहीं देखी गई। इस तरह की बात अगर कोई करता है तो वह मूर्ख होगा और इससे देश को भारी नुकसान उठाना पड़ेगा।' नेहरू धार्मिक संघर्ष को आर्थिक तरक्की की एक बड़ी बाधा के रूप में देखते थे। वह कहते थे कि लोग जब जाति, धर्म, मजहब से ऊपर उठकर और सौहार्द के साथ रहेंगे, देश तभी तरक्की करेगा।
रैलियों में आरएसएस को निशाने पर लेते थे
1952 के अपने एक अन्य भाषण में नेहरू ने कहा, 'सांप्रदायिक मानसिकता वाले लोग छोटी सोच के व्यक्ति हैं, वे कुछ बड़ा नहीं सोच सकते। ऐसे देश जो निरर्थक सिद्धांतों पर चलते हैं, वे भी छोटे हो जाते हैं। सांप्रदायिक संगठन देश को भारी क्षति पहुंचा रहे थे।' नेहरू का इशारा राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) और हिंदू महासभा की तरफ था।
लैंगिक समानता का मुद्दा उठाया
अपनी चुनावी रैलियों में नेहरू अक्सर लैंगिक समानता के महत्व पर बोला करते थे। नेहरू महिलाओं का कानूनी एवं पारंपरिक रूप से उत्थान अत्यंत जरूरी मानते थे। उनका मानना था कि देश में महिलाओं की स्थिति अच्छी नहीं है। वे कहते थे कि किसी देश का मूल्यांकन उसकी देश की महिलाओं की स्थिति से होना चाहिए। उन्होंने कहा, 'इस देश में पुरुषों का प्रभाव बहुत ज्यादा है। मेरा मानना है कि देश के कानून एवं परंपराएं महिलाओं को दबाने वाली हैं, वे उन्हें आगे बढ़ने से रोकती हैं। यह गलत है। इस तरह के कानून में बदलाव करने की जरूरत है।' देश में लैंगिक समानता लाने के लिए नेहरू ने प्रयास भी किए लेकिन उन्हें भारी विरोध का सामना करना पड़ा।
चुनाव में सांप्रदायिकता के खिलाफ बोलते रहे
पहले आम चुनाव में नेहरू देश भर में जहां-जहां गए उन्होंने सांप्रदायिकता के खिलाफ अपने विचार रखे। श्यामा प्रसाद मुखर्जी के गढ़ बंगाल की एक रैली में नेहरू ने जनसंघ को आरएसएस और हिंदू महासभा की नाजायज औलाद कहकर खारिज कर दिया। भरतपुर और बिलासपुर में उन्होंने वामपंथियों को आड़े हाथ लिया। अंबाला में उन्होंने महिलाओं से पर्दा प्रथा त्यागने की अपील की।
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