झांसी सीट : UP Lok Sabha Election 2024 , वोटिंग की तारीख ; मुख्य उम्मीदवार और चुनाव रिजल्ट की डेट

Jhansi Lok Sabha Seat : बुंदेलखंड की सबसे लोकप्रिय झांसी संसदीय सीट पर भाजपा और कांग्रेस पार्टी ने लंबे समय तक राज किया है। 2024 में यहां पांचवें चरण में 20 मई को मतदान होना है। आइये जानते हैं यहां से प्रमुख राजनीतिक पार्टियों ने किन प्रत्याशियों को चुनावी मुकाबले के लिए जनता के सामने खड़ा किया है।

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Jhansi Lok Sabha Seat : बुंदेलखंड का झांसी ऐतिहासिक शहर है। इस शहर से जुड़ी ऐतिहासिक गाथाएं हम सभी के जेहन में गूंजती रहती हैं। वर्तमान परिदृश्य में भी जिला राजनीतिक इबारत लिख रहा है। यहां के चुनावी इतिहास पर नजर डालें तो भाजपा काफी सशक्त नजर आती है। हालांकि, कांग्रेस पार्टी का भी रसूख कम नहीं रहा है। लेकिन, पिछले तीन दशक से भारतीय जनता पार्टी ने अपने राजनैतिक पैर अंगद की तरह जमा दिए हैं। 1989 में भारतीय जनता पार्टी ने यहां से जीत का खाता खोला था। उस पहली कील को उखाड़ने में प्रमुख विपक्षी पार्टियों के ताने-बाने ढीले पड़ गए। यही कारण है कि साल 1999 के चुनाव को छोड़ दे तों भाजपा की जड़ों को उखाड़ने में कांग्रेस समेत, समाजवादी पार्टी और बसपा को लाले पड़ गए। तो इस आर्टिकल में बात झांसी के राजनैतिक इतिहास के साथ यहां के समीकरण पर। साथ ही जानेंगे कि प्रमुख राजनीतिक पार्टियों ने किन राजनीतिक सूरमाओं को भाजपा से मुकाबला लेने के लिए चुवावी मैदान में उतारा है, इन सभी पहलुओं पर एक सरसरी नजर।

कांग्रेस का रहा दबदबा

आजादी के बाद साल 1952 में हुए पहले आम चुनाव में झांसी सीट भी शामिल थी। पहले चुनाव में कांग्रेस ने जीत के साथ श्री गणेश किया और पहले सांसद के तौर पर रघुनाथ विनायक धुलकर को संसद पहुंचने का मौका मिला। सफर आगे बढ़ा तो 1957, 1962 और 1967 के चुनाव में सुशीला नय्यर को जनता ने सिर आंखों में बिठाया और उन्हें लगातार तीन बार झांसी की ऐतिहासिक धरती की सेवा का अवसर दिया। फिर, 1971 के चुनाव में गोविंद दास रिछारिया और फिर 1977 में चौथी बार सुशीला नय्यर सांसद चुनी गईं।

भाजपा ने तोड़ा कांग्रेस का तिलिस्म

चुनावी जानकार भी मानते हैं कि 1975 के आपातकाल के घटनाचक्र में कांग्रेस के लिए झांसी सीट अभिशाप साबित हुई। यही कारण है कि 1977 में हुए लोकसभा चुनाव में कांग्रेस का तिलिस्म सिमट गया और जनता पार्टी के टिकट पर फिर सुशीला नय्यर सांसद बनीं। तीन साल बाद 1980 में विश्वनाथ शर्मा और 1984 में सुजान सिंह बुंदेला सांसद चुने गए। 1989 में यह सीट भाजपा के पाले में आ गई। फिर क्रमवार 1991, 1996 और 1998 में यहां से भाजपा के राजेंद्र अग्निहोत्री विजयी होकर संसद तक पहुंचे।

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