Karnataka Elections 2024: जब जगदीश शेट्टार ने बसवराज को हराकर BJP में ली थी जबरदस्त एंट्री, 1994 का सियासी किस्सा

शेट्टार 2012 में बीजेपी के मुख्यमंत्री थे लेकिन 2013 में अपनी पार्टी को सत्ता में वापस लाने में विफल रहे। शेट्टार ने हाल ही में बीजेपी छोड़ कांग्रेस में जाकर सुर्खियां बटोरी हैं।

Basavraj Bommai andJagdish Shettar

बसवराज बोम्मई और जगदीश शेट्टार (PTI/Twitter)

Karnataka Elections 2024: कर्नाटक में इन दिनों चुनावों का शोर है और खूब सियासी उठापटक देखने को मिल रही है। तमाम दलों के नेता इधर से उधर हो रहे हैं। ऐसे ही एक नेता हैं जगदीश शेट्टार जिन्होंने हाल ही में कांग्रेस का दामन थामा है। शेट्टार ने अपने सियासी करियर की शुरुआत भारतीय जनता पार्टी से की थी। इन्होंने 1994 में विधानसभा चुनाव जीतकर धमाकेदार एंट्री ली थी। उसी दौर का किस्सा हम आपको बता रहे हैं जो सीएम बसवराज बोम्मई से भी जुड़ा हुआ है।

बसवराज बोम्मई और लिंगायत नेता जगदीश शेट्टार का सियासी इतिहास बहुत पुराना है। बोम्मई सत्तारूढ़ बीजेपी से कर्नाटक के मुख्यमंत्री हैं। उनके सामने आगामी चुनाव में अपनी पार्टी को सत्ता में वापस लाने की चुनौती है। इसी तरह की चुनौती शेट्टार ने भी झेली थी। शेट्टार 2012 में बीजेपी के मुख्यमंत्री थे लेकिन 2013 में अपनी पार्टी को सत्ता में वापस लाने में विफल रहे। शेट्टार ने हाल ही में बीजेपी छोड़ कांग्रेस में जाकर सुर्खियां बटोरी हैं।

आरएसएस और जनसंघ से जुड़े रहे हैं

वह लंबे समय तक बीजेपी में रहे और उनकी जड़ें आरएसएस और जनसंघ से जुड़ी हैं। उनके पिता शिवप्पा शेट्टार भी जनसंघ के साथ थे। जब 1990 के दशक में हुबली में ईदगाह मैदान का मुद्दा उठा, तो जगदीश शेट्टार इसका हिस्सा थे। ईदगाह मैदान सेंटर हुबली में बेंगलुरु से लगभग 400 किलोमीटर दूर वह जगह है जहां मुसलमान एक लंबी अवधि के पट्टे के तहत साल में दो बार ईद की नमाज अदा करते हैं। इसे कित्तूर रानी चेन्नम्मा मैदान भी कहा जाता है। इसका उपयोग बाकी समय में खेल आयोजनों और सार्वजनिक बैठकों के लिए किया जाता है।

ईदगाह मैदान बना बीजेपी के उदय की वजह

लेकिन जब नमाज के लिए जमीन का इस्तेमाल करने का अधिकार रखने वाले मुस्लिम समूह अंजुमन-ए-इस्लाम ने यहां निर्माण करना चाहा, तो चीजें बिगड़ गईं। कई लोग निर्माण के खिलाफ कोर्ट गए थे। यह मुद्दा वर्षों तक अदालत से अदालत तक घूमता रहा और फिर कर्नाटक में हिंदुत्व और बीजेपी के उदय का कारण बन गया। 1992 में भाजपा सहित दक्षिणपंथी समूहों ने गणतंत्र दिवस के दिन इस मैदान पर राष्ट्रीय ध्वज फहराने का फैसला किया। अंजुमन-ए-इस्लाम ने अनुमति देने से इनकार कर दिया। हालांकि, निषेधाज्ञा की अवहेलना करते हुए ध्वज फहराया गया और बाद में पुलिस द्वारा हटा दिया गया। बाद में उमा भारती और कई अन्य बीजेपी नेताओं ने स्वतंत्रता दिवस पर झंडा फहराने का प्रयास किया। उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया, जिससे हिंसा भड़क गई। इस मुद्दे ने कर्नाटक में बीजेपी की ताकत इस कदर बढ़ाई की उसने अगले कुछ वर्षों में इस दक्षिणी राज्य में भगवा फहरा दिया।

1994 में शेट्टार ने दी थी बोम्मई को मात

1994 में इन सारी गतिविधियों के बीच जगदीश शेट्टार हुबली (ग्रामीण) से चुनाव के लिए खड़े हुए और पहली बार राज्य विधानसभा के लिए चुने गए। यह एक ऐसी पार्टी यानी बीजेपी में उनके चुनावी पदार्पण के लिए एकदम सही समय था, जो अभी भी राज्य में अपने पांव जमा रही थी। उन्होंने जिस उम्मीदवार को हराया था वह कोई और नहीं बल्कि बसवराज बोम्मई थे, जिन्हें लगभग 16,000 मतों के बड़े अंतर से हराया था। बोम्मई तब जनता दल के साथ थे।

बोम्मई 2008 में बीजेपी में शामिल हुए

शेट्टार की तरह बोम्मई भी एक राजनीतिक परिवार में पैदा हुए थे। उनके पिता एसआर बोम्मई 1980 के दशक के अंत में राज्य के मुख्यमंत्री रहे थे। वह 2008 में भाजपा में शामिल हुए और पार्टी में आगे बढ़े। बीएस येदियुरप्पा की जगह मुख्यमंत्री के रूप में चुने जाने के दौरान बोम्मई गृह मंत्री थे। जब बोम्मई ने अपने मंत्रिमंडल का गठन किया, तो यह उम्मीद की जा रही थी कि वरिष्ठ नेता जगदीश शेट्टार मंत्रालय में शामिल होंगे। शेट्टार बीएस येदियुरप्पा के मंत्रिमंडल का हिस्सा रह चुके थे। लेकिन वह यह कहते हुए इससे पीछे हट गए कि वह एक मुख्यमंत्री रहे हैं और अपने से जूनियर नेता के मंत्रिमंडल में काम करना सही नहीं होगा। इस कदम से यह संदेश गया कि शेट्टार खुद को बोम्मई से वरिष्ठ मानते हैं। बता दें कि दोनों के बीच उम्र का फासला 5 साल का है।

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अमित कुमार मंडल author

करीब 18 वर्षों से पत्रकारिता के पेशे से जुड़ा हुआ हूं। इस दौरान प्रिंट, टेलीविजन और डिजिटल का अनुभव हासिल किया। कई मीडिया संस्थानों में मिले अनुभव ने ...और देखें

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