Karnataka Elections: इस सीट पर भाई-भाई के बीच कड़क मुकाबला, बंगारप्पा की विरासत पर छिड़ी जंग
सोराब निर्वाचन क्षेत्र कई दशकों तक बंगारप्पा का गढ़ बना रहा और उन्होंने 1967 से 1994 तक लगातार सात बार इस सीट का प्रतिनिधित्व किया था।
मधु बंगारप्पा
Karnataka Elections: कर्नाटक विधानसभा चुनाव में इस बार कई दिलचस्प मुकाबले हो रहे हैं। ऐसा ही एक मुकाबला दो भाइयों के बीच सोराब सीट पर हो रहा है। यहां दिग्गज नेता बंगारप्पा के दो बेटे आमने-सामने हैं। कांग्रेस उम्मीदवार के रूप में मधु बंगारप्पा यहां जमकर चुनाव प्रचार कर रहे हैं। इसी सीट पर उनका मुकाबला कर रहे हैं उनके भाई कुमार बंगारप्पा। दोनों भाइयों के बीच जीत की जद्दोजहद शुरू हो गई है।
सिर्फ मधु ही सोराब को जीतने के लिए बंगरप्पा की विरासत और सद्भावना पर सवार नहीं है, उनके भाई और मौजूदा विधायक कुमार बंगारप्पा भी मैदान में हैं। कुमार सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी से चुनाव लड़ रहे हैं। वह दोबारा इस सीट से चुनाव लड़ रहे हैं और अपने पिता की विरासत पर दावा करने की कोशिश करते दिख रहे हैं। मधु चुनाव प्रचार के दौरान राज्य के हर गांव में दौरा कर अपने दिवंगत पिता का जिक्र कररहे हैं। वह कहते हैं, मैं उन्हें न केवल यहां, बल्कि जब भी मैं राज्य भर में दौरा करता हूं, उनका आह्वान करता हूं। लोग यही चाहते हैं। वे मुझसे उसके बारे में पूछते हैं।
मधु याद करते हैं कि कैसे उनके पिता की 10 एचपी (हाई प्रेशर) तक सिंचाई पंपों के लिए मुफ्त बिजली की योजना आज भी चल रही है। यह योजना 1990-1992 से बंगारप्पा के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार द्वारा शुरू की गई थी।
मधु बना कुमार
सोराब निर्वाचन क्षेत्र कई दशकों तक बंगारप्पा का गढ़ बना रहा और उन्होंने 1967 से 1994 तक लगातार सात बार इस सीट का प्रतिनिधित्व किया था। वह ज्यादातर कांग्रेस के टिकट पर जीते थे। 1994 में जब बंगारप्पा लोकसभा के लिए चुने गए, तो उन्होंने अपने बड़े बेटे कुमार के लिए निर्वाचन क्षेत्र छोड़ दिया। 1999 के विधानसभा चुनावों में कुमार ने सीट बरकरार रखी और एसएम कृष्णा के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार में राज्य मंत्री बने। 2004 के चुनावों से पहले दोनों भाइयों के बीच दरार बढ़ गई, जब बंगरप्पा भाजपा में शामिल हो गए और सोराब निर्वाचन क्षेत्र से पार्टी से मधु को मैदान में उतारा। कुमार को जब पता चला कि उनके पिता ने सोराब सीट से मधु को मैदान में उतारने का फैसला किया है, वो उसी दिन कांग्रेस में शामिल हो गए।
2008 में बंगारप्पा समाजवादी पार्टी में शामिल हुए और विधानसभा चुनाव लड़ा। कुमार कांग्रेस के उम्मीदवार थे। कभी बंगारप्पा के कट्टर समर्थक रहे पूर्व मंत्री हरतालु हलप्पा ने भाजपा के टिकट पर सोराब से चुनाव लड़ा और चुनाव जीत गए। 2010 में बंगारप्पा जद (एस) में शामिल हो गए। एक साल बाद उनकी मृत्यु हो गई। 2013 में मधु ने जेडीएस के टिकट पर सोराब सीट जीती। 2011 में बंगारप्पा की मृत्यु के बाद मधु की अपने भाई के प्रति सियासी दुश्मनी जारी रही और 2018 के विधानसभा चुनाव में उन्हें कुमार ने 3,286 मतों से हराया।
पारिवारिक झगड़े
मधु और कुमार के बीच भाई-भाई की प्रतिद्वंद्विता ने अतीत में कई बदसूरत मोड़ लिए हैं। दोनों पक्षों ने एक-दूसरे पर कई तरह के आरोप लगाए हैं। हालांकि, मधु का कहना है कि वह अब अपने पारिवारिक झगड़े के बारे में बात करने में सहज नहीं हैं। क्योंकि आखिरकार हम बंगारप्पा के बच्चे हैं। लेकिन यह मुझे निजी रूप से आहत करता है। जब आप भाइयों के बीच आपसी प्रतिद्वंद्विता की कहानी बयां करते हैं, तो बंगारप्पा के अनुयायी नहीं जानते कि असल में क्या हुआ था।
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अमित कुमार मंडल author
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