Karnataka Chunav 2023: कौन हैं लिंगायत, जानें कर्नाटक की सियासत में कितना है इनका रसूख

Karnataka Assembly Election 2023: कर्नाटक की कुल आबादी में 17 फीसदी लिंगायत समुदाय का हिस्सा है। यह समुदाय पूरे राज्य में मिलता है। बताया जाता है कि विधानसभा की कुल 224 सीटों में से करीब 70 सीटों पर यह समुदाय अपना प्रभाव रखता है। यही नहीं, करीब 30 सीटों पर यही समुदाय जीत एवं हार तय करता है।

कर्नाटक में विधानसभा की 224 सीटों पर 10 मई को वोटिंग होगी।

Karnataka Assembly Election 2023: भारत में चुनावों को जाति से अलग करके नहीं देखा जा सकता। चुनावों में जीत-हार का फैसला जातिगत समीकरणों से होता है, यह भी कहना गलत नहीं होगा। इस जातिगत राजनीति से कर्नाटक भी अछूता नहीं है। यहां भी चुनाव में जातियों का वर्चस्व है। जातियों का समर्थन या विरोध कर्नाटक के राजनीतिक परिदृश्य को बनाता और बिगाड़ता रहा है। कर्नाटक की राजनीति में दशकों से लिंगायत एवं वोक्कालिगा समुदाय का दबदबा एवं प्रभुत्व देखने को मिलता है। खासकर, लिंगायत समुदाय जिस राजनीतिक दल के साथ होता है उसे चुनावों में बढ़त या उसकी सरकार बनती रही है। इस बार चुनाव में भी लिंगायत समुदाय एक बड़ा फैक्टर बनेगा। इस लिंगायत समुदाय के बारे में यहां हम आपको बताएंगे-

कौन हैं लिंगायत?

लिंगायत को वीरशैव समुदाय के नाम से भी जाना जाता है। यह समुदाय भगवान शिव को अपना आराध्य देव मानता है। लिंगायत समुदाय के लोग 12वीं सदी के संत-दार्शनिक बासवन्ना के उपदेशों का अनुसरण करता है। बासवन्ना ने रूढ़िवादी एवं कर्मकांडी पूजा-पाठ एवं वेदों के प्रभुत्व का विरोध किया। वीरशैव संप्रदाय क के लोग भगवान शिव की मूर्तियों की पूजा एवं अन्य हिंदू परंपराओं का मानते एवं उनका अनुसरण करते हैं। लिंगायत समुदाय वीरशैव को हिंदू धर्म का हिस्सा मानता है। वीरशैव मानते हैं कि उनके प्राचीन धर्म की स्थापना भगवान शिव ने की और बासवन्ना इस धर्म के प्रमुख संत थे।

कर्नाटक के इन क्षेत्रों में है लिंगायतों का प्रभुत्व

कर्नाटक की कुल आबादी में 17 फीसदी लिंगायत समुदाय का हिस्सा है। यह समुदाय पूरे राज्य में मिलता है। बताया जाता है कि विधानसभा की कुल 224 सीटों में से करीब 70 सीटों पर यह समुदाय अपना प्रभाव रखता है। यही नहीं, करीब 30 सीटों पर यही समुदाय जीत एवं हार तय करता है। ज्यादातर लिंगायत समुदाय के लोग उत्तरी कर्नाटक के जिलों बेलगावी, धारवाड़ और गदाग में मिलते हैं। बागलकोट, बीजापुर, गुलबर्गा, बीदर एवं रायचुर में भी इनकी अच्छी-खासी आबादी है। दक्षिण कर्नाटक के कुछ हिस्सों जैसे कि बेंगलुरू, मैसूर एवं मांड्या में भी ये पाए जाते हैं।

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