Uttar Pradesh: बड़ा दिलचस्प है इस बार यूपी का समीकरण, पूर्व रियासतों के कई सदस्य नहीं लड़ रहे लोकसभा चुनाव

UP Election News: लोकसभा चुनाव 2024 को लेकर यूपी का समीकरण काफी बदल चुका है। उत्तर प्रदेश में इस बार के चुनावी रण में आधा दर्जन से अधिक पूर्व रियासतों के सदस्य इस बार नहीं हैं। यानी राजघरानों से ताल्लुक रखने वाले कई सदस्य जो चुनाव लड़ते आ रहे हैं, वो इस बार अपनी उम्मीदवारी पेश नहीं कर रहे हैं।

UP Riyasat Lok Sabha Election 2024

लोकसभा चुनाव 2024: उत्तर प्रदेश का समीकरण।

Lok Sabha Election 2024: कहते हैं कि दिल्ली की सत्ता का रास्ता यूपी से ही होकर जाता है, ये बात सौ फीसदी सच है। क्योंकि जिसने उत्तर प्रदेश जीत लिया, तो मानिए वो सबसे मजबूती के साथ उभरकर सामने आता है। इसकी वजह ये है कि देश की 543 लोकसभा सीटों में से अकेले उत्तर प्रदेश में 80 सीटें हैं। देश की संसद में सबसे ज्यादा सदस्य इसी राज्य से पहुंचते हैं। इस बार के लोकसभा चुनाव में यूपी का सियासी समीकरण काफी बदल चुका है। आपको समझाते हैं कि आखिर इस बार के चुनावी रण में क्या कुछ खास और अलग है।

राजघरानों के सदस्यों को नहीं दी जा रही तवज्जो

इस बार के लोकसभा चुनाव में राजनीतिक दल उत्तर प्रदेश के पूर्व राजघरानों के सदस्यों को उन सीट से मैदान में उतारने में कम रुचि दिखा रहे हैं, जहां पहले उनका प्रभाव था। मतलब साफ है कि इस बार के चुनाव में पूर्व रियासतों से ताल्लुक रखने वाले सदस्यों की उम्मीदवारी हर बार की तुलना में काफी कम देखी जा रही है। आपको उन सदस्यों के बारे में बताते हैं।

अमेठी के पूर्व राजा संजय सिंह, पडरौना (कुशीनगर) के कुंवर आरपीएन सिंह, प्रतापगढ़ के कालाकांकर की पूर्व राजकुमारी रत्ना सिंह और जामो (अमेठी) के कुंवर अक्षय प्रताप सिंह 'गोपाल जी' चुनावी समर में नहीं हैं। इसी तरह पूर्व विधायक एवं भदावर (आगरा) के पूर्व राजा महेन्द्र अरिदमन सिंह और रामपुर की बेगम नूरबानो और नवाब काज़िम अली भी चुनावी रण में नहीं हैं। ऐसे में उनके किलों में भी वैसी रंगत नहीं है, जैसी उनके उम्मीदवार होने पर दिखती रही है।

फीकी लग रही है उनके किलों की रौनक!

कई पूर्व राजाओं और राजकुमारों ने अपनी रियासतों के विलय के बाद राजनीति में कदम रखा, लेकिन इस चुनाव में कई पूर्व राजाओं को चुनाव लड़ने का मौका न मिलने से उनके किलों की रौनक फीकी लग रही है। कांग्रेस छोड़कर भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) में शामिल हुए 'अमेठी रियासत' के पूर्व राजा व पूर्व केंद्रीय मंत्री संजय सिंह इस बार चुनाव मैदान में नहीं हैं। उनके एक करीबी ने बताया, 'महाराज (संजय सिंह) को इस बार उम्मीद थी कि उन्हें सुलतानपुर में भाजपा उम्मीदवार बनाएगी, लेकिन पार्टी ने मेनका गांधी को फिर से प्रत्याशी घोषित कर दिया।'

संजय सिंह की उम्मीदों पर फिर गया पानी

पूर्व राज्यसभा सदस्य संजय सिंह ने 1998 में भाजपा के टिकट पर अमेठी संसदीय सीट से चुनाव जीता था और 2009 में कांग्रेस के उम्मीदवार के तौर पर सुलतानपुर से सांसद बने थे। संजय सिंह 2019 में कांग्रेस उम्मीदवार के तौर पर सुलतानपुर में मेनका गांधी से चुनाव हार गये थे। प्रतापगढ़ जिले के कालाकांकर रियासत की पूर्व राजकुमारी एवं पूर्व सांसद रत्ना सिंह के लिए चुनाव लड़ने की संभावना खत्म हो गयी है, क्योंकि भाजपा ने यहां अपने मौजूदा सांसद संगम लाल गुप्ता को फिर उम्मीदवार बनाया है। रत्ना सिंह कांग्रेस छोड़कर भाजपा में शामिल हुई थी।

कुंवर अक्षय प्रताप सिंह भी मैदान से बाहर

प्रतापगढ़ में 2019 में कांग्रेस उम्मीदवार के तौर पर तीसरे स्थान पर रहीं रत्ना सिंह ने यहां से 1996, 1999 और 2009 में कांग्रेस के टिकट पर चुनाव जीता था, लेकिन 2014 में अपना दल (एस) के कुंवर हरिवंश सिंह और 2019 में संगम लाल गुप्ता से पराजित हो गई थीं। वह कुछ वर्ष पहले भाजपा में शामिल हो गयीं। कुंवर अक्षय प्रताप सिंह उर्फ 'गोपाल जी' ने 2004 में समाजवादी पार्टी (सपा) के टिकट पर प्रतापगढ़ से लोकसभा चुनाव जीता। वह 2019 में इस सीट से जनसत्ता दल (लोकतांत्रिक) के उम्मीदवार थे लेकिन तीसरे स्थान पर रहे। इस बार उनके चुनाव लड़ने के फिलहाल कोई संकेत नहीं हैं।

नवाब काज़िम अली की दावेदारी भी हो गई खत्म

पश्चिमी उत्तर प्रदेश में रामपुर लोकसभा क्षेत्र की पूर्व सांसद व भूतपूर्व नवाब परिवार की बेगम नूर बानो 84 वर्ष की उम्र में भी विपक्षी दलों के समूह 'इंडिया’ गठबंधन' की प्रमुख घटक कांग्रेस से टिकट की दावेदार थीं लेकिन सीट बंटवारे में यह सीट सपा के हिस्से में जाने से उनकी दावेदारी खत्म हो गयी।

कांग्रेस से निकाले गए उनके पुत्र नवाब काज़िम अली भी इस बार चुनावी समर से दूर हैं जबकि सत्तारूढ़ भाजपा की सहयोगी अपना दल (एस) के नेता व काज़िम के पुत्र नवाब हैदर अली खां 'हमजा मियां' भी मौका नहीं पा सके। 2014 में कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़ने वाले काज़िम अली रामपुर में तीसरे स्थान पर रहे थे। भाजपा ने ज्यादातर अपने पुराने उम्मीदवारों और सांसदों पर ही दांव लगाया है जबकि कांग्रेस के साथ गठबंधन में सपा को अधिक सीटें मिलने के कारण, कांग्रेस के साथ रहने वाले पूर्व राजघरानों के सदस्यों को टिकट नहीं मिल पाया है।

कांग्रेस के खाते में आई हैं यूपी की 17 लोकसभा सीटें

INDI गठबंधन के तहत सीट बंटवारे में प्रदेश की 80 लोकसभा सीट में से कांग्रेस को 17 सीट मिली हैं, जबकि पश्चिम बंगाल की मुख्‍यमंत्री ममता बनर्जी के नेतृत्व वाली तृणमूल कांग्रेस एक सीट (भदोही) पर उम्मीदवार खड़ा करेगी। बाकी 62 सीट सपा के हिस्से में हैं। आगरा के भदावर राजघराने के अरिदमन सिंह बाह विधानसभा सीट से छह बार के पूर्व विधायक हैं और प्रदेश सरकार में मंत्री भी रहे हैं। उन्होंने 2009 का लोकसभा चुनाव भाजपा उम्मीदवार के रूप में लड़ा लेकिन हार गए।

उनकी पत्नी रानी पक्षालिका सिंह अभी भी बाह से भाजपा की विधायक हैं, लेकिन उन्होंने 2009 में फतेहपुर सीकरी की लोकसभा सीट पर भाजपा उम्मीदवार के रूप में चुनाव लड़ा लेकिन तीसरे स्थान पर रहीं। पक्षालिका सिंह 2014 का लोकसभा चुनाव सपा के टिकट पर फतेहपुर-सीकरी सीट से हार गईं थी।

प्रतापगढ़ के राजा अजीत प्रताप सिंह और मांडा के भूतपूर्व राजघराने के सदस्य एवं पूर्व प्रधानमंत्री विश्वनाथ प्रताप सिंह के वंशज अब राजनीति में सक्रिय नहीं हैं। राजा अजीत प्रताप सिंह ने 1962 और 1980 में प्रतापगढ़ से लोकसभा चुनाव जीता। उनके बेटे अभय प्रताप सिंह ने 1991 में सीट जीती लेकिन पोते अनिल प्रताप सिंह कई प्रयासों के बावजूद असफल रहे।

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