Loksabha Election 2024: आखिर क्यों चुनावी सभा से ज्यादा रोड शो को तवज्जो दे रहे नेता; जानिए Road Show का विज्ञान
Loksabha Election 2024: चुनावोंं में बड़े-बड़े नेता अपनी पार्टी के उम्मीदवारों के लिए रैलियां कर रहे हैं। लेकिन देखने को मिल रहा है कि प्रचार के लिए रैलियों से ज्यादा नेताओं का विश्वास रोड शो पर है। जानिए आखिर क्यों रोड शो पर नेताओं का भरोसा बढ़ा है और कैसे यह कारगर रणनीति है।
पीएम मोदी की रैली
Loksabha Election 2024: सात चरणों में हो रहे लोकसभा चुनाव 2024 के लिए पहले चरण का प्रचार अंतिम चरण है। पहले चरण के लिए 19 अप्रैल 2024 को मतदान होगा। अन्य चरणों के लिए भी चुनाव प्रचार रफ्तार पकड़ चुका है। तमाम निर्वाचन क्षेत्रों में चुनावी सभाएं और रैलियों का आयोजन हो रहा है। राजनीतिक पार्टियां, उम्मीदवार और स्टार प्रचारक मतदाताओं को अपनी ओर रिझाने का हर संभव प्रयास कर रहे हैं, ताकि उनका वोट पा सकें। लेकिन लोकसभा चुनाव में एक ट्रेंड जो देखने को मिल रहा है, वह यह कि चुनावी सभाओं से ज्यादा नेता रोड शो को तवज्जो दे रहे हैं। फिर चाहे वह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (PM Narendra Modi) हों या विपक्ष के नेता राहुल गांधी (Rahul Gandhi) और अन्य। चलिए जानते हैं कि आखिर रोड शो पर क्यों ज्यादा फोकस कर रहे हैं नेता -
प्रधानमंत्री के हालिया रोड शोप्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने हाल के दिनों में तमिलनाडु, केरल और उत्तर प्रदेश के गाजियाबाद में रोड शो किए। अपनी पार्टी के उम्मीदवारों के लिए पीएम मोदी किसी रैली के मंच पर खड़े होकर भी संबोधन कर सकते थे और फिर वापस लौट सकते थे। लेकिन उन्होंने ऐसा नहीं किया। तमिलनाडु जहां, भाजपा के लिए सीट पाना टेढ़ी खीर है, वहां भी पीएम मोदी ने रोड शो में अपने अंदाज से वहां की जनता को खूब संदेश दिया। उन्होंने तमिलनाडु के मतदाताओं को इस रोडशो के जरिए खास संदेश दिया। ऐसा ही उन्होंने केरल में भी किया। केरल में भाजपा को भूमिहीन माना जाता है, लेकिन उन्होंने अपने रोड शो से पार्टी के लिए थोड़ी जमीन का इंतजाम कर लिया है। उत्तर प्रदेश के गाजियाबाद में जहां पार्टी में असंतोष दिख रहा था, पीएम मोदी ने अपने रोड शो के माध्यम से न सिर्फ उसे खत्म किया, बल्कि पार्टी कार्यकर्ताओं में जोश भी भर दिया। ऐसा ही कुछ उन्होंने चुनावों की घोषणा से पहले अयोध्या की गलियों में रोड शो करके भी किया था। यहां भी उन्होंने जनता को साफ संदेश दिया कि आस्था और विकास के उनके एजेंडे पर पार्टी अडिग है।
राहुल गांधी के रोड शो
राहुल गांधी की रैली
निश्चित तौर पर राहुल गांधी विपक्ष का चेहरा हैं। उन्होंने हाल के दिनों में भारत जोड़ो और न्याय यात्रा नाम से जो सो किए वह रोड शो के ही नमूने हैं। यह किसी एक जगह पर न होकर कई शहरों और कई किमी लंबे आयोजन थे। रोड शो की यह खासियत भी है कि इसमें कई किमी तक स्थानीय लोगों और मतदाताओं को अपनी भाव-भंगिमा और भव्यता से अपनी ओर किया जा सकता है। राहुल गांधी ने भारत जोड़ो और भारत न्याय यात्रा के जरिए एक-एक शहर में 20-25 किमी के रोड शो किए हैं। लोकसभा चनाव 2024 के लिए केरल के वायनाड से नॉमिनेशन के लिए भी उन्होंने रोड शो किया, पिछले चुनाव में बी उन्होंने ऐसा ही रोड शो किया था।
सोनिया गांधी ने शुरू किया ट्रेंडरोड शो के इतिहास में जाएंगे तो इसका श्रेय पूर्व कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी को जाता है। करीब ढाई दशक पहले उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव के दौरान उन्होंने राहुल गांधी और प्रियंका गांधी को खुली जीप में घुमाया था। ऐसे रोड शो के जरिए पार्टियां आसानी से भीड़ जुटा लेती हैं। इनकी सफलता राजनेताओं की अपनी छवि, क्षेत्र में पार्टी व नेता के जनाधार पर निर्भर करती है।
ये नेता भी करते हैं रोड शोदिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल (Arvind Kejriwal) भी पिछले चुनावों में रोड शो करते रहे हैं। हालांकि, दिल्ली शराब घोटाला मामले में फिलहाल वह जेल में हैं और उनकी पार्टी अभी रोड सो नहीं कर रही है। पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी भी बंगाल की सड़कों पर रोड शो करके जनता को अपनी ओर करने के लिए जानी जाती हैं। इसी तरह से तेलंगाना के पूर्व मुख्यमंत्री के. चंद्रशेखर राव और आंध्र प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू भी रोड शो करते रहे हैं। उत्तर प्रदेश के मौजूदा मुख्यमंत्री आदित्यनाथ और पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव भी रोड शो के जरिए जनता को रिझाने के लिए जाने जाते हैं।
रोड शो का विज्ञानरोड शो का विज्ञान क्या हो सकता है। किसी भी राजनीतिक रैली का मतदाताओं को अपनी तरफ करना ही होता है। लेकिन बड़ी-बड़ी चुनावी रैलियों में बहुत ज्यादा खर्च होता है। इसके अलावा रैली के लिए खुले मैदान या जगह का इंतजाम करना और जनता को जुटाना भी पार्टी के लिए बड़े सिरदर्द का काम है। लेकिन रोड शो कम संसाधनों में भी सफल हो सकता है। अच्छी बात यह है कि संसाधनों के कम इस्तेमाल के बावजूद इसका असर बड़ा होता है। रोड शो के लिए एक और अच्छी बात यह है कि इसके लिए भीड़ नहीं जुटानी पड़ती। रोड शो के जरिए उन लोगों को टार्गेट किया जाता है जो किसी चुनावी सभा में जाना पसंद नहीं करते और राजनीतिक रैलियों से किसी न किसी कारण दूर रहते हैं।
रोड शो के जरिए उम्मीदवार या स्टार प्रचारक जनता से सीधे कॉन्टेक्ट स्थापित करने में सफल होते हैं। वह आसानी से अपनी बात वोटरों के दिमाग तक पहुंचा पाते हैं। चुनावी सभा के लिए टैंट से लेकर कुर्सी और कई अन्य इंतेजाम करने पड़ते हैं, जबकि रोड शो में यह सब खर्चे नहीं करने पड़ते। ऐसे में राजनीतिक दलों को रोड शो सस्ते में बड़ा काम करके देते हैं।
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फेल भी हो सकते हैं रोड शोरोड शो भले ही सस्ता पड़ता है, भीड़ जुटाने की जरूरत नहीं पड़ती, लेकिन यह तभी सफल हो सकते हैं, जब पार्टी या नेता का जनाधार हो। अगर किसी नेता या पार्टी का जनाधार अच्छा है तो उनका रोड शो सुपरहिट साबित होता है। अगर किसी भी नेता या पार्टी का जनाधार नहीं है तो उनके लिए राजनीतिक रैली अच्छा विकल्प है, जहां उनके कार्यकर्ता लोगों को भीड़ जुटा सकते हैं।
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