महाराष्ट्र चुनाव पर किसानों की आत्महत्याओं का कितना पड़ेगा असर? विदर्भ क्षेत्र का सारा गणित समझिए

Election News: महाराष्ट्र की सियासत में किसानों की आत्महत्या का मुद्दा कितना अहम है? सरकारें बदल जाती हैं, लेकिन किसानों के खुदकुशी के आंकड़ों में गिरावट नहीं आती है। अकेले विदर्भ से हर साल हजारों आत्मगत्या के मामले आते हैं। विदर्भ महाराष्ट्र प्रांत का एक उपक्षेत्र है। इस बात के चुनाव में भी यहां किसानों की आत्महत्याएं फिर मुद्दा है।

महाराष्ट्र चुनाव में कितना अहम होगा किसानों की आत्महत्याओं का मुद्दा?

Farmers' Suicides Issue in Maharashtra Elections: महाराष्ट्र के विदर्भ क्षेत्र में किसानों की खुदकुशी का सिलसिला थमने का नाम नहीं ले रहा है। प्रदेश में विधानसभा चुनाव के चलते यह मुद्दा एक बार फिर से सुर्खियों में है। किसान सरकार से कागजी घोषणाएं करने की बजाए मुद्रास्फीति की दर के आधार पर कपास और सोयाबीन की फसलों की उचित दर सुनिश्चित करने की अपील कर रहे हैं।

महाराष्ट्र चुनाव में कितना अहम है किसानों क खुदकुशी का मुद्दा?

विदर्भ के कृषि संकट का चेहरा बनकर उभरीं कलावती बंदुरकर ने सवालिया लहजे में कहा, 'फसल की उचित कीमत नहीं मिलती, किसान कर्ज के जाल में फंसे हैं। उनसे खुदकशी के सिवाय और क्या उम्मीद की जा सकती है?' कलावती बंदुरकर यवतमाल के जलका गांव में एक किसान की विधवा हैं। राहुल गांधी 2008 में जलका गांव में उनके घर गए थे। इसके बाद वह विदर्भ के कृषि संकट का चेहरा बन गई थीं। उनका आरोप था कि किसान उपज की सही कीमत न मिलने की वजह से खुदकुशी कर रहे हैं।

कलावती बंदुरकर ने कहा, 'किसानों की उपज का सही दाम नहीं मिलेगा तो आत्महत्याएं कैसे रुकेंगी? किसान फसल उगाने के लिए एक-दो लाख रुपये कर्ज लेते हैं। खेती करते हैं, लेकिन बदले में उन्हें क्या मिलता है? कपास की कीमतें 10 साल से जस की तस बनी हुई हैं। सोयाबीन के रेट भी वही हैं। किसानों के लिए उपज की कीमत में कोई बदलाव नहीं हुआ है।' उनका कहना था, 'किसानों को उनकी फसलों की बेहतर कीमत मिलती तो वे समृद्ध होते और खुदकुशी नहीं करते, लेकिन अब किसान कर्ज के जाल में फंसे हुए हैं। आप उनसे खुदकुशी के सिवाय और क्या उम्मीद करते हैं।'

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