UP में Bypolls के बीच Azam Khan का आरोप- बर्बरता हुई, पीटे गए लोग...पुलिस कह रही मत देना वोट
Mainpuri ByPolls 2022: चुनाव आयोग के मुताबिक मैनपुरी में जहां छह उम्मीदवार मैदान में हैं। मैनपुरी लोकसभा उपचुनाव में मुलायम सिंह यादव की बड़ी बहू और सपा मुखिया अखिलेश यादव की पत्नी डिंपल यादव मैदान में हैं। वहीं, भाजपा की तरफ से रघुराज सिंह शाक्य चुनाव लड़ रहे हैं। शाक्य कभी प्रगतिशील समाजवादी पार्टी लोहिया के मुखिया और सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव के चाचा शिवपाल सिंह यादव के करीबी सहयोगी थे। इस साल के शुरू में उन्होंने उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव से पहले भाजपा का दामन थाम लिया था।
समाजवादी पार्टी के सीनियर नेता आजम खान। (फाइल)
तस्वीर साभार : टाइम्स नाउ ब्यूरो
उत्तर प्रदेश के मैनपुरी में उपचुनाव के बीच सोमवार (पांच दिसंबर, 2022) को समाजवादी पार्टी (सपा) के सीनियर नेता आजम खान ने बड़े आरोप लगाए। उन्होंने कहा कि मतदान के बीच बर्बरता की जा रही है। लोगों को गिरफ्तार किया गया और पीटा गया। पुलिस कॉलोनियों में जाकर लोगों को बोली कि वोट डालने के लिए बाहर मत निकलना। धमकी का खौफ इस कदर था कि एक मोहल्ले में लोगों ने अपने घरों में ताला लगा दिए और वे डर के मारे पलायन (कहीं और चले गए) कर गए। वे हर जगह कहते पाए गए कि वोट डालने मत जाना।
उत्तर प्रदेश की मैनपुरी लोकसभा के साथ रामपुर और खतौली विधानसभा सीटों के उपचुनाव के लिए भी मतदान हुआ। इन उपचुनावों में सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) और समाजवादी पार्टी (सपा) व राष्ट्रीय लोक दल (रालोद) के गठबंधन के बीच सीधा मुकाबला है, जबकि बहुजन समाज पार्टी (बसपा) और कांग्रेस ने अपने उम्मीदवार नहीं उतारे।
दरअसल, मैनपुरी लोकसभा सीट सपा संस्थापक मुलायम सिंह यादव के गुजरने के बाद खाली हुई। वहीं, रामपुर सदर विधानसभा सीट आजम खां को नफरत भरा भाषण देने के मामले में तीन साल की सजा सुनाए जाने और खतौली सीट भाजपा विधायक विक्रम सिंह सैनी को मुजफ्फरनगर दंगों से जुड़े एक मामले में दो साल की सजा सुनाए जाने के कारण उनकी सदस्यता रद्द होने के चलते रिक्त हुई।
मैनपुरी लोकसभा और रामपुर सदर विधानसभा क्षेत्र अरसे से समाजवादी पार्टी के गढ़ रहे हैं। लिहाजा उसके लिए यह उपचुनाव दूरगामी संदेश लेकर आएंगे। वैसे, इन उपचुनावों का केंद्र और प्रदेश की भाजपा सरकारों पर कोई असर नहीं होगा क्योंकि दोनों ही जगह भाजपा का पूर्ण बहुमत से ज्यादा का संख्या बल है। मगर इन उपचुनाव में हार-जीत का मनोवैज्ञानिक असर वर्ष 2024 के लोकसभा चुनाव पर पड़ सकता है।
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अभिषेक गुप्ता author
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