उत्तराखंड में ये बड़ी समस्या है, लेकिन पलायन चुनावी मुद्दा बनता ही नहीं; जानें

देश में तमाम चुनावी मुद्दे हैं, जिन पर राजनीतिक पार्टियां अपने-अपने एजेंडे सामने रखती हैं। लेकिन उत्तराखंड में सबसे बड़ा मुद्दा पलायन का है, जिस पर कोई भी राजनीतिक पार्टी कभी बात नहीं करती और न ही करना चाहती है। यहां गांव के गांव घोस्ट विलेज बन चुके हैं, लेकिन चुनावी मुद्दा नहीं हैं।

उत्तराखंड के घोस्ट विलेज

ये ऊपर तस्वीर देखी आपने? ये 19वीं सदी के किसी गांव की तस्वीर नहीं है, बल्कि आज 21वीं सदी के भारत का एक गांव है। देश इतनी तेजी से तरक्की कर रहा है कि ये घर, ये गांव कहीं पीछे छूट गए हैं। देश की कदमताल के साथ ये अपनी ताल बिठा ही नहीं पाए। एक तरफ देश बुलेट ट्रेन पर सवार होने को तैयार है। हर जगह नए-नए एयरपोर्ट बन रहे हैं, दूसरी तरफ ये गांव हैं, जो अब भी उनींदापन से पार नहीं पा रहे। यहां के निवासियों की आंखों में भी बड़े-बड़े सपने हैं। यहां के निवासी भी उड़ना चाहते हैं। यही कारण है कि आज इस घर, इस गांव की ये स्थिति है। जिनके सपने बड़े थे, जिनके पास उन सपनों का पीछा करने का सामर्थ्य था, वह आगे बढ़ गए। पीछे कुछ रह गया तो वह ये पुराने जर्जर मकान, जीवन के अंतिम पड़ाव पर पहुंच चुके बुजुर्ग और कुछ ऐसे लोग जो आधुनिकता की दौड़ में शामिल ही नहीं होना चाहते। समस्याएं कई हैं, क्या-क्या कहें और किससे कहें... सुनते तो हैं, लेकिन कोई कुछ करता नहीं है। वो जिनके सपने बड़े थे, वह भी गांव में रुककर इसको आगे बढ़ा सकते थे, लेकिन रोजगार का साधन ही नहीं था। चुनाव दर चुनाव आते गए, देश आगे बढ़ता गया और पलायन का दानव इन गांवों, इन घरों के रहवासियों को अपने साथ ले जाता गया।

बात उत्तराखंड के सीमांत गांवों की है। ये गांव जितने खूबसूरत हैं, उतना ही यहां का जीवन भी मुश्किल है। यही नहीं इनकी भौगोलिक स्थिति भी उतनी ही महत्वपूर्ण है। पलायन का दंश इन गांवों ने ऐसा झेला है कि गांव के गांव आज भुतहा गांव यानी घोस्ट विलेज कहलाने लगे हैं। यहां पहाड़ों में जिस गांव में 40-50 मकान होते हैं, उसे बड़ा गांव माना जाता है। लेकिन इन बड़े गांवों में भी आज इक्का-दुक्का मकानों के दरवाजे ही खुले हैं। जिन गांवों में आज से 2-3 दशक पहले 40-50 से ज्यादा बच्चे एक साथ स्कूल जाते दिखते थे, उन गांवों की आज की पूरी जनसंख्या ही 15-20 लोगों तक सिमटकर रह गई है। कई गांव तो सच में घोस्ट विलेज बन चुके हैं, क्योंकि अब वहां कोई नहीं बचा।

भौगोलिक और सामरिक दृष्टि से यह गांव बहुत महत्व रखते हैं, क्योंकि उत्तराखंड के यह सीमांत गांव नेपाल और चीन बॉर्डर के करीब हैं। चीन की तरफ से भारतीय सीमा पर लगातार हमले होते रहते हैं। ऐसे में इन गांवों का उजड़ जाना या घोस्ट विलेज में बदल जाना, देश के लिए भी खतरनाक स्थिति है।

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