मुंबई साउथ लोकसभा सीट पर अब कैसी होगी चुनावी जंग? मिलिंद देवड़ा के इस कदम का असर समझिए

Lok Sabha Chunav: मिलिंद देवड़ा ने कांग्रेस पार्टी को अलविदा कह दिया है। मुंबई दक्षिण लोकसभा सीट से दो बार सांसद रहे मिलिंद के फैसले के बाद अब इस सीट पर मुकाबले की तस्वीर कैसी रहेगी और सबसे बड़ा सवाल यही है कि किसका पलड़ा भारी हुआ? समझिए सियासी समीकरण...।

मिलिंद देवड़ा के इस फैसले से किस-किस की बढ़ेगी टेंशन?

Impact Of Milind Deora: मुंबई दक्षिण लोकसभा सीट से दो बार सांसद और यूपीए-2 में केंद्रीय मंत्री रहे मिलिंद देवड़ा ने लोकसभा चुनाव से ठीक पहले कांग्रेस से नाता तोड़ लिया है, ऐसे में कयास ये लगाए जा रहे हैं कि देवड़ा जल्द ही शिंदे गुट वाली शिवसेना का दामन थाम सकते हैं और यदि ऐसा हुआ तो दक्षिण मुंबई की सीट पर शिवसेना अब मिलिंद देवड़ा को मैदान में उतारेगी और इस सीट पर उद्धव गुट के अरविंद सावंत से उनका मुकाबला बड़ा रोचक मोड़ ले लेगा। आखिर देवड़ा के इस कदम से कौन कमजोर हुआ और किसका पलड़ा भारी हुआ आपको समझाते हैं।

लोकसभा चुनाव में मिलिंद फैक्टर समझिए1). मुंबई दक्षिण लोकसभा सीट पर हुए 17 चुनावों में से 10 बार कांग्रेस ने जीत हासिल की है, मगर खास बात ये है कि इन 10 में से 6 बार देवड़ा परिवार को जीत मिली है। मिलिंद देवड़ा इस सीट पर दो बार और उनके पिता मुरली देवड़ा इस सीट से 4 बार सांसद रहे हैं। समझा जा सकता है कि देवड़ा परिवार की इस सीट पर अच्छी खासी पकड़ है। हालांकि 2014 और 2019 के लोकसभा चुनावों में भाजपा की लहर में देवड़ा का जादू नहीं चल सका। भाजपा ने ये सीट शिवसेना के खाते में दे दी और दो बार से इस सीट पर अरविंद सावंत को जीत हासिल हो रही है। सावंत मोदी सरकार में मंत्री भी रह चुके हैं, अब अगर देवड़ा को भाजपा का साथ मिल जाता है तो उद्धव ठाकरे की शिवसेना की टेंशन बढ़ सकती है।

2). शिवसेना में दो फाड़ होने से उद्धव ठाकरे की ताकत काफी घटी है और बगावत के चलते पार्टी भी कमजोर हुआ है। सबसे बड़ा फैक्टर तो ये है कि 2014 और 2019 की तरह इस बार के चुनाव में उद्धव के पास बीजेपी का साथ नहीं है। उद्धव गुट का टेंशन बढ़ना लाजमी है। कांग्रेस में रहकर पिछले दो चुनावों में देवड़ा को भले ही हार का सामना करना पड़ा हो, मगर उनको मिले वोट से समझा जा सकता है कि उनका जनाधार कम नहीं हुआ है, ऐसे में भाजपा का साथ, एकनाथ शिंदे की शिवसेना का हाथ और खुद की जनाधार से वो अपने विरोधियों को धूल चटा सकते हैं।

3). महाराष्ट्र में इस बार का समीकरण बिल्कुल अलग है, शिवसेना और कांग्रेस साथ-साथ लोकसभा का चुनाव लड़ रही हैं। अब कांग्रेस को अलविदा कहना मिलिंद की मजबूरी हो या फिर उनकी सियासी साख बचाए रखने के लिए जरूरी है, ये समझना मुश्किल नहीं है। मिलिंद को इस बात का डर सता रहा होगा कि सीट बंटवारे के वक्त ये सीट उद्धव की शिवसेना के खाते में चला जाएगा। कहीं न कहीं वो भी इस बात को समझते हैं। मगर अब उन्होंने अलग राह अपना ली है तो वो फायदे में आ सकते हैं। बिना मिलिंद देवड़ा के कांग्रेस का भी जनाधार इलाके में कमजोर होगा, ऐसे में कांग्रेस भी उद्धव गुट को कोई खास मदद नहीं कर पाएगी।

End Of Feed